हरे दोस्त

बाल कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

7/14/20231 मिनट पढ़ें

अपूर्व और अमोल दोनों भाई बहुत खुश थे क्यों कि आजकल दिल्ली से उनके सिनहा अंकल आए हुए थे। उनके पापा के दोस्त डा0 सिनहा दिल्ली स्थित कृषि अनुसंधान संस्थान में कृषि वैज्ञानिक हैं। वे प्रायः अपने संस्थान के कार्य से इलाहाबाद के नैनी स्थित कृषि अनुसंधान संस्थान आते रहते हैॅं और जब भी यहॉं आते हैं अपूर्व के घर पर ही ठहरते हैं। अपूर्व और अमोल हमेशा उनके आने की प्रतीक्षा करते हैं क्यों कि सिनहा अंकल बहुत ही रोचक तथा जानकारी की बातें बताया करते हैं।

रविवार की सुबह सिनहा अंकल उन दोनों भाईयों को साथ ले कर कम्पनी बाग की तरफ टहलने के लिए निकले थे। टहलते-टहलते वे अल्फ्रेड पार्क में आ गए और चन्द्रशेखर आजाद की प्रतिमा के पास एक चबूतरे पर बैठ कर योगाभ्यास करने लगे। अपूर्व और अमोल वहीं आसपास खेलने लगे। अमोल बहुत देर से गुडहल की ड़ाल पर खिला चटख लाल फूल तोड़ने की कोशिश कर रहा था। कई बार उछलने के बाद भी जब फूल उसकी पकड़ में नहीं आया तो उसने लपक कर पूरी ड़ाल ही खींच ली। खींचने से ड़ाल टूट गयी। ड़ाल टूटने की आवाज सुन कर सिनहा अंकल चिल्ला पड़े-‘‘हॉं...हॉं...हॉं अमोल यह क्या बेवकूफी कर रहे हो। चलो इधर आओ तुम दोनों।’’

सिनहा अंकल का चिल्लाना सुन कर दोनों भाई भाग कर उनके पास आ गए। ‘‘क्या बात है अंकल ?’’ अमोल ने पूछा।

‘‘तुम लोग नाहक ही क्यों इन बेचारे पेड़ों को परेशान कर रहे हो। बेचारे इस गुड़हल ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो इसकी एक अंगुली तोड़ ड़ाली तुमने।’’ सिनहा अंकल बोले।

‘‘अरे अंकल ! यह टहनी है टहनी....पेड़ की टहनी। किसी की अंगुली या हाथ नहीं है।’’ तोड़ी हुयी टहनी दिखाते हुए अमोल ने कहा।

‘‘तो क्या हुआ....? टहनी हो या पत्ता, है तो आखिर उस पेड़ का एक अंग ही। पेड़ के उस अंग को तुमने अनावश्यक तोड़ ड़ाला है। सोचो, कितना कष्ट हुआ होगा बेचारे गुड़हल को।’’ सिन्हा अंकल बोले।

‘‘अंकल, आप तो ऐसी बात कर रहे हैं जैसे ये पेड़ भी हमारी ही तरह आदमी हों। इनकी ड़ालें या फूल, पत्तियॉं तोड़ने पर इनको भी दर्द होता हो।’’ अपूर्व ने हॅंसते हुए कहा।

‘‘अरे भाई ! ये पेड़-पौधे भले ही हमारी तरह चलते-फिरते इन्सान नहीं हैं, लेकिन हैं तो आखिर ये भी जीवधारी ही। इनमें भी तो जान है। भले ही ये बता न सकें लेकिन इन्हें भी तो तकलीफ होती ही है।’’ सिनहा अंकल ने कहा।

‘‘जीवधारी....? आप कैसी बातें कर रहे हैं अंकल ? इन ड़ालों और पत्तियों में भला जीवन कहॉं से आ गया ?’’ अमोल बोल पड़ा।

अमोल की बात सुन कर सिनहा अंकल हॅंस पड़े और बोेले-‘‘तो क्या तुम लोग यह समझते हो कि पेड़, पौधें में जान नहीं होती....ये निर्जीव होते हैं ? ऐसी बात नहीं अमोल। पेड़, पौधे, घास, पात यानी कि सभी वनस्पतियॉं हमारी ही तरह जीवधारी होती हैं।’’

‘‘अच्छा....! क्या सचमुच....?’’ दोनों भाई एक साथ चौंक पड़े।

‘‘हॉं अमोल, पानी की सतह पर जमने वाली हरे रंग की काई से ले कर घास-फूस, झाड़ी और विशाल पेड़ों तक सभी प्रकार की वनस्पतियों में जान होती है। ठीक हमारी ही तरह ये वनस्पतियॉं भी वह सभी क्रियायें करती हैं जो हम करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि इस रहस्य की खोज सबसे पहले हमारे अपने ही देश के वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र वसु ने की थी।’’

‘‘अंकल ! तो क्या ये पेड़-पौधे हमारी ही तरह खाना भी खाते हैं और सोते भी हैं ?’’ अपूर्व ने प्रश्न किया।

‘‘हॉं अपूर्व ये पेड़-पौधे भी खाना खाते हैं, पानी पीते हैं, सॉंस लेते हैं, प्रजनन करते हैं, बीमार पड़ते हैं और उम्र पूरी होने पर मर जाते हैं।’’ सिनहा अंकल ने बताया।

‘‘हमें बुद्धू न बनाइए अंकल। अगर पेड़ पौधे खाना खाते हैं तो यह बताइए कि इनके हाथ कहॉं हैं, इनका मुॅंह किधर है, और इनके दॉंत कहॉं हैं।’’ अमोल ने कहा।

‘‘हम तुम्हें बुद्धू नहीं बना रहे हैं बेटे बल्कि वैज्ञानिक सत्य बता रहे हैं। दरअसल पेड़, पौधे ठीक उसी प्रकार खाना नहीं खाते जैसे कि हम लोग खाते हैं। इनके खाने का तरीका हमसे अलग है। अच्छा चलो आज तुम लोगों को मैं इसी विषय में बताता हूॅं और पूरी प्रक्रिया समझाता हूॅं। अमोल सबसे पहले तो तुम यह बताओ कि हमें जीवित रहने यानी सॉंस लेने के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है ?’’

‘‘आक्सीजन गैस की।’’ अमोल ने तपाक से उत्तर दिया।

‘‘बिल्कुल ठीक। अच्छा, अब यह बताओ कि सॉंस लेने के बाद हम कौन सी गैस बाहर की ओर छोड़ते हैं।’’

‘‘कार्बनडाईआक्साइड़ गैस।’’ पुनः अमोल ने ही उत्तर दिया।

‘‘जानते हो अमोल, न सिर्फ हम मनुष्यों बल्कि पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़ों, यानी सभी प्राणियों को जीवित रहने के लिए आक्सीजन की आवश्यकता होती है। कीट, पतंगों से ले कर बड़े जानवरों तक सभी प्राणी अपनी सॉंस के साथ वायुमंड़ल की आक्सीजन अंदर लेते हैं और अपने अंदर की कार्बनड़ाईआक्साइड को बाहर निकालते हैं। क्या तुम लोगों ने कभी यह सोचा है कि यदि इसी प्रकार धीरे-धीरे कर के वायुमंड़ल की सारी आक्सीजन गैस कार्बनड़ाईआक्साईड़ में बदल जाए तो हमें सॉंस लेने के लिए आक्सीजन कहॉं से मिलेगी।’’

‘‘हॉं अंकल, यह बात तो है। यदि इस वायुमंड़ल की सारी आक्सीजन गैस कार्बनडाई आक्साइड में बदल जाए तब तो कोई भी जिन्दा नहीं बच सकेगा। जब आक्सीजन ही नहीं मिलेगा तो कोई सांस कैसे ले पाएगा।’’ अपूर्व ने चिन्तित स्वर में कहा।

अपूर्व की घबड़ाहट देख कर सिनहा अंकल हॅंस पड़े और बोले-‘‘घबड़ाओ नहीं अपूर्व, ऐसा नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता तो आज इस पृथ्वी पर कोई भी जीवधारी नहीं बचा होता। हम, तुम भी नहीं होते। हमारे ये हरे-हरे दोस्त यानी पेड़-पौधे और वनस्पतियॉं ऐसा अनर्थ नहीं होने देंगे।’’

‘‘वो कैसे अंकल ? मैं समझा नहीं।’’ अमोल ने पूछा।

‘‘वो ऐसे अमोल कि हम प्राणियों द्वारा वायुमंडल में छोड़ी गयी कार्बनड़ाई आक्साइड़ गैस को ये पेड़-पौधे सोख लेते हैं और उसके बदले में हमें आक्सीजन दे देते हैं।़ इस प्रकार वायुमंड़ल में आक्सीजन और कार्बनड़ाई आक्साइड़ गैसों का संतुलन सदैव बना रहता है।’’

‘‘अंकल ! अगर ऐसी बात है तब तो ये पेड़, पौधे सचमुच हमारा बहुत बड़ा उपकार करते हैं।’’ अपूर्व बोल पड़ा।

‘‘हॉं अपूर्व, तभी तो सरकार द्वारा अधिक से अधिक पेड़ लगाने तथा हरे पेड़ों को न काटने की बात कही जाती है।’’

‘‘लेकिन अंकल एक बात बताइए, कार्बनड़ाई आक्साइड़ तो जहरीली गैस होती है। पेड़, पौधे उसे सोख कर क्या करते हैं।’’ अमोल ने प्रश्न किया।

‘‘हॉं अमोल यह प्रश्न तुमने बहुत समझदारी की पूछी। दरअसल कार्बनड़ाई आक्साइड़ की सहायता से पेड़-पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं। पेड़-पौधों के लिए भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी उनकी हरी पत्तियों की होती है। ये कह सकते हो कि पत्तियॉं पेड़ों की रसोई घर होती हैं। पत्तियों के द्वारा भोजन तैयार करने की इस प्रक्रिया को ‘प्रकाश संश्लेषण’ कहा जाता है। इस कार्य के लिए कुल चार चीजों की आवश्यकता होती है। 1-सूरज की किरणें यानी धूप, 2-पानी, 3-कार्बनड़ाई आक्साइड़ गैस, तथा 4-क्लोरोफिल।’’

‘‘यह क्लोरोफिल क्या चीज होती है अंकल ?’’ अपूर्व ने पूछा।

‘‘बता रहा हूॅं बेटा बता रहा हूॅं.....। क्लोरोफिल को हिन्दी में पर्णहरित कहा जाता है। पत्तियों में जो हरा पदार्थ होता है न, वही पर्णहरित कहलाता है और इसी के कारण ही पत्तियों को पेड़ों का रसोईघर कहा जाता है। दिन के समय पत्तियों को सूर्य का प्रकाश अपने आप मिल जाता है, कार्बनड़ाई आक्साइड़ गैस वायुमंड़ल से मिल जाती है और पेड़ की जड़ें जमीन के अंदर से पानी खींच कर पत्तियों तक पॅंहुचा देती हैं। इस प्रकार चारों आवश्यक अवयव मिल जाने से पौधों का भोजन तैयार हो जाता है।’’

‘‘अंकल ! अभी आप ने बताया कि पेड़-पौधों को भोजन तैयार करने के लिए धूप की आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह हुआ कि पेड़-पौधे रात के समय अपना भोजन नहीं बना पाते होंगे।’’ अपूर्व ने पूछा।

‘‘हॉं अपूर्व ! बिल्कुल सही कहा तुमने। पेड़-पौधे रात के समय अपना भोजन नहीं बना पाते। रात के समय पेड़-पौधे भी हमारी ही तरह सोते हैं।’’

‘‘क्या कहा.....पेड़, पौधे भी सोते हैं ?’’

‘‘हॉं बेटा ! सिर्फ सोते ही नहीं पेड़, पौधे हमारी ही तरह हॅंसते हैं, रोते हैं, खुश होते हैं और उदास भी होते हैं।’’

‘‘अच्छा ! क्या सचमुच ?’’ अमोल आश्चर्य से ऑंखें फैला कर बोला।

‘‘हॉं अमोल ये बातें सिर्फ कल्पना नहीं हैं बल्कि वैज्ञानिक प्रयोंगों से सिद्ध भी हो चुकी हैं। कुछ खेतों में संगीत की मधुर धुनें बजायी गयीं और फसलों के पास बैठ कर नियमित रूप से गीत गाए गए तो परिणाम यह हुआ कि उन फसलों की पैदावार काफी बढ़ गयी। दूसरी तरफ ऐसे स्थानों पर जहॉं उदासी और रोने-धोने का वातावरण था वहॉं या तो पौधे मुरझा गए या उनकी पैदावार कम हो गई। यही नहीं जिस प्रकार प्यास लगने पर हम तुम पानी मॉंगते हैं ठीक उसी प्रकार पौधे भी प्यास लगने पर आवाज लगाते हैं। ब्रिटिश कोलम्बिया के पैसेफिक एग्रीकल्चरल रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने टमाटर के पौधे के तने से माइक्रोफोन बॉंध दिया और उसकी जड़ों से पत्तियों तक पानी पॅंहुचाने वाली नलियों में पानी का प्रवाह रोक दिया तो तने से आवाजें आने लगीं। मानो पौधे के तने और पत्तियॉं पानी मॉंग रहे हों। तब रोके गए पानी का प्रवाह जारी कर दिया गया तो आवाजें आनी बंद हो गयीं।’’

‘‘अरे वाह ! अंकल आपने तो सचमुच बहुत अद्भुत और मजेदार बातें बतायीं।’’ अपूर्व बोल पड़ा।

‘‘इतना ही नहीं अपूर्व ! पेड़, पौधे भी हमारी ही तरह बीमार भी पड़ते हैं और इलाज करने पर ठीक भी हो जाते हैं। पेड़, पौधों और फसलों आदि के विभिन्न रोगों में प्रयोग की जाने वाली दवाइयॉं, रसायनों तथा कीटनाशकों आदि के बारे में तो तुमने पढ़ा ही होगा। अपने देश के कृषि वैज्ञानिकों ने एक नई खोज यह की है कि पेड़-पौधों के द्वारा भी बीमार पेड़, पौधों का इलाज किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मदार, पाकड़, नीम, पीपल तथा लटजीरा आदि पौधों की छाल या पत्तों को पीस कर बीमार पेड़, पौधों की जड़ों में ड़ाला जाय या उनके ऊपर लेप किया जाय तो उनकी अनेक बीमारियॉं दूर की जा सकती हैं।’’

‘‘वाह अंकल वाह ! वाकई आज हमने एक नई बात जानी कि पेड़-पौधों में न सिर्फ जीवन होता है बल्कि हमारे लिए ये अत्यन्त उपयोगी भी होते हैं। अभी तक तो हम यही जानते थे कि पेड़ हमें सिर्फ फल, फूल और लकड़ी देते हैं लेकिन आज पता चला कि हमारे जीने के लिए आवश्यक आक्सीजन गैस भी ये पेड़, पौधे ही देते हैं।’’ अमोल ने चहकते हुए कहा।

‘‘हॉं अमोल ! सच बात तो यह है कि पेड़-पौधों के बिना मनुष्य जाति तथा जीव-जन्तुओं का अस्तित्व ही संभव नहीं है। हमारे पूर्वज इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते थे। इसीलिए हिन्दू धर्म में वृक्षों को देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है और वृक्षारोपण को बहुत पुण्य का कार्य माना गया है।’’

‘‘अंकल ! अब समझ में आया कि गुड़हल की ड़ाल तोड़ने पर आपने हमें क्यों ड़ॉंट लगायी थी। सचमुच ये हरे दोस्त तो हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। अब तो हम भी अपने घर की लॉन में पेड़ लगायेंगे।’’ अपूर्व ने कहा।

‘‘सिर्फ अपने लॉन में ही नहीं, पेड़ तो तुम जहॉं जगह मिले वहॉं लगा सकते हो। लेकिन पौधों को लगाने से अधिक महत्वपूर्ण होता है उनकी देख-रेख करना। पौधे जब तक पेड़ न बन जायें, उनको पानी देने तथा जानवरों के चरने से बचाने की जरूरत होती है। आओ, अब घर चलें।’’ सिनहा अंकल ने कहा तो दोनों भाई उनके साथ घर की ओर चल दिए।’’

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