समय-यान
बाल कहानी
दादा जी अपने पुराने दिनों का बखान करने का कोई भी अवसर नहीं चूकते थे। बस जरा सा मौका मिला नहीं कि शुरू हो जाते थे-हमारे समय में ऐसा था, हमारे समय में वैसा था, हमारे समय में यह होता था, हमारे समय में वह होता था। उनकी बातें सुन कर बंटी सोचता कि काश ! उसके पास कोई ऐसा यंत्र होता जिसके माध्यम से वह बीत चुके समय अथवा आने वाले समय के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता। या कोई छोटा सा ऐसा यान होता जिसमें बैठ कर वह भूतकाल या भविष्य काल में मनचाहे समय में पॅंहुच जाता।
बंटी काफी दिनों से समय-यान बनाने की तैयारी में जुटा हुआ था। और एक दिन उसकी खुशी का ठिकाना न रहा जब छोटे-छोटे चार पहियों के ऊपर उसका समय-यान बन कर तैयार था। उस समय-यान में बैठ कर वह आने वाले समय अथवा बीत चुके समय में जा सकता था। समय-यान में एक व्यक्ति के बैठने भर की जगह थी। बैठने की सीट के सामने एक छोटा सा कम्प्यूटर लगा था जो समय-यान का नियंत्रण बिन्दु था। सीट के नीचे एक छोटा सा इंजन लगा था और इंजन से जुड़ा हाइड्रोजन गैस का सिलिण्डर था जो समय-यान के ईधन के रूप में प्रयुक्त होता था। उस समय-यान में यह व्यवस्था थी कि इसमें बैठ कर भूत या भविष्य के मनचाहे समय में, मनचाही जगह पहुंचा जा सकता था। कम्प्यूटर के की-बोर्ड में जो समय और स्थान भरो, यान उस स्थान के उस समय में पॅंहुचा देता था।
छत पर रखे समय-यान का बंटी ने बारीकी से निरीक्षण किया और उसका खिड़कीनुमा दरवाजा खिसका कर अन्दर जा बैठा। बीत चुके समय के बारे में वह काफी कुछ पढ़ चुका था और दादा जी के मुंह से सुन चुका था, इसलिए वह भविष्य के बारे में जानने और उसे देखने के लिए उत्सुक था। कम्प्यूटर ऑन करने के बाद उसने ‘की-बोर्ड‘ पर अब से सौ वर्ष बाद का समय यानी सन् 2123, अपने शहर का नाम इलाहाबाद तथा मुहल्ला सिविल लाइन्स टाइप किया। ‘इन्टर-की‘ दबाने के बाद उसने समय-यान के ‘कम्प्यूटर पर कमांड बटन दबा दिया। कमांड मिलते ही समय-यान में हल्का सा कम्पन हुआ और वह छत पर रेंगने लगा। फिर झटके के साथ उठा और आसमान में उड़ने लगा। समय-यान के अन्दर बैठे बंटी की खुशी का ठिकाना न था वह अब से सौ साल बाद के इलाहाबाद में पॅंहुचने जा रहा था।
कुछ देर के बाद समय-यान के कम्प्यूटर स्क्रीन पर इलाहाबाद सिविल लाइन्स वर्ष-2123 चमका और यान हवा में एक निश्चित ऊॅचाई पर आकर ठहर गया। बंटी नीचे की तरफ देखने लगा। नीचे का दृश्य देखते ही वह बुरी तरह से चौंक पड़ा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह इलाहाबाद में ही है। पेड़-पौधों और हरियाली के लिए मशहूर सिविल लाइन्स में दूर-दूर तक हरियाली का नामोनिशान तक नहीं था। सड़कों के किनारे लगे बड़, पीपल, आम, महुवा आदि के पेड़ गायब हो चुके थे। जिधर देखो उधर, आसमान छूतीं बहुमंजिली इमारतें खड़ी थीं। सड़कें पहले के मुकाबले अधिक चौड़ी हो चुकी थीं फिर भी उन पर इतनी अधिक भीड़ थी मानो कुंभ का मेला लगा हो। सड़कों पर अनेक प्रकार के छोटे-बड़े वाहन एक-दूसरे के पीछे बेतहाशा भागते चले जा रहे थे। पैदल चलने वालों के लिए सड़क के किनारे गैलरी बनी थी जो ऊपर से किसी विशेष प्रकार की धातु से बने छत से ढ़ॅंकी थी।
एक विशेष बात जो बंटी ने देखी वह यह थी कि पैदल चल रहे लोग अपने शरीर को एक खास किस्म के लबादा से ढ़ॅंके हुए थे। सर के ऊपर भी वे कुछ अलग किस्म का हेलमेट पहने हुए थे जिससे उनका चेहरा ढ़ॅंका था। उस हेलमेट में ऑंखों के सामने दो छेद थे जिनमें मोटे-मोटे लेन्स लगे थे तथा नाक के स्थान पर बने दो छेदों से रबड़ की दो पतली-पतली नलियां निकल कर उनकी पीठ की तरफ गई थीं। बंटी ने ध्यान से देखा तो पाया कि हर किसी की पीठ पर थर्मस के आकार के छोटे-छोटे गैस सिलिण्डर बंधे थे। नाक से निकली रबड़ की नलियां इन्हीं सिलिण्डरों से जुड़ी थीं।
‘‘मैं कहीं, किसी दूसरे देश में तो नहीं आ गया ? क्या यह मेरा अपना शहर इलाहाबाद है ? क्या सचमुच यह सिविल लाइन्स ही है ?‘‘ बंटी ने अपने आप से प्रश्न किया और समय-यान के कम्प्यूटर स्क्रीन को दुबारा देखा। वहां बड़े-बड़े अक्षरों में ‘इलाहाबाद-सिविल लाइन्स वर्ष-2123‘ लिखा चमक रहा था।
अपने बदले हुए शहर को और भी निकट से देखने की इच्छा से बंटी समय-यान को धीरे-धीरे नीचे की तरफ उतारने लगा। कुछ ही मिनटों के बाद समय-यान एक अट्ठासी मंजिली इमारत की छत पर आ कर ठहर गया। बंटी ने झट खिड़की खिसकायी और यान से बाहर निकल आया। यान से बाहर आते ही वह धुवें के घने कोहरे से घिर गया। कुछ देर बाद ही उसकी आंखों में तेज जलन होने लगी और सांस लेने में भी कठिनाई महसूस होने लगी।
‘‘ओह ! तो इतना अधिक प्रदूषण हो चुका है यहां का वातावरण ? अब समझ में आया कि सड़क पर जा रहा हर व्यक्ति अपने चेहरे पर मास्क पहने तथा पीठ पर शुद्ध वायु का सिलिण्डर लिए क्यों घूम रहा है ?‘‘ बंटी ने मन ही मन सोचा और सड़क की तरफ देखने लगा। सड़क पर मोटर, गाड़ियों की भीड़ थी। सड़क के किनारे मास्क, हेलमेट, आक्सीजन सिलिण्डर, बोतलबन्द पानी तथा दवाइयों आदि की ढ़ेरों दुकानें दिख रही थीं।
‘‘अरे ! इस जगह पर तो किताबों और पत्रिकाओं की एक बड़ी सी दुकान हुआ करती थी। उसके बगल में एक सिनेमा घर था। और उसके बाद सड़क के किनारे चाट-पकौडे़, मिठाई-समोसे आदि की कई दुकानें थीं। वे सब कहां गईं ?‘‘ बंटी ने हैरान होकर अपने आप से पूछा। अचानक तभी उसके पूरे शरीर में तेज जलन सी होने लगी। प्यास के मारे उसका गला सूखने लगा। उसे ऐसा लगा कि यदि वह दो मिनट भी और खड़ा रह गया तो उसकी चमड़ी झुलस जाएगी। वह जल्दी से भाग कर समय-यान के अन्दर जा घुसा और समय-यान को स्टार्ट करके आसमान में उड़ गया।
बंटी को सहसा ध्यान आया कि अगले ही चौराहे पर विशाल कम्पनी बाग स्थित था जिसमें सैकड़ों पुराने पेड लगे थे। बाग के बीच में एक तालाब था जिसमें कमल के फूल खिले रहते थे। तालाब के चारों ओर भॉंति-भॉंति के फूलों की क्यारियॉं थीं। उसने समय-यान को कम्पनी बाग की तरफ मोड़ दिया। कम्पनी बाग पॅंहुच कर बंटी को पुनः एक झटका सा लगा। सैकड़ांे फलदार वृक्षों तथा भांति-भांति के फूलों की क्यारियों वाला हरा-भरा कम्पनी बाग समाप्त हो चुका था। उसकी जगह अब एक बहुमंजिली आवासीय कालोनी बन चुकी थी। सड़क के किनारे जहॉं पहले फूलों की नर्सरी हुआ करती थी, वहां दुकानें बन चुकीं थीं। वायु मंडल में चारों तरफ एक कोहरा सा छाया हुआ था। सड़कों पर भागम-भाग मची थी। वाहनों का बेतहाशा शोर था। भीड़ इतनी अधिक थी कि कहीं तिल रखने तक को जगह नहीं थी।
‘‘नहीं ई...ई.....ऐसा नहीं हो सकता। मेरा हरा-भरा, शांत-सुन्दर शहर इतना खराब नहीं हो सकता...।‘‘ बंटी एकदम से चीख उठा।
‘‘क्या हुआ बंटी ? तुम नींद में चीख क्यों रहे हो ?‘‘ बंटी की मम्मी ने उसे झिझोड़ कर जगाया।
‘‘तो क्या अभी तक मैं सपना देख रहा था...?‘‘ ऑंखे मलते हुए बंटी ने पूछा।
‘‘हां बेटा ! लगता है तुम कोई भयानक सपना देख रहे थे।‘‘ मम्मी ने कहा।
‘‘आप ठीक कह रही हैं मम्मी। वास्तव में मेरा सपना बहुत भयानक था। ईश्वर करे सपने में देखी बातें सपना ही रहें, कभी सच न हों। मेरा हरा-भरा शहर इलाहाबाद ऐसा ही हरा-भरा और प्रदूषण मुक्त बना रहे।‘‘ बंटी बोला।
‘‘अरे ! तू यह कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है। शहर को भला क्या होने वाला है..? शहर तो जैसा था वैसा ही है।‘‘ मम्मी ने कहा।
‘‘मैं इस समय की नहीं मम्मी अब से सौ साल बाद के इलाहाबाद की बात कर रहा हॅू। सपने में मैंने सौ साल बाद का इलाहाबाद देखा है। यदि जनसंख्या और प्रदूषण इसी तरह बढ़ता रहा तो सौ सालों के बाद सड़कों पर चलने तक को जगह नहीं मिलेगी। वायुमंडल इतना प्रदूषित हो जाएगा कि सांस लेने के लिए शुद्ध हवा नहीं मिलेगी। बढ़ते शोर के कारण लोगों की सुनने की शक्ति क्षीण हो जाएगी। और ओजोन की पर्त नष्ट होने के कारण सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर आने लगेंगी। फिर तो इतने तरह-तरह के रोग पैदा होंगे कि जीवन का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। अगर पेड़-पौधे इसी प्रकार कटते रहे तो यह धरती रेगिस्तान बन कर रह जाएगी। पानी के अभाव में लोग प्यासे मर जायेंगे।‘‘ बंटी ऐसे बोलता जा रहा था जैसे कोई टेप चल रहा हो।