Ghazal

ग़ज़ल

Akhilesh Srivastava Chaman

6/28/20211 मिनट पढ़ें

1

उनके आॅगन सुख की वर्षा, हमको तो बस पीर मिली।

उनको मनचाही आजादी, और हमें जंजीर मिली।

प्यास लगी तो काले-काले मेघ दिखाकर फुसलाया,

भूख लगी तो हमको केवल रोटी की तस्वीर मिली।

कब तक, आखि़र कब तक आखि़र चलन रहेगा ऐसे ही,

उम्र कै़द सूरज ने पायी, जुगनू को ज़ागीर मिली।

सुखी देख ही सके भला कब औरों को दुनिया वाले,

मिली कहाॅं फरहाद को शीरी राॅझे को कब हीर मिली ?

कोई कुछ भी कहे मगर है दोष गलत बॅटवारे का,

कैसे मानें ‘चमन’ कि हमको खोटी ही तक़दीर मिली।

बारम्बार सोच लो प्यारे सच कहने से पहले तुम,

जिसने भी सच-सच बोला है, उसे सजा गंभीर मिली।

2

पौध कड़वाहट के काटें, प्यार बोयें

रात-रानी, कुमुदिनी, कचनार बोयें।

मन भी है, मौसम भी है वातावरण भी,

कुछ शरारत, और कुछ मनुहार बोयें।

जिऩ्द़गी जिन्दादिली का नाम है तो,

फिर हॅसी-ठट्ठे के कुछ त्यौहार बोयें।

सोच लें बस जीतना तो जीतना है,

स्वप्न में भी हम न लेकिन हार बोयें।

चाहे जितनी भी घनेरी रात हो पर,

एक मोहक भोर के आसार बोयें।

लोग कहते हैं ‘चमन’ होगी प्रलय कल,

आइए, हम आज नव-संसार बोयें।

3

थोड़ी सी इकरार की बातें।

और जरा इन्कार की बातें।

आओ ! बैठो पास जो मेरे,

पल-दो पल हों प्यार की बातें।

कुछ लम्हों का साथ अगर है,

क्यों करना तक़रार की बातें।

तुम बस यूॅ ही रूठो मुझसे,

मैं छेडं़ॅू मनुहार की बातें।

बातें हों बस तेरी-मेरी

छोड़ो जग-संसार की बातें।

दुनिया वाले क्या सोचेंगे ?

‘चमन‘ वही बेकार की बातें।

4

मजहब के नाम पर यहाॅं फैला तनाव है।

फिर आ गया ऐ दोस्तों, देखो चुनाव है।

माझी, अलग-अलग हैं तो पतवारें भी अलग,

देखो कि कैसे पार हो, खतरे में नाव है।

जाति-सम्प्रदाय तो है, क्षेत्र गोत्र भी,

जनमत की राह में यहाॅं बस काॅंव-काॅंव है।

जुम्मन की तौल हो गयी अल्ला के नाम पर,

अलगू के वास्ते लगा मंदिर का दाॅंव है।

हर हाल में ‘चमन’ तुम्हें रहना है होशियार,

धारा में उतरो ध्यान से उल्टा बहाव है।

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