पिंजड़े में आदमी

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

10/5/20201 मिनट पढ़ें

अपने परिवार के साथ सवेरे का निकला लालू बंदर शाम के समय वापस आया था। वापस आने के बाद पूरे सुंदर वन में घूम-घूम कर वह शहर के बारे में जो बातें बता रहा था उस पर किसी भी जानवर को विश्वास नहीं हो रहा था। वैसे भी लालू बंदर कुछ गप्पी किस्म का जीव है। जब देखो तब बे सिर-पैर की उड़ाता रहता है। इसलिए उसकी बात को सुंदर वन का कोई भी पशु-पक्षी गंभीरता से नहीं लेता है। लेकिन जब लालू के साथ गई उसकी पत्नी लाली बंदरिया तथा उसके दोनों बच्चों सोनू, मोनू ने भी उसकी बात का समर्थन किया तो जानवरों को लगा कि बात में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर है।

दरअसल सुंदर वन के आगे कुछ दूर तक खेत थे और खेतों के बाद शहर की बस्ती शुरू हो जाती थी। सुंदर वन में रहने वाले जानवरों को एक तो सुंदर वन में ही जरूरत की सारी चीजें मिल जाया करती थीं और दूसरे शहर जाने पर आदमियों के द्वारा मारे जाने का खतरा भी बना रहता था इसलिए वे शहर की ओर नहीं जाया करते थे। शहर की तरफ या तो सिर्फ पक्षी जाया करते थे या फिर कभी-कभार बंदर परिवार के जानवर। लालू बंदर कई दिनों के बाद शहर की ओर गया था और वहाॅं से लौटने के बाद आॅंखें नचा-नचा कर अजीबो-गरीब बातें बता रहा था। उसकी बातें सुनने के लिए ढ़ेर सारे जानवर इकट्ठे हो गए थे।

‘‘जानते हो......? इन दिनों पूरा शहर चिड़िया घर बना हुआ है।’’ लालू ने बताया।

‘‘चिड़िया घर....? क्या मतलब...?’’ चालू सियार ने चैंक कर पूछा।

‘‘मतलब ये चालू भाई कि जैसे चिड़िया घर में जानवर पिंजड़ों में बंद रहते हैं और बेवस हो कर चुपचाप पिंजडों की जाली से बाहर देखा करते हैं, इन दिनों शहर में आदमी की हालत वैसी ही हो गयी है। शहर में चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है। बच्चा, बूढ़ा, औरत, मर्द हर कोई अपने-अपने घरों में बंद है और बालकनी में, या खिड़की के उस पार मुॅंह लटकाए बैठा बाहर देख रहा है।’’

‘‘अरे ! ऐसा कैसे हो सकता है भला ? मैंने तो सुना है कि शहर में रात-दिन चहल- पहल रहती है। शहर का आदमी हर समय भाग-दौड़ करता रहता है।’’ टालू जिराफ बोला।

‘‘हाॅं काका, बिल्कुल सही कहा आपने। एक बार की बात है, मेरा मन हुआ कि जरा शहर देख आयें। दो घड़ी रात बीतने के बाद मैं शहर की ओर गई। उतनी रात में भी सड़कों पर इतनी अधिक भीड़ थी कि रास्ता चलना मुश्किल था। दो पहिया, तीन पहिया और चार पहिया वाली ढ़ेर सारी छोटी, बड़ी गाड़ियाॅं सूॅं...सूॅं... करतीं तूफान की तरह आ-जा रही थीं। लग रहा था इनसे कुचल कर अब जान गयी, तब जान गयी। मैं बड़ी मुश्किल से जैसे-तैसे जान बचा कर वापस आ पायी थी।’’ भूरी लोमड़ी ने कहा।

‘‘तुम ठीक कह रही हो भूरी दीदी। मैं भी पहले जब भी शहर की ओर गयी हमेशा भीड़-भाड़ मिलती थी। लेकिन आज यह देख कर हैरानी हुयी कि हर समय आदमियों से भरी रहने वाली शहर की सड़कों पर इतना सन्नाटा क्यों था ? शहर में स्कूल, कालेज, आफिस, फैक्ट्री, मोटर, गाड़ी यहाॅं तक कि सारा बाजार भी बंद पड़ा है। और आदमी अपने घरों के अंदर ऐसे बंद हैं जैसे पिंजड़े में जानवर।’’ लाली बंदरिया बोली।

‘‘ऐसा करो, हरियल तोते को बुलाओ। तोता आदमी के सबसे निकट रहता है और वह आदमी की भाषा भी समझता है। उसको इस बारे में जरूर पता होगा।’’ चालू सियार ने कहा तो बंदर का बेटा सोनू उछलता हुआ गया और हरियल तोते को बुला लाया।

‘‘हाॅं भाई, लालू बंदर की बात सोलह आना सच है। कल हम लोग भी उड़ते-उड़ते शहर की तरफ निकल गए थे। हमें पूरे शहर में एक भी आदमी नहीं दिखा। पहले तो हमें देखते ही बच्चे दौड़ा लेते थे, हमें पकड़ने की कोशिशें करते थे या गुलेल से मारा करते थे। लेकिन कल सारा शहर सूना पड़ा था। हम बे रोक-टोक घूमते रहे। एक घर के लाॅन में पका पपीता दिखा तो हम भर पेट पपीता खाए, लाॅंन की मुलायम घास पर लोट भी लगाए और वापस आ गए।’’ हरियल तोते ने बताया।

‘‘ऐसा करो हरियल भाई, कल तुम अपने पूरे खानदान के साथ शहर जाओ। घरों के आॅंगन और मुॅंड़ेर पर बैठ कर लोगों की बातें सुनो और पता लगाओ कि आखिर ऐसी क्या बात है जो आदमी अपना सारा काम-धाम बंद कर के घरों में कैद हो गया है। हमें यह जानना इसलिए भी जरूरी है कि यदि किसी संकट की बात हो तो हम सुंदर वन वाले भी पहले से ही सावधान हो जायें।’’ टालू जिराफ ने सुझाव दिया।

‘‘मेरी तो राय है कि कालू कुत्ता को भी एक चक्कर शहर की ओर से हो आना चाहिए। बहुत सारे आदमियों ने अपने घरों में कुत्ते पाल रखे हैं। कालू भाई उनसे बातचीत कर के सही बात का पता लगा सकते हैं।’’ चालू सियार ने कहा।

अगले दिन सवेरा होते ही सुंदर वन के सारे तोते शहर की ओर उड़ गए। थोड़ी देर के बाद कालू कुत्ता भी शहर की ओर निकल गया। शाम के समय वापस आने पर उन लोगों ने बताया कि मामला बहुत गंभीर है। शहर में एक ऐसी बीमारी फैली है जो भीड़-भाड़ में जाने से और एक-दूसरे को छू भर लेने से हो जाती है। और सबसे खराब बात यह कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। जिसको भी यह बीमारी लगती है वह चट-पट मर जाता है। तोतों की बातें सुन कर सुंदर वन के सभी पशु-पक्षी घबड़ा गए। किसी के भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में क्या करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि वह खतरनाक बीमारी शहर के बाद सुंदर वन में भी आ जाय। इसलिए सभी भागे-भागे सुंदर वन के सबसे बुजुर्ग और बुद्धिमान जानवर पीलू हाथी के पास गए।

‘‘पीलू दादा....पीलू दादा ! लगता है कोई बहुत बड़ी मुसीबत आने वाली है हम पर।’’ लालू बंदर ने कहा और सारे पशु-पक्षी पीलू हाथी को घेर कर बैठ गए। हरियल तोते ने और कालू कुत्ते ने शहर में देखी और सुनी सारी बातें पीलू हाथी को बतायीं।

‘‘परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। हम जानवर लोग प्रकृति के साथ तालमेल बिठा कर रहा करते हैं इसलिए हमको कोई खतरा नहीं होगा। तुम लोग बस इतना ध्यान रखो कि भूल कर भी न तो शहर की तरफ जाओ और न ही शहर के किसी आदमी को अपने सुंदर वन में आने दो। आदमी जाति वालों को अपने किए की सजा भुगतने दो।’’ सारी बातें सुनने के बाद पीलू हाथी ने कहा।

‘‘आदमी जाति को अपने किए किए की सजा....? क्या मतलब...? हम कुछ समझे नहीं दादा।’’ चालू सियार बोला।

‘‘दरअसल आदमी की जाति बहुत स्वार्थी है। यह प्रकृति का बेहिसाब दोहन करती है। प्रकृति एक सीमा तक तो बर्दाश्त करती है लेकिन जब अति हो जाती है तो आदमी को उसकी औकात बताने के लिए ऐसी ही महामारी लाया करती है।’’ हाथी दादा ने बताया।

‘‘हाॅं दादा, आदमी लोग बात कर रहे थे कि कोई इतना छोटा जिवाणु आया है जो आॅंखों से दिखलायी भी नहीं पड़ता लेकिन आदमी के शरीर के अंदर घुसते ही उसका काम तमाम कर देता है।’’ तोते ने बताया।

‘‘लेकिन पीलू दादा, आखिर ऐसी स्थिति आयी ही क्यों ? आदमी तो अपने को सबसे अधिक बुद्धिमान और ताकतवर समझता है। फिर वह इतने छोटे से जिवाणु से भी नहीं जीत पा रहा है ?’’ चिंकी गिलहरी ने पूछा।

‘‘ऐसा ही होता है चिंकी, हर सेर को कभी न कभी सवा सेर मिलता ही है। यह जो कुछ हो रहा है, सब आदमी के बुरे कर्मों का परिणाम है। हम जानवर लोग तो बस भर पेट खाना मिल जाए तो संतोष कर लेते हैं लेकिन आदमी के साथ ऐसा नहीं है। आदमी बहुत लालची होता है। उसे चाहे जितना भी मिल जाए संतोष नहीं होता है। अपनी लालच के चलते उसने धरती, आकाश, नदी, पहाड़ और जंगल आदि सबको नष्ट कर दिया है। जानते हो...? पहले शहर बहुत छोटा था और हमारा सुंदर वन वहाॅं शहर तक तक फैला हुआ था। लेकिन आदमी ने पेड़ों को काट कर और तालाबों को पाट कर अपने घर तथा सड़कें बना ली हैं। बेहिसाब मोटर, गाड़ी, कल-कारखानों और घातक रसायनों आदि से आदमी ने हवा, पानी, पेड़-पौधों और अन्न, फल सभी कुछ प्रदूषित कर दिया है। मूर्ख आदमी यह नहीं सोचता कि उसको स्वंय भी इसी धरती पर, इसी प्रदूषित हवा, पानी और अन्न, फल के सहारे जिंदा रहना है।’’

‘‘तो इसका मतलब यह हुआ गोलू दादा कि इस भयानक बीमारी के लिए आदमी खुद जिम्मेदार है ?’’ लाली बंदरिया ने पूछा।

‘‘हाॅं, बिल्कुल यही बात है। अपनी परेशानी के लिए आदमी की जाति स्वंय जिम्मेदार है। आदमी ने प्रकृति के साथ इतना अधिक अत्याचार किया है कि अब प्रकृति उससे बदला ले रही है। यह महामारी आदमी के लिए प्रकृति की चेतावनी तथा उसके किए की सजा है।’’ गोलू हाथी ने बताया।

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