खुराफातीलाल और बाल की ताबीज

बाल कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

4/23/20211 मिनट पढ़ें

इतवार का दिन था। सवेरे-सवेरे खुराफातीलाल के पापा के दोस्त शर्मा अंकल आए थे और ड्राइंग रूम में बैठे बातें कर रहे थे। चाय ले कर आए तो खुराफातीलाल भी रुक कर उनकी बातें सुनने लगे।

‘‘यार सिनहा ! इधर तुम्हें अपने गाॅंव कब जाना है ?’’ शर्मा अंकल ने खुराफातीलाल के पापा से पूछा।

‘‘फिलहाल तो मेरा गाॅंव जाने का कोई प्रोग्राम नहीं है। लेकिन बात क्या है ? ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?’’ खुराफातीलाल के पापा बोले।

‘‘यार ! बात दरअसल ये है कि मुझको एक ऐसी गाय की पूॅंछ का बाल चाहिए जो पूरी तरह से काली हो। यहाॅं शहर में बहुत ढ़ूॅंढ़ा लेकिन मुझे पूरी तरह से काली गाय नहीं दिखी। कोई भूरी है तो कोई सफेद-काली चितकबरी है तो किसी के काले शरीर पर कत्थई चकत्ते हैं। शायद तुम्हारे गाॅंव में कोई पूरी तरह से काली गाय मिल जाय।’’

‘‘लेकिन काली गाय की पूॅंछ के बाल की तुमको जरूरत क्या है ?’’

‘‘तुमको तो पता ही है कि मेरी पत्नी पिछले छः महीने से लगातार बीमार चल रही हैं। मैं दवाई कराते-कराते थक गया लेकिन कोई फायदा ही नहीं हो रहा है। पिछले हफ्ते मेरे बड़े साले एक तांत्रिक को ले कर आए थे। तांत्रिक ने बताया कि मेरी पत्नी को बीमारी नहीं बल्कि ऊपरी हवा का असर है। यदि किसी ऐसी गाय जो पूरी तरह काली हो की पूॅंछ का बाल पीतल के ताबीज में ड़ाल कर पहना दिया जाय तो हवा का असर खत्म हो जाएगा। तभी से हम लोग काली गाय ढू़ॅंढ़ रहे हैं।’’

‘‘यह ऊपरी हवा का क्या मतलब है अंकल ?’’ खुराफातीलाल बीच में ही बोल पड़े।

‘‘ऊपरी हवा भूत-प्रेत को कहते हैं बेटा ! कभी-कभी भूत-प्रेत भी आदमी को बहुत परेशान करते हैं।’’ शर्मा अंकल ने बताया।

‘‘तो क्या आप भूत-प्रेत में विश्वास करते हैं अंकल ?’’

‘‘क्यों नहीं....जिन लोगों की अकाल मौत हो जाती है वे भूत-प्रेत ही तो बनते हैं।’’

‘‘तो क्या आपको पक्का विश्वास है कि काली गाय की पूॅंछ की बाल से आॅंटी की तबियत ठीक हो जाएगी।’’

‘‘हाॅं बेटा ! मुझको पूरा विश्वास है। जिन्होंने यह उपाय बताया है वे बहुत पहॅंुचे हुए तांत्रिक हैं।’’

‘‘तो समझिए कि आॅंटी की तबियत ठीक हो जाएगी। गाॅंव में मेरा एक दोस्त है चंदू, उसके पास एक ऐसी ही गाय है जो पूरी तरह से काली है। मैं कहूॅंगा वह लिफाफे में ड़ालकर अपनी गाय की पूॅंछ के चार-छः बाल भेज देगा। बस तीन-चार दिनों का समय लगेगा।’’ खुराफातीलाल ने कहा।

शर्मा अंकल खुश हो कर लौट गए और खुराफातीलाल के दिमाग में खुराफात चलने लगी। खुराफातीलाल के साथ एक लड़का पढ़ता था उत्कर्ष। उत्कर्ष के घर एक काला, झबरीला कुत्ता था। अगले दिन खुराफातीलाल उत्कर्ष के घर गए और कुत्ते को प्यार से सहलाते-सहलाते उसके चार-छः बाल निकाल लिए। उन बालों को सॅंभाल कर उन्होंने एक लिफाफे में डा़ला और चार दिनों के बाद उसे शर्मा अंकल को दे आए।

उसके दो महीने के बाद एक दिन शर्मा अंकल और आॅंटी मिठाई का ड़िब्बा ले कर खुराफातीलाल के घर उसका धन्यवाद करने आए। ‘‘बेटा। तुमको बहुत-बहुत धन्यवाद। तुम्हारे दिए काली गाय के बाल से मेरी तबियत ठीक हो गयी।’’ शर्मा आॅंटी ने कहा तो खुराफातीलाल भाग कर अपने कमरे में चले गए। उनका हॅंसते-हॅंसते बुरा हाल था। लेकिन उन्हें यह भी पता था कि यदि सच्ची बात बता दी तो उनकी पिटाई भी हो सकती है।

Related Stories