झगड़ा खत्म

बाल कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

3/9/20201 मिनट पढ़ें

‘‘मम्मी..ई..ई..देखो इसको...।’’ बीनू बहुत तेज आवाज में चिल्लाया और बंटी के बाल खींच कर उसने उसे दो थप्पड़ लगा दिया। थप्पड़ खा कर बंटी भी गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने लगा और बीनू के साथ गुत्थम-गुत्था हो गया। उनकी मम्मी उस समय रसोईघर में थीं। दोनों भाइयों की चिल्ल-पों सुन कर वह भागी-भागी आयीं। देखा तो बीनू बंटी के बाल पकड़े था और बंटी बीनू की शर्ट। दोनों एक-दूसरे को थप्पड़ से मार रहे थे। उन्होंने बड़ी मुश्किल से दोनों को अलग किया। झगड़े का कारण यह था कि बंटी ने बीनू की कापी फाड़ दी थी और बीनू ने बंटी को दाॅंत काट लिया था। गुस्से में भरीं मम्मी ने दोनों को एक-एक थप्पड़ लगाया और अलग-अलग बिठा दिया। दोनों काफी देर तक रोते रहे और उनकी मम्मी उन्हें ड़ॅंाट लगाती रहीं।
बीनू और बंटी की सारे दिन की लड़ाई से उनकी मम्मी तंग आ गयी थीं। जितनी देर तक बीनू स्कूल में रहता बस उतनी देर ही घर में शान्ति रहती थी, वरना सारे दिन वे दोनों भाई बात, बेबात आपस में झगड़ते रहते थे। बीनू लगभग पाॅंच साल का था और स्कूल जाने लगा था। उसके छोटे भाई बंटी की उम्र लगभग तीन वर्ष थी और वह अभी स्कूल नहीं जाता था। बंटी की आदत थी कि वह बीनू की चीजें जैसे कापी, किताब, पेन, पेन्सिल वगैरह छूता रहता था। जब कि बीनू को यह बात बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी। सारे दिन बस इसी बात को ले कर दोनों भाइयों में झगड़ा होता रहता था। उस दिन शाम को भी बीनू अपने कमरे में बैठा होम वर्क कर रहा था। बंटी को उलझाए रखने के लिए उसकी मम्मी ने उसे भी एक कागज और पेंसिल पकड़ा दी थी। बीनू के पास बैठा बंटी कागज पर आड़ी, तिरछी लकीरें खींच रहा था। थोड़ी देर बाद उसने अपनी पेंसिल रख कर बीनू की पेंसिल उठा ली। बीनू ने देखा तो बंटी से अपनी पेंसिल छीनने लगा। इस छीना-झपटी में ही दोनों में मार-पीट हो गयी। बंटी ने बीनू की होमवर्क की कापी फाड़ दी तो बीनू ने उसके बाल नोच कर उसकी बाॅंह में दाॅंत काट लिया।
दोनों भाइयों के इस रोज-रोज के झगड़े से उनकी मम्मी परेशान आ चुकी थीं। वह बीनू को समझातीं-‘‘बेटा ! बंटी तुम्हारा छोटा भाई है। उसके साथ मेल से रहा करो। अभी वह छोटा है इसलिए तुम्हारी चीजें ले लेता है। वह अगर तुम्हारी कोई चीज तोड़ देता है या खराब कर देता है तो मुझसे बता दो। मैं तुम्हारे लिए दूसरा नया खरीद दूॅंगी। लेकिन तुम उससे मार-पीट न किया करो। इसी प्रकार वह बंटी को भी समझातीं-‘‘बेटा ! तुम भैया की चीजें मत छुआ करो। तुम्हें जिस चीज की जरूरत हो मुझसे कहो। मैं तुम्हारे लिए अलग से खरीद दूॅंगी।’’ लेकिन उन दोनों में से किसी पर भी उनके समझाने का प्रभाव नहीं पड़ता था। वे जरा-जरा सी बात पर झगड़ पड़ते थे।
उस दिन लड़ रहे दोनों भाइयों को अलग करने के बाद मम्मी ने बीनू को समझा कर होमवर्क करने के लिए बिठाया। फिर बंटी के घाव पर मरहम लगा कर तथा खिलौनों की थैली दे कर उसे अलग बिठाया और अपने काम में लग गयीं। खिलौनों की थैली में एक चाबी वाली कार थी जो बीनू की थी। बंटी ने जैसे ही उस कार में चाबी भरी बीनू ने उठ कर उससे झपट लिया। बस फिर क्या था। दोनों भाइयों में फिर से मार-पीट शुरू हो गयी। उनकी चीख सुनकर मम्मी फिर भागी-भागी आयीं और दोनों को एक-एक थप्पड़ लगा कर अलग किया।
दोनों भाइयों के रोज के झगड़े से परेशान उनकी मम्मी उस रात काफी देर तक उसी बिषय में सोचती रहीं। सोचते-सोचते उन्हें एक तरकीब सूझी। अगले दिन दोपहर बाद जब बीनू के स्कूल से लौटने का समय हुआ उससे कुछ देर पहले वह बंटी को ले कर अपनी पड़ोसन श्रीमती वर्मा के घर गयीं। श्रीमती वर्मा को उन्होंने अपनी योजना समझायी और बंटी को उन्ही के घर नींद से सुला कर खुद वापस आ गयीं।
स्कूल से लौटने के बाद जब बीनू ने बंटी को नहीं देखा तो उसे ढ़ूॅंढ़ने लगा। एक-एक कर के उसने सारे घर में ढ़ूॅंढ़ लिया लेकिन बंटी नहीं मिला। ‘‘बंटी कहाॅं है मम्मी ?’’ बीनू ने परेशान हो कर पूछा।
‘‘उसे छोड़ो बेटा ! वह बहुत शरारती था। सारे दिन तुमसे झगड़ा करता रहता था। तुम्हारी चीजें छूता रहता था। इसलिए उसे मैंने घर से निकाल दिया। उसे मैंने बगल वाली वर्मा आंटी को दे दिया है। अब वह वहीं रहेगा, यहाॅं कभी नहीं आएगा और तुम्हारी चीजें भी नहीं छूएगा। अब तुम घर में खूब मजे से अकेले रहना।’’ बीनू की मम्मी ने कहा और उसके लिए खाना परसने लगीं।
मम्मी की बात सुन कर बीनू कुछ नहीं बोला। उसने कपड़े बदले, हाथ, मुॅंह धोया और खाना खाने के बाद अपना होमवर्क करने बैठ गया। लेकिन न जाने क्यों आज उसका मन होमवर्क करने में नहीं लग रहा था। कुछ देर तक वह यूॅं ही चुपचाप बैठा रहा फिर किताब-कापी बंद कर के सोने चला गया। काफी देर तक आॅंखें बंद कर के लेटे रहने के बाद भी उसे नींद नहीं आयी। थोड़ी देर बाद वह बिस्तर से उठा और खिलौनों की थैली ले कर खेलने बैठ गया। लेकिन बहुत जल्दी ही उसका मन खेल से भी उचट गया। आज उसे कोई भी काम अच्छा नहीं लग रहा था। अब उसे बंटी की याद आने लगी थी। आखिर जब उससे नहीं रहा गया तो वह मम्मी के पास गया और बहुत उदास हो कर बोला-‘‘मम्मी ! बंटी को वापस बुला लीजिए। मुझे अकेले अच्छा नहीं लग रहा है।’’
‘‘जाने दो बेटा, बंटी गंदा बच्चा है। वह तुम्हें सारे दिन परेशान करता रहता था। हर समय तुमसे झगड़ा करता रहता था इसलिए अब उसे वर्मा आंटी के ही घर रहने दो।’’ बीनू की मम्मी ने कहा और अपने काम में लग गयीं।
‘‘नहीं मम्मी...अकेले मेरा मन नहीं लग रहा है....। बंटी को बुला लीजिए प्लीज।’’ बीनू ने दोबारा कहा और अपनी मम्मी की साड़ी पकड़ कर सुबकने लगा।
‘‘अरे ! तुम रो क्यों रहे हो ? बंटी तो गंदा बच्चा था न इसलिए मैंने उसे वर्मा आंटी को दे दिया। क्या सचमुच बंटी के बगैर तुमको अच्छा नहीं लग रहा है ?’’ मम्मी ने पूछा।
‘‘हाॅं मम्मी....बंटी को बुला दीजिए।’’ बीनू रोते हुए बोला।
‘‘लेकिन सोच लो। अगर वापस आयेगा तो वह फिर तुम्हारी चीजें छूएगा....तुमसे झगड़ा करेगा।’’ मम्मी बोलीं।
‘‘हाॅं....लेकिन मैं अकेले खेलूॅंगा किसके साथ....? उसको बुला लो मम्मी।’’ बंीनू ने कहा और हिलक-हिलक कर रोने लगा।
‘‘अच्छा रोओ मत। चलो, वर्मा आंटी के घर चलते हैं। उनसे बंटी को माॅंगते हैं। देखें वह बंटी को वापस करती भी हैं या नहीं।’’ बीनू की मम्मी ने कहा और उसको साथ ले कर वर्मा जी के घर गयीं।
‘‘लाइए बहन जी, बंटी को वापस कर दीजिए। अकेले बीनू को घर में अच्छा नहीं लग रहा है।’’ बीनू की मम्मी ने श्रीमती वर्मा से कहा।
‘‘नहीं, नहीं। अब बंटी को वापस नहीं दूॅंगी मैं। बीनू इसको बहुत मारता है, इससे झगड़ा करता रहता है। इसलिए बंटी को अब मैं अपने पास ही रखूॅंगी।’’ श्रीमती वर्मा बोलीं।
‘‘चलो बीनू हम अपने घर चलें। आंटी जी तो अब बंटी को वापस करेंगी नहीं। चलो उसे अब यहीं रहने दो।’’ मम्मी ने बीनू से कहा और वापस आने लगीं।
‘‘नहीं मम्मी....बंटी को वापस माॅंग लो। बंटी को घर ले चलो.....। अब मैं उसे कभी नहीं मारूॅंगा।’’ बीनू ने सुबकते हुए कहा और अपनी मम्मी के पैरों से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगा। बीनू की यह हालत देख उसकी मम्मी तथा श्रीमती वर्मा दोनों को हॅंसी आ गयी।
‘‘तो चलो आंटी से माफी माॅंगो। अपने कान पकड़ कर आंटी से कहो कि अब बंटी से लड़ाई नहीं करोगे।’’ मम्मी ने कहा।
‘‘आंटी जी, अब मैं बंटी से कभी लड़ाई नहीं करूॅंगा। उसको वापस दे दीजिए।’’ बीनू ने सुबकते हुए कहा और अपने दोनों कान पकड़ कर श्रीमती वर्मा के सामने खड़ा हो गया।
‘‘अच्छा तो ठीक है। ले जाओ बंटी को लेकिन याद रखना अगर फिर तुमने इसे मारा या इसे दाॅंत काटा तो मैं इसे ले लूॅंगी और अपने पास रख लूॅंगी। फिर कभी वापस नहीं दूॅंगी।’’ श्रीमती वर्मा ने कहा और अंदर वाले कमरे में सो रहे बंटी को जगा लायीं।
बीनू की मम्मी बंटी को ले कर घर आ गयीं। बीनू की खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं था। उस दिन के बाद उन दोनों भाइयों में कभी भी झगड़ा नहीं हुआ। अब बंटी कोई शरारत भी करता तो बीनू उसे चुपचाप सह लेता था।

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