पापा की आत्मा

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

6/30/20221 मिनट पढ़ें

‘‘अरी अन्नू ! कल शाम गुड्डू की स्कूल ड्रेस प्रेस नहीं की थी क्या तुमने.....? एक बार का कहा तू सुनती ही कब है। चल जल्दी से प्रेस कर दे। उसको स्कूल की देर हो रही है।’’ मम्मी की आवाज कानों में पड़ी उस समय अल्पना खुद कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी।

‘‘मैंने नहीं की प्रेस तो क्या वह खुद से नहीं कर सकता है ? मुझको भी तो कॉलेज की देर हो रही है।’’ अल्पना ने अपने कमरे से ही जबाब दिया।

‘‘और अगर तू ही कर देगी तो क्या छोटी हो जाएगी या कि तेरे हाथ घिस जायेंगे ? हर बात में लड़के के साथ बराबरी क्यों करती रहती है तू....? चल, बाकी काम छोड़....उसकी ड्रेस प्रेस कर के दे पहले।’’ मम्मी ने घुड़कते हुए कहा तो मन ही मन चिढ़ उठी वह।

‘‘घोड़े जैसा हो गया है लेकिन इनके लिए अभी बच्चा ही है। बाकी बातों में तो बहुत सयाना बनता है। सभी को अकल बॉंटता फिरता है। और अपने दो कपड़े भी प्रेस नहीं कर सकता। नबाब साहब के कपड़े धोऊॅं भी मैं, समेटूॅं भी मैं और प्रेस भी मैं ही करूॅं। जैसे मेरे पास अपना कोई काम ही नहीं है। ऐसा करो मम्मी, कोई धोबी रख दो अपने साहबजादे के लिए।’’ अल्पना तेज आवाज में बड़बड़ाती, मम्मी को सुनाती हुयी आयी और छोटे भाई के कपडों पर प्रेस करने लगी।

‘‘बहुत बढ़-बढ़ के बोलने लगी है तू...। बाप ने सर चढ़ा कर दिमाग खराब कर दिया है तुम्हारा। मिल गई कोई ढ़ंग की सास तब पता चलेगा तुझे।’’मम्मी किचन के अंदर से ही उसको सुनाती रहीं।

‘‘अरे ! यह मॉं है कि मेरी दुश्मन। अपनी सगी मॉं कहीं ऐसी होती है क्या ? आखिर क्यों हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती है यह। शायद पापा जो अपने चारों बच्चों में सबसे अधिक मुझको प्यार करते हैं उसे देख कर चिढ़ती है। या कि पहली औलाद मैं लड़की पैदा हुयी और मेरे बाद भी दो बेटियॉं, इस बात का गुस्सा निकालती रहती है।’’ कालेज के लिए घर से निकली अल्पना रास्ते भर यही सोचती जा रही थी। मॉं जब भी जली-कटी सुनाती हैं, अल्पना के मन में झल्लाहट होती है और वह ऐसा ही सोचा करती है।

‘‘देखा कमला ! कितने अच्छे नम्बर ले आयी है मेरी रानी बिटिया। केवल सात नम्बरों से फर्स्ट डिविजन रह गया है इसका.....और वह भी तुम्हारी वजह से।’’ कल्पना का इण्टरमीडिएट का मार्कशीट देख कर पापा ने खुश होते हुए कहा था। सुन कर मम्मी आपे से बाहर हो गयी थीं।

‘‘मेरी वजह से...? तो क्या मैंने मना किया था इसको कि पढ़ाई ठीक से मत करना और सारे उत्तर सही लिख कर मत आना ?’’

‘‘अगर तुम बेवजह टोका-टाकी नहीं करती, बेवजह घर के कामों में नहीं जोते रहती, शांति से पढ़ने दिए होती इसको, तो शायद जिले में टाप करती मेरी बेटी।’’

‘‘हॉं जी हॉं....मैं ही तो एक दुश्मन हूॅं तुम बाप, बेटी दोनों की। तुम्हारी दुलारी को घर-गृहस्थी के काम नहीं सिखाऊॅं, बबुआ बना कर रखूॅं ताकि जहॉं जाए वहॉं मेरी नाक कटाए। लोग कहें कि मॉं ने कुछ सिखाया ही नहीं है। अरे ! जिला में टाप करे चाहे पूरे देश में, फूॅंकना तो आखिर चुल्हा ही है, थोपना तो आखिर आटा ही है। लेकिन रसोई के काम सुन कर तो जूड़ी बुखार आ जाता है तुम्हारी लाडली को। ऊपर से तुम और सर पर बिठाए रहते हो। तुम्हारी ऐसी ही बहकाने वाली बातों के कारण दिमाग चढ़ा रहता है इसका।’’ पापा की बात से चिढ़ी मम्मी ने तुर्की-ब-तुर्की जबाब दिया।

‘‘क्यों...? तुम ऐसा क्यों सोचती हो जी ? यह चुल्हा क्यों फूॅंकेगी....? आटा क्यों थोपेगी.? मेरी बेटी तो अफसर बनेगी अफसर।’’ पापा ने कहा तो मम्मी भुनभुनाती हुयीं वहॉं से हट गयीं।

अल्पना के इण्टर पास करने के साथ ही मम्मी उसकी शादी के लिए पापा पर दबाव बनाने लगी थीं। ऊॅंच-नीच समझाने लगी थीं। वर की तलाश में भाग-दौड़ करने के लिए कहने लगी थीं। उनके मन में शायद उसके बाद पैदा दो बेटियों और सबसे छोटे बेटे के भविष्य को ले कर चिंता लगी रहती थी। लेकिन पापा उनकी बात को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया करते थे। उनका का कहना था कि अल्पना की शादी में कोई जल्दबाजी नहीं करेंगे। वह जब तक पढ़ना चाहेगी, उसे पढ़ायेंगे, कम्पटीशन दिलवायेंगे और स्वावलम्बी बनायेंगे। फिर सोचेंगे शादी के बारे में।

अल्पना ने भी सोच रखा था कि जब तक पढ़ लिख कर कहीं नौकरी नहीं करने लगेगी, अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाएगी, तब तक वह शादी के झमेले में नहीं पड़ेगी। मम्मी उसकी शादी को ले कर लाख दुबली होती रहें लेकिन पापा के भरोसे वह निश्चिंत बैठी थी। उसे पूरा विश्वास था कि पापा उसकी शादी उसकी मर्जी के बगैर नहीं करेंगे। सो अपना पूरा ध्यान वह पढ़ाई पर लगाए हुए थी।

लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। उसके सपनों की पौध पर अचानक वज्रपात हो गया। अल्पना अभी बी.ए. के दूसरे साल में थी तभी एक दिन सड़क दुर्घटना में उसके पापा की मौत हो गयी। स्कूटर से आफिस जा रहे पापा को किसी बेलगाम ट्रक वाले ने रौंद दिया था। पापा ने दुर्घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया था। उनकी क्षत-विक्षत लाश देख कर अल्पना संज्ञा शून्य सी हो गयी थी। मम्मी तथा भाई और बहनें तो दहाड़ें मार-मार कर रो रही थीं लेकिन मारे सदमे के उसके तो ऑंसू ही सूख गए थे। उसे लग रहा था कि सामने यह पापा की नहीं बल्कि उसकी आशाओं की, उसके मन की योजनाओं की, उसके सुनहले सपनों की लाश पड़ी है।

पापा के मरने के बाद हमदर्दी जताने के लिए न जाने कहॉं-कहॉं के सगे-सम्बन्धी आने लगे थे। वे लोग आते और मम्मी को बिन मॉंगी सलाहें दे जाया करते थे। उनमें से लगभग सभी रिश्तेदारों की एक सलाह यह जरूर होती थी कि-‘अब जितनी जल्दी हो सके अल्पना की शादी कर के एक जिम्मेदारी से छुट्टी पा लो।’ अल्पना सुनती और अंदर ही अंदर कसक कर रह जाया करती थी। पापा क्या गए अल्पना का सम्बल ही खत्म हो गया था। अब वह मम्मी के निर्णय का विरोध कर सकने की स्थिति में नहीं रह गयी थी। हार कर अपने आप को उसने नियति के भरोसे छोड़ दिया था।

उस दिन शाम के समय कानपुर से अल्पना के छोटेे मौसा जी आए हुए थे। वे ड्राइंगरूम में बैठे मम्मी से बातें कर रहे थे। उनके लिए चाय, नमकीन की ट्रे ले कर जा रही अल्पना के पॉंव दरवाजे के बाहर ही ठिठक गए।

‘‘भाभी ! अभी सबसे पहला और जरूरी काम है अल्पना की शादी। यह निपटे तो बाकी दोनों के बारे में सोचा जाय। मेरे मझले बहनोई का एक बेटा है शादी के लायक। फिलहाल तो वह जंगल विभाग के आफिस में डेलीवेज क्लर्क लगा है लेकिन एक बार लग गया है तो देर-सवेर परमानेंट हो ही जाएगा। अगर आप कहिए तो मैं बात चलाऊॅं वहॉं।’’ यह मौसा जी की आवाज थी।

‘‘रमेश जी ! अल्पना के पापा कहा करते थे कि वह जहॉं तक पढ़ना चाहेगी, पढ़ायेंगे। उसको स्वावलम्बी बनायेंगे। उनके न रहने पर अब मैं उसकी मॉं, बाप दोनों हूॅं। इसलिए मैं उसकी पढ़ाई में रुकावट ड़ालना नहीं चाहती। उसका मन पढ़ने में लगता है तो पढ़ने दीजिए।’’ मम्मी ने मौसा जी को उत्तर दिया था।

मम्मी का उत्तर सुन कर अल्पना को सहसा अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। उसे लगा कहीं वह सपना तो नहीं देख रही है।

‘‘अरे भाभी ! पढ़ाई तो वह अगर चाहेगी तो शादी के बाद भी कर लेगी लेकिन देखा-भाला लड़का और घर-परिवार मुश्किल से मिलता है। फिर उसकी शादी हो जाने से आपका एक बोझ भी तो हल्का हो जाएगा।’’

‘‘नहीं रमेश जी ! अल्पना मेरे लिए बोझ नहीं है। उसकी शादी तो मैं तभी करूॅंगी जब वह खुद हॉं कहेगी।’’ मम्मी की आवाज में पूरी दृढ़ता थी।

अल्पना ने यह आगे की वार्तालाप सुनी तो मारे खुशी के उसके हाथों में पकड़ी चाय की ट्रे छूट कर जमीन पर गिर गयी।

‘‘लगता है पापा की आत्मा मम्मी के अंदर प्रवेश कर गयी है।’’ अल्पना ने अपने मन में सोचा और फर्श पर बिखरे कप के टुकड़ों को बीनने लगी।

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