सच मानो...

कविता

Akhilesh Srivastava Chaman

5/20/20211 मिनट पढ़ें

सच मानो,

हमें तब ही लगता है

सबसे अधिक ड़र

जब सीना ठोंक कहते हो तुम

ड़रो मत

मेरे होते बिल्कुल भी मत ड़रो।

सच मानो,

उसी क्षण होती है

सर्वाधिक बेचैनी

जब आश्वस्त करते हो तुम

निश्चिंत रहो

निर्भय हो चैन से जीओ।

सच मानो,

महसूसता हूॅं

उसी वक्त

सर्वाधिक असुरक्षित

जब देखता हूॅं

अभयदान की मुद्रा में उठे

तुम्हारे हाथ।

सच मानो

वही पल होता है

सर्वाधिक ड़रावना

जब देखता हूॅं अपने आसपास

तुम्हारी मुस्तैद पहरेदारी।

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