नया साल - 2021
कविता
मेघों की ओट छुपी
सूरज की लाली को,
ठिठुर रही, काॅंप रही
गेहूॅं की बाली को,
दिन-प्रतिदिन सिकुड़ रही
जनता की थाली को
राहत दे नया साल।
गहन नाउम्मीदी में
आस-पुष्प खिलने की,
नफरत से तार-तार
रिश्तों को सिलने की
गफ़लत में दूर हुए
अपनों को मिलने की
चाहत दे नया साल।
संस्कृति के माथ लगे
धब्बों को धोने की
सहमी सी जगी-जगी
नींदों को सोने की,
खौफ़जदा आॅंखों को
ख्वाब नए बोने की
ताकत दे नया साल।
गंगा की धारा को
यमुना संग बहने की,
चुप-चुप रियाया को
खुलने की, कहने की,
राजा को धीरज से
सुनने की, सहने की
हिम्मत दे नया साल।