जाल

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

6/10/20201 मिनट पढ़ें

छुट्टी की घंटी बजते ही उछलते, कूदते बच्चों का झुंड़ कक्षाओं से निकल कर विद्यालय के गेट की तरफ दौड़ पड़ा। अपूर्व भी अपनी कक्षा से निकला लेकिन वह ड़रता, सहमता, चारों तरफ देखता बहुत सावधानी पूर्वक धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अचानक उसकी निगाह गेट के बाहर खड़े संतू पर पड़ गयी। संतू को देखते ही उसका गला सूखने लगा तथा पैरों में कॅंपकॅंपी सी होने लगी। वह लड़कों के झुण्ड़ में घुस गया। उसने पूरी कोशिश की कि लड़कों की भीड़ में छुप कर चुपके से बाहर निकल जाए और संतू उसे न देख सके लेकिन गेट पर खड़े संतू की चैकन्नी निगाहों ने उसे देख ही लिया। उसे देखते ही संतू लपकता हुआ उसकी तरफ आया और उसकी बाॅंह पकड़ कर खींचता हुआ गेट के बाहर ले गया।
उसे भीड़ से अलग एक किनारे ले जाने के बाद संतू ने धमकाते हुए कहा-‘‘देखो अपूर्व ! आज मैं तुम्हें आखिरी मौका दे रहा हूॅं। अगर कल तक तुमने मेरे पैसे चुकता नहीं किए तो परसों सवेरे मैं तुम्हारे घर पॅंहुच जाऊॅंगा और सीधे तुम्हारे पापा से शिकायत करूॅंगा। मैंने पता कर लिया है कि सब्जी मंड़ी के पास स्टेट बैंक की बगल वाली गली में घर है तुम्हारा।’’
स्ंातू ने यह बात धीरे से नहीं बल्कि बहुत तेज आवाज में कही जिसे कई दूसरे लड़कों ने भी सुनी। बगल से गुजर रहे कई लड़के ठिठक कर अपूर्व की तरफ देखने लगे। अपूर्व पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। बगैर कुछ बोले, शर्म के मारे सर झुकाए वह चुपचाप खड़ा रहा और संतू उसे धमकाता रहा। जब संतू वहाॅं से चला गया तब अपूर्व अपने रिक्से में बैठा और मुॅंह लटकाए घर लौटा। विद्यालय से लौटने के बाद भी सारे दिन और सारी रात वह परेशान रहा। न तो उसका खाने का मन कर रहा था और न ही पढ़ने का। वह इसी चिन्ता में परेशान था कि संतू अगर सचमुच उसके घर आ गया और उसने पापा से शिकायत कर दी तो क्या होगा। पापा तो उसे मारते-मारते अधमरा ही कर देंगें। अगर दस, बीस रुपए की बात होती तो किसी बहाने मम्मी से माॅंग कर वह संतू को दे देता लेकिन संतू तो पूरे एक सौ तीस रुपए माॅंग रहा था। एक साथ इतने रुपए भला कहाॅं से लाए वह। अपूर्व ऐसी जाल मे फॅंस गया था कि उससे निकलने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था उसे।
संतू अपूर्व के विद्यालय के बाहर गेट के सामने चाट, पकौड़ी, पानी के बतासे, तथा सस्ते किस्म की मिठाइयों का ठेला लगाता है। दोपहर में खाने की छुट्टी होते ही झुंड़ के झुंड़ लड़के संतू के ठेले पर टूट पड़ते हैं और आधा घंटा के अंदर ही उसके ठेले का सारा सामान चट हो जाता है। पहले अपूर्व संतू की दुकान पर नहीं जाता था। वह अपने घर से लाया टिफिन खा कर रह जाता था। लेकिन एक दिन उसका दोस्त अतुल उसके पीछे ही पड़ गया और अपने साथ संतू की दुकान पर ले गया। उस दिन अतुल ने अपने पैसे से अपूर्व को चाट तथा पानी के बतासे खिलाये। उसके बाद तो अपूर्व को ऐसा चस्का लगा कि वह आए दिन लंच ब्रेक में संतू की दुकान पर जाने और चाट, पकौड़ा, समोसा, मिठाई खाने लगा। इसके लिए मम्मी से झूठ बोल कर वह पेन, पेंसिल और काॅपी आदि खरीदने के बहाने पैसे माॅंग लेता था। लेकिन रोज-रोज तो ऐसा संभव नहीं था। एक दिन उसने पैसे माॅंगे तो मम्मी ने पैसे तो नहीं दिया उल्टे बिगड़ पड़ीं-‘‘अभी तीन दिनों पहले ही तो तुमने पेंसिल और कटर के लिए बीस रुपए लिए थे। उसका क्या हुआ ?’’
रोज चटपटा खाने से अपूर्व की आदत खराब हो चुकी थी इसलिए उसको परेशानी होने लगी। कई बार ऐसा भी होता कि संतू के ठेले के पास खड़ा वह ललचाता रहता और जेब में पैसे न होने के कारण उसे मन मसोस कर रह जाना पड़ता था। कुछ दिनों के बाद उसे पता चला कि बहुत से लड़कों की संतू के यहाॅं उधारी चलती थी। वे लोग बगैर पैसा दिए रोज मनचाही चीजें खाया करते थे और हफ्ते, दस दिन पर या महीने के आखिर में उसे इकट्ठे पैसा दे दिया करते थे। उनकी देखा-देखी अपूर्व ने भी संतू की ड़ायरी में अपना नाम लिखा दिया और मजे से उधार खाने लगा।
एक महीने के बाद संतू ने हिसाब जोड़ कर सत्तर रुपए माॅंगे तो अपूर्व को झटका सा लगा। दो दिनों तक वह पैसों के लिए परेशान रहा और जब कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा तो उसने पापा की जेब से चोरी करने का मन बना लिया। सवेरे के समय जब मम्मी रसोईघर में थीं और पापा स्नानघर में थे तो मौका देख कर उसने पापा की जेब से सौ रुपए की एक नोट निकाल ली। विद्यालय जाते ही उसने सौ रुपए की नोट संतू के पास जमा कर दी और फिर से पहले की तरह उधार खाने लगा।
उस दिन सुबह तो आफिस जाने की जल्दी में अपूर्व के पापा ने अपनी जेब के रुपयों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन शाम को आफिस से लौटते ही रुपए के बारे में पूछताछ करने लगे। जब अपूर्व की मम्मी ने बताया कि उन्होंने पैसे नहीं निकाले थे तो पापा ने अपूर्व से पूछा-‘‘अपूर्व ! तुमने मेरी जेब से रुपए निकाले थे क्या ?’’
‘‘रुपए.....? नही ंतो.....मैं ने तो कोई रुपए पहीं निकाला।’’ अपूर्व साफ साफ झूठ बोल गया। लेकिन उसकी घबराहट तथा बातचीत के ढ़ंग से पापा को शक हो गया। उन्होंने ड़ाॅंट-ड़पट शुरू की तो मम्मी ने बीच-बचाव कर दी वरना उस दिन अपूर्व की चोरी पकड़ी गयी होती और उसकी खूब कुटम्मस हुयी होती। उस दिन तो अपूर्व जैसे-तैसे बच गया लेकिन उसके बाद दोबारा उसकी चोरी करने की हिम्मत नहीं हुयी।
उधर दूसरी बार फिर जब अपूर्व का उधार खाता सौ रुपए हो गया तो संतू उसे पैसों के लिए टोकने लगा। अपूर्व संतू को आश्वासन देता रहा कि वह जल्दी ही पैसों की व्यवस्था कर देगा लेकिन अब न तो उसकी चोरी करने की हिम्मत हो रही थी और न ही मम्मी से इतने अधिक पैसे माॅंगने का कोई बहाना सूझ रहा था। कुछ दिनों तक और खिलाने के बाद संतू ने उसे उधार देने से मना कर दिया। वह अपने पैसों के लिए रोज-रोज तगादा करने लगा। पैसों की व्यवस्था न होने के कारण अपूर्व ने संतू की दुकान पर जाना बंद कर दिया और उसकी नजरों के सामने आने से बचने लगा था। लेकिन वह बच कर जाता कहाॅं। आखिर एक दिन संतू ने उसे विद्यालय के गेट पर पकड़ ही लिया और पैसे न देने पर उसके घर जा कर शिकायत करने की धमकी दे ड़ाली। परेशान अपूर्व की आॅंखों में हर समय संतू का ही चेहरा नाच रहा था। आखिर दूसरा दिन भी बीत गया और अपूर्व पैसों की व्यवस्था नहीं कर पाया। तीसरे दिन रविवार की सुबह संतू सचमुच अपूर्व के घर पॅंहुच गया। संतू ने जब गेट पर लगी घंटी बजायी तो पहले अपूर्व की मम्मी और उनके पीछे-पीछे अपूर्व के पापा बाहर दरवाजे पर आ गए।
‘‘क्या बात है....? किससे मिलना है...?’’ दरवाजे पर खड़े संतू से अपूर्व की मम्मी ने पूछा।
‘‘जी ! मेरा नाम संतूराम है...मैं ब्वायज स्कूल के सामने चाट का ठेला लगाता हूूॅं। आपके बेटे अपूर्व मेरी दुकान से उधार की चीजें खाते रहे हैं। अब उन पर मेरे एक सौ तीस रुपए बकाया हो गए हैं। मैं उन्हीं रूपयों के लिए आया हूॅं।’’ संतू ने कहा
अपूर्व की मम्मी कुछ कहतीं उससे पहले ही पापा बोल पड़े-‘‘क्यों अपूर्व तो बहुत पहले से तुम्हारे यहाॅं उधार की खाता रहा है....? है न ?’’
‘‘जी हाॅं....।’’ संतू ने कहा।
‘‘और अपूर्व ने पिछले महीने तुम्हें एक सौ रुपए की नोट भी तो दी थी।’’
‘‘जी...। तब उनकी तरफ मेरे सत्तर रुपए उधार हो चुके थे। उन्होंने सौ रुपए जमा किया था। उसके बाद फिर एक सौ तीस रुपए की चीजें उधार खा चुके हैं।’’ संतू बोला।
‘‘लेकिन तुमसे मैंने तो कहा नहीं था कि मेरे बेटेे को उधार की चीजें खिलाया करो। तुम भोले-भाले बच्चों की आदतें खराब करते हो, उन्हें उल्टी-सीधी, सड़ी-गली चीजें खिलाते हो, उन्हें घर में चोरी करने और झूठ बोलने के लिए मजबूर करते हो ? ऐं...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी पैसे माॅंगने मेरे घर तक आने की....?’’ एकाएक अपूर्व के पापा के तेवर बदल गए और वे संतू को ड़ाॅंटने लगे।
संतू की तो जैसे सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गयी। वह बड़ी मुश्किल से हकलाते हुए बोला-‘‘साहब जी ! मैंने तो अपनी दुकान पर बुलाया नहीं था उनको। वे खुद ही दोपहर की छुट्टी में रोज आ जाया करते थे। पहले तो कुछ दिनों तक पैसे दे कर खाते रहे फिर उधार माॅंगने लगे।’’
लेकिन तुमने उसे उधार दी ही क्यों..? तुमने उसे पहले ही दिन मना क्यों नहीं कर दिया....? ऐसे ही न जाने कितने बच्चों को अपनी जाल में फॅंसा रखा होगा तुमने। मैं आज ही पुलिस में तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट लिखवाऊॅंगा और स्कूल के सामने से तुम्हारा खोमचा फिकवाऊॅंगा। चलो भागो यहाॅं से...। आज के बाद अगर दिखायी भी दिए इधर तो तुम्हारी खैर नहीं।’’ अपूर्व के पापा ने ड़ाॅंट लगायी तो संतू चुपचाप वहाॅं से खिसक लिया।
संतू को भगाने के बाद अपूर्व के पापा घर में आए और अपूर्व से पूछ-ताछ करने लगे। अब अपूर्व कुछ भी छुपाने की स्थिति में नहीं था। पापा की ड़ाॅंट पड़ी तो उसने सब कुछ सच-सच उगल दिया और पिछले महीने पापा की जेब से सौ रुपए चुरानंे की बात भी स्वीकार कर ली। वह ड़र रहा था कि अब पापा उसकी खूब पिटाई करेंगे। लेकिन पापा ने पिटाई नहीं की बल्कि अपने पास बुला कर प्यार से समझाया-‘‘देखो बेटे ! मैंने पहले भी बहुत बार समझाया है कि इन ठेलों और खोमचों वालों की चीजें नहीं खानी चाहिए। ये लोग खराब और गंदी चीजें बेचते हैं जिस पर धूल, मिट्टी पड़ती रहती है तथा गंदी मक्खियाॅं बैठती रहती हैं। ऐसी चीजें खा कर बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। जिस प्रकार शिकारी चिड़ियों को पकड़ने के लिए जाल फैलाते हैं ठीक उसी प्रकार ये लोग भी भोले-भाले बच्चों को अपनी जाल में फॅंसाते हैं और उनको झूठ बोलना, चोरी करना आदि गंदी आदतें सिखाते हैं। तुम्हें जो कुछ भी खाने की इच्छा हो उसे मुझे या अपनी मम्मी को बता दिया करो...। हम खरीद देंगे या घर में ही बनवा देंगे। उसके लिए चोरी करने और झूठ बोलने की भला क्या जरूरत है तुम्हें ? चलो...स्कूल जाओ और आगे से ऐसा गलत काम कभी नहीं करना।’’
पापा ने प्यार से समझाया तो अपूर्व की आॅंखों में आॅंसू आ गए। उसने अपने कान पकड़े और मन ही मन प्रतिज्ञा किया कि भविष्य में कभी उधार की चीजें नहीं लेगा।

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