तितलियाॅं और तितलियाॅं
कहानी
‘‘अरे रे रे रे रे.....क्या बात है भई, मेरी रानी बिटिया आज कुछ उदास सी क्यों दिख रही है ?’’ काव्या की मम्मी ने उसका चेहरा अपनी हथेलियों मे भर कर चूमते हुए कहा लेकिन काव्या ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। बस्ता और बोतल एक ओर रख कर चुपचाप बैठ गयी। उसके ड़रे, सहमे चेहरे से साफ दिख रहा था कि वह किसी बात को ले कर परेशान है।
मम्मी ने उसके कपड़े बदलवाए, हाथ मुॅंह धुलाया और उसके सामने खाने की थाली रख कर पुचकारते हुए फिर बोलीं-‘‘क्या बात है बेटी, आज बहुत सुस्त सी लग रही हो ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है न ?’’
काव्या ने फिर भी कोई उत्तर नहीं दिया। सर झुकाए चुप बैठी रही। मानो किसी चिंता में लीन हो। उसे चुप और चिंतित देख कर उसकी मम्मी परेशान हो उठीं।
‘‘क्या हुआ बेटी ? स्कूल में किसी ने कुछ कहा क्या ? किसी बच्चे से झगड़ा तो नहीं हुआ ? तुम उदास क्यों हो ? अच्छा चलो, पहले खाना खा लो फिर आराम से बातें करेंगे।’’ मम्मी ने प्यार से उसका सर सहलाते हुए कहा तो वह बेमन से खाना टूॅंगने लगी।
पिछले एक सप्ताह से चाहे लाख जरूरी काम हो या लाख व्यस्तता, काव्या की मम्मी सब कुछ छोड़-छाड़ कर ढ़ाई बजे से पहले-पहले अपने घर के गेट पर जरूर पहॅंुच जाती हैं। ढ़ाई बजे के आसपास ही गेट से बीस-पच्चीस कदम दूर गली के मोड़ पर काव्या का स्कूल बस आ कर रुकता है। रिक्शे से काव्या के उतरते ही मम्मी हाथ हिला कर गेट पर अपनी उपस्थिति का सबूत देती हैं। जबाब में काव्या भी हाथ हिलाती है। फिर उसके बाद पीठ पर बस्ता और हाथ में पानी की बोतल लिए काव्या वहीं से दौड़ पड़ती है। घर के गेट तक उसके पहॅंुचने से पहले ही मम्मी लपक कर उसका बस्ता और बोतल ले लेती हैं और उसको अंगुली पकड़ाए, बातें करते घर के अंदर लौटती हैं।
रोज की तरह आज भी काव्या की मम्मी गेट पर खड़ी थीं। काव्या का स्कूल बस आया, वह उतरी, उसको देख कर गेट पर खड़ीं मम्मी ने मुस्कुरा कर अपना हाथ हिलाया। लेकिन काव्या ने न तो जबाब में और दिनों की तरह हाथ हिलाया, न खुशी दर्शायी और न ही चहकती हुयी घर की तरफ दौड़ लगायी। रोज उछलती, किलकती घर में घुसने वाली चंचल काव्या आज उदास चेहरा लिए धीरे-धीरे चल कर आयी। उसे उदास, शांत और गंभीर देख कर उसकी मम्मी परेशान हो उठीं। खाना खिलाने के बाद भी मम्मी प्यार से पुचकारतीं, उसकी उदासी का कारण पूछती थक गयीं लेकिन काव्या एक चुप, हजार चुप।
बरामदे में बैठीं काव्या की दादी भी देख रही थीं कि और दिन चकर-पकर बोलती रहने वाली नटखट काव्या आज चुप-चुप और थकी-हारी सी है।
‘‘अरी बहू, एक सवेरे की गई नन्ही जान बेचारी थक गई होगी। खिला-पिला कर थोड़ी देर सुला दो उसे। इस छोटी सी बच्ची को पढ़ाई के नाम पर मारे ड़ाल रही हो तुम लोग। यह कोई स्कूल जाने और पीठ पर इतना भारी बस्ता ढो़़ने की उम्र है ? बेचारी की बचपना छीन ले रही हो तुम लोग। ?’’ काव्या की दादी ने कहा।
मम्मी ने दुलार कर, पुचकार कर, फुसला कर काव्या की उदासी का कारण हर संभव तरीके से पूछ लिया लेकिन उसने कुछ भी नहीं बताया। अब तो आशंकायें और भी अधिक फन फैलाने लगीं। मम्मी का मन सत्रह कोठे दौड़ने लगा। बच्ची को और अधिक कुरेदना उचित नहीं लगा। अतः कमरे में ले जा कर उसे सुला दिया मम्मी ने।
तीन साल की काव्या ने अभी बस दो सप्ताह से ही स्कूल जाना शुरू किया था। इस दो सप्ताह में आज तीसरा दिन था जब वह स्कूल से गुमसुम और उदास लौटी थी। लेकिन इस बार खास बात यह थी कि वह अपनी उदासी की वजह नहीं बता रही थी।
नए-नए कपड़े पहन कर हाथ में पानी की बोतल और कंधे से बस्ता लटकाए मुहल्ले के बच्चों को स्कूल जाते देख काव्या का मन भी स्कूल जाने के लिए मचलने लगता था। ‘‘मम्मी मैं भी स्कूल जाऊॅंगी। पापा मेरा भी स्कूल में नाम लिखा दो।’’ स्कूल जाने के लिए वह आए दिन मम्मी, पापा से जिद किया करती थी। उसके पापा-मम्मी अपनी लाड़ली को शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाना चाहते थे। उस स्कूल में प्रवेश के लिए निर्धारित न्यूनतम उम्र तीन साल थी। काव्या का तीसरा साल पूरा होने से काफी पहले ही उसकी मम्मी ने तैयारी में दिन-रात एक कर दिया था। उसको तोते की तरह पढ़ाना और रटाना शुरू कर दिया था। आखिर उनकी मेहनत रंग लायी। काव्या स्कूल के टेस्ट में पास हो गई। उसकी मम्मी अपनी सफलता पर फूले नहीं समायीं।
नई ड्रेस, नया बस्ता और पानी की रंग-बिरंगी बोतल लिए फुदकती काव्या स्कूल जाने लगी थी। घर से पहली बार बाहर की दुनिया में निकली काव्या स्कूल जा कर बहुत खुश थी। नई जगह, नए लोग, नए वातावरण और ढ़ेर सारे नए हम उम्र दोस्तों के बीच खूब मगन थी। बस एक ही गड़बड़ी थी कि स्कूल की मैडम बहुत सख्त थीं। उनके अनुशासन का डंडा बहुत कड़ा था। वह हर समय टोका-टाकी करती रहती थीं। जरा-जरा सी बात पर बच्चों को ड़ाॅंट लगाती और पनिश्मेंट देती रहती थीं।
अभी तक काव्या ने घर में कभी भी अपने हाथ से खाना नहीं खाया था। या तो दादी या फिर मम्मी उसे प्यार से पुचकार कर खिलाया करती थीं। लेकिन स्कूल में न तो दादी होती थीं और न ही मम्मी। वहाॅं तो टिफिन अपने हाथ से ही खाना पड़ता था। दूसरे ही दिन स्कूल में खाना खाते समय उसके फ्राक पर जरा सी सब्जी गिर
गयी। सब्जी गिरी तो फ्राक पर हल्दी, तेल का पीला सा दाग लग गया। दाग देखते ही मैड़म भड़क उठीं। ‘‘काव्या, यू आर ए डर्टी गर्ल। यू डोण्ट नो मैनर हाउ टू ईट।’’
मैडम की ड़ाॅंट से काव्या रुआंसी हो गई। स्कूल में पूरे समय उसके मन में घबड़ाहट और एक अपराध-बोध पलता रहा। उस दिन भी घर लौटी तो वह गुमसुम सी थी।
‘‘क्या बात है मेरी रानी बेटी....आज तुम उदास क्यों हो ?’’ मम्मी ने पूछा तो काव्या ने अपनी फ्राक पर लगा दाग दिखला दिया था।
‘‘बस इत्ती सी बात ? अरी पगली ! इसमेें उदास होने की क्या बात है। फ्राक को मैं धुल दूॅंगी तो दाग गायब हो जाएगा। कल स्कूल तुम दूसरा फ्राक पहन कर चली जाना।’’ मम्मी ने कहा तो काव्या की जान में जान आयी।
एक इतवार की रात दादी के पास लेटी काव्या उनसे देर रात तक कहानियाॅं सुनती रही। स्कूल जाना था इसलिए अगले दिन सवेरे मम्मी ने उसे कच्ची नींद जगा दिया था। वह हड़बड़-तड़बड़ तैयार हुयी और स्कूल चली गयी। रात में नींद तो पूरी हुयी नहीं थी, इसलिए कक्षा में बैठे-बैठे उसको नींद आने लगी थी। मैडम पढ़ा रहीं थीं अचानक तभी उसे झपकी आ गई। मैडम ने उसे झपकी लेते देख लिया था। फिर तो मैडम का पारा एकदम से गरम हो गया। उन्होंने काव्या को जमकर फटकार लगाई और सजा के तौर पर उसे बेंच के ऊपर खड़ा करा दिया था। उस दिन भी काव्या रोते-रोते घर लौटी थी। उसकी मम्मी ने दुलार कर, पुचकार कर जैसे-तैसे उसको शान्त किया था।
और आज फिर एक चूक हो गयी काव्या से। लंच ब्रेक में टिफिन बाक्स में रखा पराठा खाने के बाद काव्या कक्षा से बाहर निकली तो सामने फूलों की क्यारी में उसे फूल पर बैठी एक बड़ी सी तितली दिख गई। तितली को देखते ही वह सब कुछ भूल कर उसे पकड़ने को लपकी। उसे हाथ बढ़ाते देख तितली उड़ी और बगल वाली क्यारी में जा पहॅंुची। उसके पीछे काव्या भी बगल की क्यारी की ओर भागी।
फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा। उस तितली को भी शायद काव्या के साथ खेलने और उसे छकाने में मजा आने लगा था। काव्या ज्यों ही पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाती तितली उड़ कर दूसरे फूल पर जा बैठती। काव्या उसके पीछे दूसरे फूल तक जाती और हाथ बढ़ाती तो तितली उड़ कर अगली क्यारी में चली जाती थी। काव्या अगली क्यारी की ओर दौड़ती तो तितली उड़ कर उससे आगे वाली क्यारी में बैठ जाती थी। इस प्रकार वह रंगीन तितली काव्या को ललचाती रही, छकाती रही और स्कूल का अनुशासन भूल कर काव्या उसके पीछे-पीछे दौड़ती रही।
लंच का समय कब समाप्त हो गया तितली के साथ छू-पकड़ के खेल में मगन काव्या को यह पता ही नहीं चला। उधर मैडम कक्षा में आयीं और अटेण्डेंस लेने लगीं तो काव्या उनुपस्थित मिली। काव्या...? काव्या...? काव्या....? बच्चों पर नजर दौड़ाते हुए
मैडम ने दूसरी और फिर तीसरी बार आवाज लगायी लेकिन जबाब तो तब मिलता जब काव्या क्लास में उपस्थित होती। मैडम की नजरें उसको ढ़ूॅंढ़ रही थीं तभी किसी लड़की ने बताया-‘‘मैडम ! काव्या तो बाहर फूलों की क्यारी में तितली पकड़ रही है।’’
इतना सुनना था कि मैडम का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहॅंुचा। उन्होंने आया को भेज कर काव्या को पकड़ कर बुलवाया और उसे खूब ड़ाॅंट लगाई। न सिर्फ इतना बल्कि उसको पीछे वाली बेंच पर काफी देर तक खड़ा रखा और उसकी ड़ायरी में शिकायत भी लिख दी।
‘‘काव्या ! योर विहैवियर इज वेरी बैड। यू आर आलवेज वायलेटिंग द डिसिप्लीन। टुमारो यू बिल कम विद योर पैरेण्ट। अदरवाइज यू बिल नाट बी एलाउड इन क्लास।’’ मैडम ने डाॅंटते हुए कहा और पूरे पीरियड उसको कक्षा में सबसे पीछे वाली बेंच पर खड़ा रखा। यही कारण था कि आज स्कूल से लौटने के बाद से ही काव्या उदास और परेशान थी। वह परेशान थी कि अगर उसने अपनी ड़ायरी दिखलायी तो पापा गुस्सा होंगे, मम्मी भी ड़ाॅंट लगायेंगी और अगर कल सवेरे वह पापा को साथ लिए बगैर स्कूल जाएगी तो मैडम स्कूल से बाहर कर देंगी। नन्हीं सी जान समझ नहीं पा रही थी कि करे तो क्या करे।
खा-पी कर काव्या के सो जाने के बाद उसकी मम्मी ने स्कूल बैग से निकाल कर उसकी ड़ायरी देखी तो काव्या की उदासी की वजह उनकी समझ में आ गयी। शाम को पापा आफिस से लौटे तो मम्मी ने उनको अकेले में सारी बात बता दी।
‘‘क्या बात है रानी बेटी, आज तुम उदास क्यों हो ? स्कूल में किसी से झगड़ा हो गया क्या ? या तुम्हारी मैडम ने कुछ कहा...? क्या बात हो गई ?’’ काव्या को गोद में ले कर पापा ने बिल्कुल अनजान बनते हुए पूछा।
डरी, सहमी सी काव्या अपने होंठ सिले रही। मारे भय के वह कुछ भी नहीं बता रही थी।
‘‘बताओ बेटी, आज तुम इतनी उदास क्यों हो ? अच्छा चलो...पापा के कान में बता दो। दादी ने कुछ कहा है क्या ? या मम्मी ने ड़ाॅंट लगायी है।’’ पापा ने फिर पुचकारते हुए पूछा।
पापा के प्यार, मनुहार और पुचकार से काव्या थोड़ी सहज हुयी। उसने ड़रते-ड़रते स्कूल वाली बात पापा को बता दी।
‘‘अरे ! तो इसमें परेशान होने की क्या बात है मेरी गुडि़या। मैं कल तुम्हारे साथ चलूॅंगा तुम्हारे स्कूल। और तुम्हारी मैडम से बात भी कर लूॅंगा। तुम जरा भी मत घबड़ाओ।’’ पापा ने काव्या का गाल थपथपाते हुए कहा तो उस बेचारी की जान मेे जान आयी।
अगले दिन काव्या के साथ उसके पापा स्कूल गए। उनको देखते ही मैडम ने काव्या की शिकायतों की झड़ी लगा दी-‘‘मिस्टर श्रीवास्तव, योर डाटर इज वेरी नानसीरियस। शी नोज नो मैनर। शी डोन्ट फालो डिसीप्लीन। शी डजन्ट पे अटेन्शन इन क्लास रूम। शी इज टू मच टाकेटिव। वी कांट टालरेट इट। यू शुड केयर हर।’’
काव्या के पापा कुछ देर तक तो चुपचाप सुनते रहे फिर एकदम से बोल पड़े-‘‘माफ कीजिएगा मैडम, मुझे आपके स्कूल का तौर-तरीका बिल्कुल भी पसंद नहीं है। मासूम बच्चों के साथ ऐसे विहेव किया जाता है कही ? यह स्कूल है कि जेलखाना ? नन्हें फूल जैसे बच्चों पर इतना कठोर अनुशासन ? इनका बचपना ही छीन लेना चाहती हैं आप लोग ? मुझे अपनी बच्ची को मशीन नहीं बनाना है। आप अपनी डिसिप्लीन और मैनर लिए बैठे रहिए। मैं इसे घर ले जा रहा हूॅं। कल से आप के स्कूल में पढ़ने नहीं आएगी मेरी बेटी।’’
मैडम को सपने में भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि कोई अभिवावक ऐसा भी कह सकता है। उन्होंने तो सोचा था कि काव्या के पापा बेटी की गलती के लिए माफी माॅंगेगे, रिग्रेट करेंगे, काव्या को ड़ाॅंट लगायेंगे लेकिन यहाॅं तो मामला ही उल्टा निकला।
‘‘आप को पता है मिस्टर श्रीवास्तव कि आप क्या कह रहे हैं। इस स्कूल में एडमिशन के लिए बच्चों के पैरेण्ट नाक रगड़ते हैं, जाने कहाॅं-कहाॅं की सिफारिसें लगवाते हैं, और आप अपनी बेटी को यहाॅं से निकालने की बात कर रहे हैं ?’’
‘‘जी, पता है मुझे कि आप का स्कूल शहर का सबसे नामी स्कूल है। यह भी पता है कि यहाॅं बच्चों को एडमिशन बहुत मुश्किल से मिलता है। लेकिन मेरे लिए आपके स्कूल के बड़े नाम और आपकी डिसिप्लीन के मुकाबले अपनी बच्ची का बचपन अधिक महत्वपूर्ण है। पढ़ाई तो यह साल, दो साल बाद भी कर लेगी। इस स्कूल से न सही किसी दूसरे स्कूल से कर लेगी। लेकिन इसकी यह तितलियों के पीछे भागने वाली वेशकीमती उम्र लौट कर दोबारा नहीं आने वाली। कुछ समझा आपने ?’’
कोई जबाब नहीं दिया मैडम ने। हक्का-बक्का हो वह काव्या के पापा का मुॅंह ताकती रहीं। ‘निश्चित ही दिमाग से पैदल आदमी है यह’ मैडम मन में सोचती रहीं।
‘‘अच्छा मैडम नमस्कार। आपको भी और आपके स्कूल को भी।’’ काव्या के पापा ने कहा और काव्या को अपने साथ ले कर स्कूल से बाहर निकल आए। मैडम अवाक बनीं उनका जाना देखती रहीं।