सुनो कहानी

बाल कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

6/4/20201 मिनट पढ़ें

स्कूल से लौटी एकता गेट के अंदर घुसते ही दौड़ कर अपनी दादी से चिपट गयी। दादी उस समय घर के बाहर छोटे से लान में कुर्सी ड़ाले बैठीं कोई किताब पढ़ रही थीं।
‘‘क्या बात है आज मेरी रानी बिटिया बहुत खुश नजर आ रही है।’’ एकता को देखते ही दादी ने हाथ में पकड़ी किताब सामने स्टूल पर रख दिया और उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए बोलीं।
‘‘अब मजा आएगा दादी, आज के बाद बड़े दिन की छुट्टियाॅं हो गयीं। पूरे दस दिनों के लिए स्कूल बंद। अब रोज रात में एक नई कहानी सुनानी पड़ेगी आपको।’’ एकता ने चहकते हुए बताया।
‘‘क्यों, तुमको होमवर्क नहीं मिला है क्या स्कूल से ?’’
‘‘मिला है न, तो उससे क्या हुआ। मेरे पास सारा दिन भी तो रहेगा। दिन में होम वर्क कर लिया करूॅंगी और रात में आप से कहानी.....।’’
‘‘अच्छा चल, पहले हाथ-मुॅंह धो ले, कुछ खा-पी ले फिर बैठ कर बातें करेंगे।’’ दादी ने कहा और एकता को ले कर घर के अंदर चली गयीं।
और दिनों तो एकता स्कूल से लौटने के बाद खा, पी कर अपना होम वर्क पूरा करने बैठ जाती थी लेकिन आज सारे दिन वह दादी के आसपास ही मॅंड़राती रही और बड़़-बड़-बड़-बड़, बड़़-बड़-बड़-बड अपने टीचर, अपनी सहेलियों तथा अपने स्कूल की बातें बताती रही। दादी भी मगन हो उसकी बे सिर-पैर की बातें सुनती और हुॅंकारी भरती रहीं। रात का खाना खाने के बाद वह दादी के पास उनकी रजाई में घुस गई।
‘‘दादीजी, चलिए अब कोई मजेदार कहानी सुनाइए फटाफट।’’ एकता ने दादी से फरमाइश की।
‘‘कहानी....? अरी अब तो तू इत्ती बड़ी हो गई है......बड़े बच्चे कहीं कहानी सुनते हैं क्या ?’’ दादी बोलीं।
‘‘नहीं दादी यह सब बहाना नहीं चलेगा। कहानी तो आप को सुनानी ही पड़ेगी।’’ सीधी लेटीं दादी का मुॅंह अपनी तरफ घुमा कर एकता ने जिद की।
‘‘अच्छा चल आज तुझे मैं सूरज और चंद्रमा की कहानी सुनाती हूॅं। यह जो दिन में चमकता है न वह सूरज और रात में चमकने वाला चंद्रमा दोनों सगे भाई हैं। ये दोनों जब छोटे थे तो अपनी अकेली माॅं के साथ रहते थे। एक बार की बात है, उन्हें कहीं दावत खाने का निमंत्रण मिला। दोनों भाई जब घर से निकलने लगे.......।’’
‘‘गलत....दादी बिल्कुल गलत। सूरज और चंद्रमा कोई आदमी थोड़े न हैं जो भाई-भाई होंगे और दावत खाने जायेंगे। यह सूरज तो एक तारा है। हमारी धरती इसके चारों तरफ घूमती है। और चंद्रमा हमारी धरती का एक उपग्रह है जो धरती के चारों ओर घूमता रहता है। सूरज और चंद्रमा दोनों ही तरह-तरह की गैसों तथा धूल, मिट्टी से बने गोले है।’’ कहानी सुना रहीं दादी की बात बीच में ही काट कर एकता बोल पड़ी।
‘‘ऐसा नहीं कहते बेटी। सूरज और चंद्रमा दोनों ही हमारे देवता हैं। इनकी पूजा की जाती है। तू देखती नहीं, मैं रोज सवेरे नहाने के बाद सूरज देवता को जल चढ़ाती हूॅं। इन दोनों देवताओं के ही नाम पर रविवार और सोमवार के दिन बनाए गए हैं।’’ दादी ने कहा।
‘‘इसका मतलब दादी आप कुछ नहीं जानतीं। सुनिए मैं बताती हूॅं।’’ एकता ने बताना शुरू किया-‘‘अब से कई हजार करोड़ साल पहले अंतरिक्ष में कई प्रकार के गैसों के मिलने से एक बहुत जोरदार धमाका हुआ था। उस धमाके से आग का एक बहुत बड़ा गोला बना। इसी गोले को सूरज कहा जाता है। धमाके के कारण सूरज के चारों ओर धूल के कण फैल गए। फिर क्या हुआ कि गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण धूल के कण आपस में जुड़ कर पत्थर बन गए। और इस प्रकार हमारी पृथ्वी तथा इसी तरह के ढ़ेर सारे दूसरे ग्रह बने।’’
‘‘देख बिटिया, सूरज के बारे में तो मुझको नहीं पता लेकिन चंद्रमा तो समुद्र मंथन से निकला था। हमारे पुराणों में लिखा है कि अमृत की तलाश के लिए देवताओं तथा राक्षसों ने मिल कर समुद्र का मंथन किया था। जैसे मथानी से दही को मथा जाता है न ठीक उसी तरह मंदराचल पर्वत को मथानी तथा शेषनाग को रस्सी बना कर देवताओं और राक्षसों ने समुद्र को मथा था। उस मंथन मंे समुद्र के अंदर से कुल चैदह प्रकार के रत्न निकले थे जिसमें एक चंद्रमा था।’’ दादी ने कहा।
‘‘नहीं दादी यह बात भी गलत है। मैं बताती हूॅं कि चंद्रमा कैसे बना। हमारी धरती के जैसे ही ढ़ेर सारे छोटे, बड़े ग्रह सूरज के चारों तरफ तेजी से चक्कर लगा रहे थे। फिर क्या हुआ कि चक्कर लगाते लगाते थिया नाम का एक बड़ा सा ग्रह बहुत तेजी से आ कर धरती से टकरा गया। उस टक्कर से धरती का एक हिस्सा टूट कर उससे अलग हो गया। धरती से टूटा यही हिस्सा चंद्रमा बन गया और धरती के चारों ओर चक्कर लगाने लगा।’’ एकता ने बताया।
‘‘अरी मेरी गुड़िया, तू तो बिल्कुल नई और अनोखी बातें बता रही है रे। लेकिन ये सब बातें तुमने जाना कहाॅं से ?’’ आश्चर्य से भरीं दादी ने पूछा।
‘‘यह सब मेरी विज्ञान की किताब में लिखा है न दादी। वहीं से तो पढ़ा है मैंने। अच्छा चलिए, छोड़िए इस बात को। अब कोई दूसरी कहानी सुनाइए।’’ एकता बोली।
‘‘तो चलो तुमको सोनपरी की कहानी सुनाती हूॅं। बड़ी-बड़ी नीली आॅंखों, चाॅंदी के जैसे चमचमाते लम्बे बालों तथा सुनहले पंखो वाली एक सुन्दर सी परी थी जिसका नाम था सोनपरी। वह परीलोक में रहती थी।’’
‘‘दादी यह परीलोक कहाॅं है ?’’ दादी ने अभी कहानी शुरू ही की थी कि एकता पूछ बैठी।
‘‘परीलोक ? आसमान के उस पार, बहुत दूर, एक हरी-भरी, तरह-तरह के फूलों के पौधों, फलदार पेड़ों तथा पानी के झरनों वाली सुन्दर सी जगह है जहाॅं परियाॅं रहती हैं। परियों के उस देश को परीलोक कहते हैं।’’ दादी ने बताया।
‘‘नहीं दादी, यह भी गलत है। अभी तक तो इस धरती के अलावे किसी भी दूसरे ऐसे ग्रह के बारे में पता नहीं चल सका है जहाॅं जीवन हो। वैज्ञानिक लोग अंतरिक्ष में तथा चंद्रमा और मंगल, बुध ग्रहों पर भी जा चुके हैं। अगर सचमुच में परीलोक जैसी कोई जगह होती तो वैज्ञानिकों को पता तो चल ही गया होता।’’ एकता ने कहा।
‘‘तो इसका मतलब कि परीलोक और परियों की जो हम अपने बचपन से ही सुनते आ रहे हैं वो सारी बातें और कहानियाॅं गलत हैं....। क्यों ?’’ दादी ने पूछा।
‘‘हाॅं दादी, एक बार अखबार में भी छपा था कि यह परियों की बातें सिर्फ आदमी के मन की कल्पना हैं। चलिए इसे भी छोड़िए....आप कोई सच्ची-मुच्ची की कहानी सुनाइए।’’
‘‘सच्ची-मुच्ची की कहानी ? अच्छा चलो तुमको एक जादूगर की कहानी सुनाती हूॅं। कहानी नहीं बल्कि अपनी आॅंखों से देखी सच्ची बात बताती हूॅं। कई साल पहले हमारे गाॅंव के कार्तिक के मेले में एक जादूगर आया था। वह अपने मुॅंह से आग उगलता था, हवा में हाथ घुमा कर कोई भी चीज मॅंगा लेता था और देखते ही देखते किसी भी चीज को हवा में गायब कर देता था।’’
‘‘अरी दादी, यह जादू-वादू कुछ नहीं होता....इसमें बस थोड़ा सा विज्ञान और थोड़ी सी हाथ की सफाई होती है। एक दिन मेरे स्कूल में भी एक जादूगर आया था। पहले तो उसने कई तरह के जादू दिखाये फिर खुद ही बताया कि उसको कोई जादू-मंतर नहीं आता है। उसने जो भी दिखाया है वह सब हाथ की सफाई है। जानती हैं दादी, उसने भी अपने मॅंुह से आग उगला था। बाद में खुद बताया कि फास्फोरस यानी गंधक को मुॅंह में रखने के बाद बाहर थूक देने से वह जल उठता है। देखने वालों को लगता है कि जादूगर मुॅंह से आग उगल रहा है। इसी तरह उसने सबके सामने एक हड्डी रखी और मंत्र फूॅंक कर उसके ऊपर पानी ड़ाला तो हड्डी से धुवाॅं निकलने लगा। सभी लोग समझे कि कोई जादू है। लेकिन बाद में जादूगर ने खुद बताया कि उसने हड्डी पर पहले से ही गंधक का लेप लगा कर सुखा दिया था। गंधक पर पानी पड़ा तो वह जल उठा।’’
‘‘अरे बाप रे, तू तो मेरी भी दादी निकली। जाने कितनी नई-नई बातें बता दीं तुमने मुझको। अच्छा चलो अब सो जाओ। कल से तुम मेरी दादी और मैं तुम्हारी पोती। तुम कहानी सुनाना और मैं सुनूॅंगी। ठीक ?’’ दादी ने हॅंसते हुए कहा और एकता को सीने से चिपका कर उसकी पीठ पर थपकी देने लगीं।

Related Stories