नया साल - 2021

कविता

Akhilesh Srivastava Chaman

1/3/20211 मिनट पढ़ें

मेघों की ओट छुपी

सूरज की लाली को,

ठिठुर रही, काॅंप रही

गेहूॅं की बाली को,

दिन-प्रतिदिन सिकुड़ रही

जनता की थाली को

राहत दे नया साल।

गहन नाउम्मीदी में

आस-पुष्प खिलने की,

नफरत से तार-तार

रिश्तों को सिलने की

गफ़लत में दूर हुए

अपनों को मिलने की

चाहत दे नया साल।

संस्कृति के माथ लगे

धब्बों को धोने की

सहमी सी जगी-जगी

नींदों को सोने की,

खौफ़जदा आॅंखों को

ख्वाब नए बोने की

ताकत दे नया साल।

गंगा की धारा को

यमुना संग बहने की,

चुप-चुप रियाया को

खुलने की, कहने की,

राजा को धीरज से

सुनने की, सहने की

हिम्मत दे नया साल।

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