गज़लें
ग़ज़ल
1
तैयार हैं बिकने के लिए आन-बान से।
संसद से या विधानसभा की दुकान से।
जनहित में आज उनको बदलना पड़ा है दल,
मालूम हो सका है ये ताजा बयान से।
भाषण जो दे गए थे भ्रष्टाचार के खि़ला़फ़,
सोने की सिल्लियाॅं मिलीं उनके मकान से।
हक़ जिसका जो था वो बराबर उसे मिला,
रिश्वत भी बाॅटते हैं वे पूरे ईमान से।
यॅंू तो घनी घटाएॅं घिरी थीं बहुत ‘चमन’,
पानी न एक बूॅंद गिरा आसमान से।
परहेज़ करना सीख खरी बात यूॅं न कह,
है वक़्त बदमिजाज तू जाएगा जान से।
2
मुद्दतों से है घिरा गहरा अॅधेरा गाॅव में।
राम जाने कब तलक होगा सवेरा गाॅव में।
आजकल हर एक जुगनू खुद को सूरज कह रहा,
किन्तु बढ़ता जा रहा है तम घनेरा गाॅव में।
वायदे करते रहे हालात में बदलाव के,
राजधानी जो गया फिर मुॅंह न फेरा गाॅंव में।
जाने कब से टेरती है द्रोपदी श्रीकृष्ण को,
चप्पे-चप्पे पर दुःशासन का है डेरा गाॅंव में।
नीम, पीपल, रो रहे, बरगद बिचारा भी दुखी,
चील, गिद्धों का हुआ जब से बसेरा गाॅंव में।
कल तलक सब कुछ यहाॅं हम सब का होता था ‘चमन’
आज लेकिन हो गया तेरा व मेरा गाॅव में।
3
उनके आॅगन सुख की वर्षा, हमको तो बस पीर मिली।
उनको मनचाही आजादी, और हमें जंजीर मिली।
प्यास लगी तो काले-काले मेघ दिखाकर फुसलाया,
भूख लगी तो हमको केवल रोटी की तस्वीर मिली।
कब तक, आखि़र कब तक आखि़र चलन रहेगा ऐसे ही,
उम्र कै़द सूरज ने पायी, जुगनू को ज़ागीर मिली।
सुखी देख ही सके भला कब औरों को दुनिया वाले,
मिली कहाॅं फरहाद को शीरी राॅझे को कब हीर मिली ?
कोई कुछ भी कहे मगर है दोष गलत बॅटवारे का,
कैसे मानें ‘चमन’ कि हमको खोटी ही तक़दीर मिली।
बारम्बार सोच लो प्यारे सच कहने से पहले तुम,
जिसने भी सच-सच बोला है, उसे सजा गंभीर मिली।