जिम्मी की इन्सल्ट

व्यंग्य

Akhilesh Srivastava Chaman

4/18/20231 मिनट पढ़ें

बात तो थी एक बेर सी, बढ़ के हो गई सवा सेर की। जी हाॅं, पन्द्रह दिनों पहले कुछ ऐसा ही वाकया हुआ था हमारे घर के पास वाले पार्क में। बताता चलूॅं कि मेरा मुहल्ला मुख्यतया उच्चता की ओर लपकते निम्न मध्यमवर्गीय लोगों का मुहल्ला है जिसमें हर कोई अपनी कमीज पड़ोसी की कमीज से उजला दिखाने की फिक्र में हलाकान होता रहता है। यहाॅं लोगों को अपने दुःख से अधिक परेशानी पड़ोसी के सुख से रहती है, निगाह अपनी फटी चादर से अधिक दूसरे के चादर के छेद पर रहती है। तात्पर्य यह कि मेरे मुहल्ले के लंका में कोई भी उनचास हाथ से कम का नहीं है। चूॅंकि इस मुहल्ले में बावन बीघा पुदीना वाले काश्तकारों की बहुतायत है इसलिए बात का बतंगड़ यहाॅं आए दिन होता ही रहता है।

क्यों कि डाॅगी पालना आज स्टेटस सिम्बल बन चुका है। खुद को अभिजात्य दिखलाने के लिए एक अदद कुत्ता पालना अनिवार्य हो गया है। इसलिए मेरे मुहल्ले के अधिकांश घरों में ब्रूनो, ब्रेवी, जिम्मी, जाॅकी, हैरी, राॅकी आदि जैसे डरावने नामों वाले विभिन्न नस्लों के कुत्ते पले हुए हैं। इन कुत्तों को इतना लाड़-दुलार और इतनी सारी वी.आई.पी. सुख-सुविधायें प्राप्त हैं कि उसे देख कर ईष्र्या होती है। खुद के मानुस योनि में जन्म लेने पर ग्लानि होती है। मन कहता है काश ! हम आदमी नहीं कुत्ता होते। कुत्ता होते तो कहीं नरम सोफे पर बैठे दूध-ब्रेड खा रहे होते, कहीं गरम लिहाफ में अलसाए पड़े जम्हाई ले रहे होते या किसी नवयौवना के सीने से चिपके उसके गाल चूम रहे होते।

हाॅं तो मैं पन्द्रह दिनों पूर्व घटी घटना की बावत बता रहा था। ढ़लती शाम यानी सूरज के घर लौटने से थोड़ा पहले का समय था। आदि से अंत तक अखबार की एक-एक पंक्ति को चार-चार, पाॅंच-पाॅंच बार पढ़ कर ऊब चुके बूढ़ों, दिन भर की खटरागों से फुरसत के बाद बतरस के लिए बेचैन औरतों तथा टहलने अथवा पालतू डाॅगी को टहलाने के बहाने अपने ब्वायफ्रेंड, गर्लफें्रड से मिलने, बतियाने के अवसर तलाशती नई पीढ़ी के लड़के, लड़कियों के हुजूम से पार्क बुरी तरह अडसा हुआ था। तभी वह अप्रत्याशित दुर्घटना घट गयी जिसमें जिम्मी साहब की बेइज्जती हो गई। अब आप सोच रहे होंगे कि ये जिम्मी साहब कौन हैं। तो बता दूॅं कि जिम्मी हमारे मुहल्ले के इकलौते एडवोकेट और एडवोकेट होने के कारण हर वक्त विशिष्टता की ऐंठ में रहने वाले महानुभाव श्रीमान खन्ना जी की प्यारी बेटी के दुलारे पप्पी का नाम है।

हाॅं तो उस शाम पार्क खचाखच भरा हुआ था। बेंचों पर जगह नहीं होने के कारण मिसेज गुप्ता और मिसेज निगम पार्क में एक किनारे मेहदी की झाड़ी के पास घास पर पालथी लगाए बैठी बतिया रही थीं। खन्ना जी एडवोकेट की लाड़ली बेटी जूली अपने प्यारे डाॅगी जिम्मी को साथ ले कर टहलने निकली थी। पार्क में आने के बाद उसने जिम्मी को खुला छोड़ दिया था और खुद अशोक के एक ठिगने से पेड़ की टेक ले कर खड़ी हो अपने ब्वायफ्रेंड से वीडियो चैटिंग में व्यस्त हो गयी थी। जिम्मी पूरे पार्क में टहलता, जायजा लेता फिर रहा था। अचानक तभी मिसेज निगम संग बातचीत में तल्लीन मिसेज गुप्ता को अपनी कमर के पाश्र्व भाग पर कुछ गीला सा महसूस हुआ। उन्होंने पलट कर देखा तो पाया कि जूली के लाड़ले डाॅगी जिम्मी महाशय अपनी एक टाॅंग उठाए लघुशंका से निवृत्त हो रहे थे। श्रीमती गुप्ता ने जब तक मामले को समझा और उठ कर खड़ी हुयीं तब तक जिम्मी साहब अपना काम निपटा कर के जूली के पास पहॅंुच चुके थे।

‘‘ऐ लड़की ! कुत्ता पालने का बहुत शौक है तो इसे सॅंभाल कर क्यों नहीं रखती ? देख इसने मेरे ऊपर क्या कर दिया है ?’’ गुस्से में भरीं मिसेज गुप्ता दनदनाते हुए गयीं और जूली पर फट पड़ीं।

‘‘ऐ बुढ़िया ! जबान सॅंभाल के बात करो। खबरदार जो दोबारा मेरे डाॅगी को कुत्ता कहा।’’ जूली उनसे दोगुनी तेज आवाज में चीख पड़ी। उसने लपक कर जिम्मी को उठाया और अपने चेहरे के साथ चिपका कर उसे सहलाने लगी।

‘‘अरे ! कुत्ते को कुत्ता न कहूॅं तो और क्या कहूॅं ?’’ मिसेज गुप्ता ने उसी टोन में जबाब दिया।

‘‘अरे ! तो फिर कुत्ता बोला तुमने ? मेरे जिम्मी का इन्सल्ट किया तुमने ? तुम्हारी इतनी मजाल ? अभी मजा चखाती हूॅं तुमको।’’ जूली ने चीखते हुए कहा और अपने पापा को फोन मिला दिया।

‘‘पापा ! यहाॅं मेरे जिम्मी की इन्सल्ट हो रही है। एक बुढ़िया इसको गाली दे रही है। प्लीज आप जल्दी आ जाओ।’’ जूली ने फोन पर रोते हुए कहा।

खन्ना जी कचहरी से लौट कर अभी घर में घुसे ही थे। काला कोट और सफेद धारी वाली काली पैण्ट अभी उतार भी नहीं पाए थे कि उनके कानों में बेटी की रोती हुयी आवाज पड़ी। सुनते ही वे उल्टे पाॅंव पार्क की ओर भागे। वहाॅं जिम्मी को चेहरे से चिपकाए सुबक रही बेटी को देखा तो खन्ना जी आग बबूला हो उठे।

‘‘तो तुमने मेरे डाॅगी को कुत्ता कहा ? तुम्हें पता है मेरी बेटी इसे कितना प्यार करती है ?’’ बेटी से पूरा मामला जानने के बाद खन्ना जी मिसेज गुप्ता पर गुर्राए।

‘‘अरे तो प्यार करती है तुम्हारी बेटी तो अपने कुत्ते को कन्ट्रोल में रखे न....। अपने सर पर हगाए, अपने सर पर मुताए। दूसरों पर मूतने के लिए छुट्टा क्यों छोड़ देती है ?’’ मिसेज शर्मा ने जबाब दिया।

‘‘देखो...देखो तुमने फिर कुत्ता कहा। फिर मेरे डाॅगी का इंन्सल्ट किया तुमने। जिम्मी अभी बच्चा है....अगर गलती से तुम्हारे ऊपर मूत ही दिया तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। तुम हमको बताती....हम कम्पेनशेसन दे देते। लेकिन बार-बार उसकी इन्सल्ट करने का अधिकार तुम्हें कहाॅं से मिल गया ?’’ गुस्सा में भरे खन्ना जी ने प्रश्न किया।

‘‘हुॅंह....बड़े आए डाॅगी वाले। ऐसा लगता है जैसे दुनिया से अनोखा है इनका कुत्ता। ऐसे-ऐसे न जाने कितने कुत्ते हमारी गली में मारे-मारे फिर रहे हैं।’’ मिसेज गुप्ता हाथ चमकाते हुए बोलीं।

‘‘इसका मतलब कि तुम ऐसे नहीं मानोगी। लगातार इंसल्ट किए जा रही हो मेरे डाॅगी की। तुमको सबक सिखाना ही पड़ेगा।’’खन्ना जी आॅंखे तरेरते हुए बोले।

लब्बोलुबाब यह कि खन्ना जी हों चाहे मिसेज गुप्ता, कोई भी पक्ष अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था। फिर तो बात बढ़नी ही थी। बात बढ़ी तो जिम्मी ने जो कर्म किया था वह तो पीछे छूट गया। मुख्य मुद्दा अब यह हो गया कि मिसेज गुप्ता ने जिम्मी जैसे दुलारे और कुलीन डाॅगी को कुत्ता कह कर उसकी बेइज्जती क्यों की।

उस दिन तो मुहल्ले के लोगों ने बीच-बचाव कर दिया। मिसेज गुप्ता को समझा-बुझा कर घर भेज दिया तो मामला शांत हो गया। लेकिन खन्ना जी अपने दुलारे डाॅगी की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सके। नवीनतम खबर यह है कि अभी तीन दिनों पहले मिसेज गुप्ता के नाम कोर्ट से एक नोटिस आयी है। पता चला है कि खन्ना जी ने उनके खिलाफ जिम्मी की मानहानि करने का मुकदमा ठोंक दिया है।

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