ज़ेवर
व्यंग्य
सवेरे विदा हुयी बारात दोपहर बाद वापस आयी थी। शाम होते-होते परिवार, रिश्तेदार तथा मुहल्ले की औरतें दहेज में मिले सामानों की पड़ताल करने बैठ गयी थीं। सभी सूटकेसों के ऊपर बकायदे अंदर रखे सामानों की चिप्पियाॅं लगी हुयी थीं। पहले सूटकेस में सास तथा रिश्ते-नाते की महिलाओं के लिए साड़ियाॅं थीं। दूसरे सूटकेस में परिवार के पुरुषों की विदाई के कपड़े थे। तीसरे में वधू के कपड़े और सामान थे। चैथे में दुल्हे के लिए सूट, शर्ट तथा टाइयाॅं वगैरह थीं। रेक्सीन के एक बैग में दाई-नौकर, पवनी-परजा के लिए धोतियाॅं, साड़ियाॅं थीं। गत्ते के एक बड़े से कार्टन में किचन के सारे बरतन रखे थे। एक दूसरे कार्टन में क्राकरी थी। एक छोटे कार्टन में साबुन, शैम्पू, तेल, फुलेल, पावडर, क्रीम बिन्दी, लिपस्टिक, आईना, कंघा आदि सजावट तथा श्रृंगार के सामान थे। कत्थई रंग के होल्डाल में गद्दा, चादर, तकिया, लिहाफ आदि बॅंधे थे। दुल्हे की अम्मा बारी-बारी सबको खोलतीं, देखतीं और झाॅंपी देखने के लिए जुटीं महिलाओं को दिखाती जा रही थीं।
एक-एक कर सारे बैग और सूटकेस देख लिए गए। बाकी सब कुछ तो मिल गया लेकिन जेवर का डब्बा नहीं मिला। जबकि महिलाओं की सर्वाधिक उत्सुकता उसे देखने की ही थी।
‘‘ए काकी ! कौनो गहना-गुरिया नहीं मिला है क्या दहेज में...?’’ एक महिला ने दुल्हे की माॅं से पूछा।
‘‘मिला होता अगर तो दिखता नहीं ? सारा बक्सा, झोला, पिटारी तो देख लिया गया। गहना क्या कोई सूई है कि होता तो दिखाई नहीं देता।’’ कोई दूसरी बोली।
‘‘अरे ! क्या अइसा...? कोई गहना-गुरिया नहीं है ? एक ठो नाक की कील तक नहीं दिए हैं लड़की वाले ?’’ किसी तीसरी औरत ने कहा।
महिलाओं में खुसुर-फुसुर होने लगी। सासु जी (दुल्हे की अम्मा) को काटो तो खून नहीं। नाक कटी जा रही थी। रिश्ते-नाते और मुहल्ले की औरतों के सामने वह खुद को बहुत लज्जित महसूस कर रही थीं। आखिर गुस्से में भरीं सासु जी दनादन सीढ़ियाॅं चढ़तीं ऊपर बहू के कमरे में जा पहॅंुचीं। रात्रि जागरण तथा यात्रा के थकान से पस्त बहू दरवाजा उढ़काए सो रही थी।
‘‘बहू ! जेवर कहाॅं है ?’’ सासु जी ने अपेक्षाकृत तेज आवाज में पूछा।
‘‘क्या हुआ मम्मी जी...?’’ अचानक नींद से जगी बहू सासु जी की बात समझ नहीं पायी।
‘‘तुम्हारे घर वालों ने जे़वर नहीं दिया है क्या ? मैंने सारा सामान देख लिया...जे़वर तो कहीं दिखा ही नहीं।’’ सास जी उसी तेवर में बोलीं।
‘‘दिया है न मम्मी जी। बहुत कीमती और बहुत ढ़ेर सारा जेवर दिया है मेरे पापा-मम्मी ने। आप चलिए मैं ले कर आती हूॅं।’’ बहू ने कहा और आॅंख-मुॅंह धोने के लिए बेडरूम से लगे गुसलखाने में घुस गयी। सासु जी नीचे आ कर औरतों के पास बैठ गयीं।
थोड़ी देर बाद बहू नीचे आयी। उसके हाथ में नम्बरों की सेटिंग से खुलने वाला एक ब्रीफकेस था। उसने नम्बर मिला कर ब्रीफकेस खोला। ब्रीफकेस ढ़ेर सारे कागजों से भरा हुआ था। वह बहुत सावधानी से एक-एक कागज निकालने तथा सभी के सामने डाइनिंग टेबिल पर एक के बगल एक रखने लगी। कागजो से सारा डाइनिंग टेबिल ढ़ॅंक गया।
‘‘मम्मी जी ! ये रहे मेरे जेवर। हाईस्कूल से ले कर डी.फिल. तक के सारे मर्कशीट्स तथा सर्टिफिकेट्स। सारी परीक्षायें मैंने प्रथम श्रेणी में पास की हैं। और यह रहा सबसे कीमती जे़वर....हायर एजुकेशन कमीशन से निर्गत डिग्री कालेज में मेरी नियुक्ति का आदेश पत्र।’’ बहू ने कहा और सारे कागजों को समेट कर अपने ब्रीफकेस में रखने लगी।