ग़ज़लें
ग़ज़ल
1
चेहरे पे आप के जो चमक है, लुनाई है।
मानिए सच, वो हमारी वजह से ही आई है।
ठीक है कि भाग्य-विधाता हैं आप जनता के,
आपकी ये हैसियत हमने ही तो बनाई है।
स्ंाविधान बोलता है आप, हम बराबर हैं,
फिर जनाब किसलिए ये दरम्यां में खाई है।
आज नहीं कल, परसों आप तक भी पहॅंुचेगी,
जाति, क्षेत्र, धरम की ये आग जो लगाई है।
क्या गजब का दौर चला आज के जमाने में,
पैसा, बस पैसा हर मर्ज की दवाई है।
यारों की भीड़ ‘चमन’ खुशहाली रहने तक,
गुरबत में साथ सिर्फ अपनी परछाईं है।
2
पइयाॅ-पइयाॅ आते बच्चे अच्छे लगते हैं।
मुस्काते, तुतलाते, बच्चे अच्छे लगते हैं।
बाग, बगीचे, आॅंगन, द्वारे तितली के पीछे,
भगते, दौड़ लगाते बच्चे अच्छे लगते हैं।
उचित यही है धीर और गम्भीर बनें लेकिन,
मुद्दों पर चिल्लाते बच्चे अच्छे लगते हैं।
स्नेह और सम्मान को उनके ठेस लगे तो फिर,
हक खातिर तन जाते बच्चे अच्छे लगते हैं।
कोई कहे लफंगा लेकिन हमको हाथों में,
पत्थर, ईंट उठाते बच्चे अच्छे लगते हैं।
बात अगर बदलाव की करते हों तो नारों संग,
‘चमन’ हाथ लहराते बच्चे अच्छे लगते हैं।
3
फिर तमाशा करके कोई दिल को बहलायेंगे वे।
देखिए इस बार कैसा खेल दिखलायेंगे वे।
अब तलक तो है कुरेदा भर चुके हर जख्म को,
अब सुना इस साल सारे जख्म सहलायेंगे वे ।
देश पहले बाॅंट कर बाॅंटा है सूबे-गाॅंव को,
अब है उनकी चाल दिल से दिल को अलगायेंगे वे।
दूध-घी के ख्वाब ना अब तक हकीकत बन सके,
राम जाने और कब तक ख्वा़ब दिखलायेंगे वे।
तर-बतर मुझको पसीने में जो देखा एक दिन,
कह गए कि खुशबुओं के टब में नहलायेंगे वे।
वे नहीं ऐसे ‘चमन’ जो बेवजह आया करें,
मौसमी हैं, आएगा मौसम तो फिर आयेंगे वे।