राहत की साॅंस
लघु कथा
माॅनिटरिंग सीधे सी0एम0 कार्यालय से हो रही थी। सख्त निर्देश थे कि मामला बहुत पुख्ता होना चाहिए। घेराबंदी ऐसी हो कि बच निकलने की कोई गंुजाइश न रहे। न चाहते हुए भी आपरेशन की कमान आई0जी0 साहब को स्वयं अपने हाथों में लेनी पड़ी थी। छाॅंट-छाॅंट कर सबसे तेज-तर्रार और भरोसेमंद अधिकारियों तथा सिपाहियों की टीम गठित की गई थी। काफी सारे साक्ष्य और तथ्य जुटा लिए गए थे। तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। उच्च स्तर से सिगनल मिलते ही चन्दू जायसवाल की फैक्ट्रियों, गोदामों, कोल्डस्टोर, आफिस तथा आवास आदि सभी ठिकानों पर एक साथ छापे ड़ाले जाने थे। आई0जी0 साहब ऊपर के दबाव के कारण सारी तैयारियों को अंजाम तो दे रहे थे लेकिन मन ही मन बहुत विचलित भी थे। क्या करें....नौकरी है ही ऐसी खराब चीज कि जिसका खाना, उसी का बजाना पड़ता है। वरना चंदू जी के प्रतिष्ठनों पर छापेमारी उनको बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। चन्दू जी के बहुत सारे उपकार थे उनके ऊपर।
हेराफेरी, तस्करी और जालसाजी के रास्ते से राजनीति में आए विधायक चन्द गोपाल जायसवाल उर्फ चन्दू जी पिछली सरकार में एक प्रभावशाली मंत्री थे। बच्चे-बच्चे को पता था कि चंदू जी का सारा काम दो नंबर का है। सभी जानते थे कि उनकी पृष्ठभूमि अपराधिक है। लेकिन चन्दू जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उनका सीधा सा फण्ड़ा था कि ‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’। वे हर संभव गलत तरीके से अधिकाधिक पैसा कमाने और पैसा फेंक कर तमाशा देखने के पक्षधर थे। पिछली बार पैसे के बल पर ही उन्होंने पार्टी का टिकट हासिल किया था, पैसे के बल पर ही चुनाव जीता था और पहली बार विधायक होने के बावजूद पैसे के बल पर ही कैबिनेट मंत्री बन गए थे। जब कि तीन-तीन, चार-चार बार से विधायक हो रहे लोग देखते रह गए थे।
इस बार चन्दू जी खुद तो चुनाव जीत गए थे लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी पार्टी हार गई थी। स्पष्ट बहुमत न होने के बावजूद विरोधी दल ने जोड़-तोड़ कर के सरकार बना ली थी। बहुमत परीक्षण के लिए एक-एक विधायक को टटोला जा रहा था। उसके हृदय परिवर्तन की बोली लगाई जा रही थी। लेकिन चन्दू जी पुट्ठे पर हाथ ही नहीं रखने दे रहे थे। ऐसा नहीं था कि वे बिकना नहीं चाहते थे। बस मौका देख उन्होंने अपनी अंतरात्मा की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ा दी थी।
जब काफी समझाने-बुझाने के बाद भी चन्दू जी रास्ते पर नहीं आए तो सरकार ने उनको औकात बताने का मन बना लिया। उनके ठिकानों पर छापे की तैयारी उसी योजना के तहत हो रही थी। जिम्मेदारी आई0जी0 साहब को दी गई थी। आई0जी0 साहब बलि का बकरा बनना नहीं चाहते थे। वे ड़र रहे थे कि खुदा-न-ख्वास्ता अगर जोड़-तोड़ की यह सरकार नहीं बच पायी और चन्दू जी की पार्टी ने फिर से सरकार बना ली तो उनको नौकरी करनी मुश्किल हो जाएगी।
स्थिति ऐसी बन गई थी कि सभी चिंताग्रस्त थे। मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी की चिंता थी, पार्टी अध्यक्ष को चाहे जैसे भी हो सरकार बचा कर अपनी साख बचाने की चिंता थी, चन्दू जी को दो नम्बर के पैसों से बनाए अपने साम्राज्य की चिंता थी और आई0जी0 साहब को अपने कैरियर की चिंता सता रही थी। ईश्वर की कृपा से ऐसा चमत्कार हुआ कि एक ही साथ सभी को राहत की साॅंस मिल गयी। छापे के लिए निर्धारित तिथि से एक दिन पहले खबर आयी कि चन्दू जी का हृदय परिवर्तन हो गया है। विरोधी दल के तीन अन्य विधायकों सहित उन्होंने सत्ताधारी दल का झंडा थाम लिया है। सुन कर एक साथ ही सभी चिंता मुक्त हो गए।