गुरूमंत्र

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

6/7/20211 मिनट पढ़ें

उसकी शादी हुयी। शादी के तीसरे दिन प्रीति-भोज था। प्रीति-भोज का निमंत्रण-पत्र देने वह अपने एक पुराने गुरु जिन्होंने कालेज के दिनों में उसे पढ़ाया था के घर गया ।

‘‘कल शाम मेरे यहाॅं प्रीति-भोज पर पधारने की कृपा करें गुरुदेव। ’’ अभिवादन के बाद निमंत्रण-पत्र पकड़ाते हुए उसने कहा।

‘‘प्रीति-भोज.....? किस उपलक्ष्य में बेटे......?’’ गुरुजी ने उत्सुकतावश प्रश्न किया।

‘‘मेरी शादी के उपलक्ष्य में। अब मैं एक से दो हो गया गुरुदेव.....परसों मेरी शादी हुयी है।’’ उसने चहकते हुए बताया।

‘‘क्या कहा.....? शादी हो गयी और तुम एक से दो हो गए....? ऐसा कह कर तूने अनर्थ कर दिया बेटे। मतलब कि तुमने विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार का अर्थ ही नहीं समझा।’’ खुश होने के बजाय गुरुजी सहसा गंभीर हो गए।

वह अवाक् हो गुरुजी का मुॅंह ताकने लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसने क्या गलत कह दिया।

उसकी परेशानी भाॅंप गुरुजी मुस्कराए फिर बोले-‘‘सच बात यह है बेटे कि तुम एक से दो नहीं बल्कि दो से एक हुए हो। अभी तक तुम्हारी और तुम्हारी पत्नी दोनों का दो अलग-अलग जगहों पर दो अलग-अलग व्यक्तित्व था....तुम दोनों का एक दूसरे से सर्वथा अलग स्वतंत्र अस्तित्व था......और तुम्हारे सुख-दुःख, हर्ष-विषाद भी अलग थे। किन्तु अब विवाह के बाद तुम दोनों मिल कर एक हो गए यानी कि तुम दोनों के दो अलग व्यक्तित्व एक दूसरे में समाहित हो कर एक हो गए। अब तुम दोनों एक दूसरे के पूरक हो गए....अब तुम्हारे सुख-दुख, हर्ष-विषाद एक हो गए है। अब एक दूसरे के बगैर तुम अपूर्ण और अधूरे हो। प्रेम का यह गणित ऐसा ही अनोखा है बेटे.....यहाॅं एक और एक मिल कर एक होता है, दो नहीं। प्रेम के इस यथार्थ को तुम गाॅंठ बाॅंध लो.....प्रेम का यही अनोखा सूत्र तुम्हारे भावि ग्राहस्थ जीवन के लिए सुख-शान्ति का गुरुमंत्र है। ’’

वह मंत्रमुग्ध हो गुरुजी की बातें सुनता रहा और उनकी बात समाप्त होते ही उनके चरणों पर नत-मस्तक हो गया ।

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