फिसलन
कहानी
रात के लगभग नौ बज रहे थे। अरूणा कमरे की दीवार पर टॅंगे आईने के सामने खड़ी अपने बाल सॅंवार रही थी कि भड़ाक् की आवाज के साथ दरवाजा खुला और नीता धड़धड़ाती हुयी अंदर आयी।
‘‘नीतू ! अरे आज इतनी देर कहाॅं लगा दी रे तूने.?’’ कमरे के अंदर नीता के घुसते ही अरूणा ने शिकायती लहजे में प्रश्न किया। उसके प्रश्न का उत्तर देने के बजाय नीता ने अपने कंधे से लटका छोटा सा बैग बिस्तर पर फेंका, आगे की ओर लटक आए बालों को पीछे की तरफ झटका और अरूणा को अपनी बाॅंहों के घेरे में बाॅंध कर उसे बेतहाशा चूमती हुयी गोल-गोल घूमने लगी।
‘‘अरे....रे....रे....रे...ये क्या पागलपन कर रही है तू.....? चल हट....बेशरम कहीं की.......।’’ अपने आप को नीता की बाॅंहों के घेरे से अलग कर के उसे परे धकेलते हुए अरूणा बोली।
‘‘प्यार कर रही हूॅं मेरी जान प्यार।’’ नीता ने आॅंखें मटकाते हुए, शरारत से मुस्कुराते हुए जबाब दिया। खुशी उसके रोम-रोम से फूट पड़ रही थी।
‘‘क्या बात है....? आज बहुत खुश नजर आ रही है तू.....। कहीं किसी दीवाने ने प्रपोज तो नहीं किया....?’’ अरूणा ने चुहल की।
‘‘धत्....। मेरे पास इन आलतू-फालतू बातों के लिए समय नहीं.....समझी......?’’ नीता ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।
‘‘तो फिर इतनी मगन क्यों है.....इतना चहक क्यों रही है आज.....?’’
‘‘तू बता.....।’’
‘‘अरे मैं क्या कोई लालबुझक्कड़ या नजूमी हूॅं जो लिफाफा देख कर मजमुन भाॅंप लूॅं। तू न जाने कहाॅं से क्या गुल खिला कर चहकती, फुदकती चली आ रही है....तो तू ही बता कि माजरा क्या है.....?’’
‘‘बता दूॅं......।’’
‘‘हाॅं......बता न.....।’’
‘‘बता दूॅं......।’’
‘‘देख ! तू बहुत ज्यादा भाव न बढ़ा अपना। तुझे बताना हो तो बता, न बताना हो तो बिल्कुल न बता। मुझे कोई दिलचस्पी नहीं तुम्हारी कारस्तानी सुनने में। मुझे कोई गरज नहीं जो तेरी चिरौरी करूॅं। मैं खाने के लिए मेस जा रही हूॅं तुझे भी चलना हो तो चल।’’ अरूणा ने किंचित गुस्से में कहा और कमरे से बाहर जाने लगी तो नीता ने लपक कर उसे पकड़ लिया।
‘‘अरे...रे गुस्सा न हो मेरी जान...। बताती हूॅं.....बताती हूॅं। बात ये है कि आज मेरा प्रमोशन हुआ है। आज से मैं बाॅस की ए0पी0एस0 हो गयी। ए0पी0एस0 माने असिस्टेंट पर्सनल सेक्रेटरी। बेचारी जया महाजन की छुट््ी हो गयी। यानी एक किला फतह। कुछ समझी..?’’
‘‘अच्छा.....! अभी तो तुम्हें वहाॅं नौकरी ज्वाइन किए जुमा-जुमा छः महीने भी नहीं हुए और इतनी बड़ी छलाॅंग लगा दी तूने ?’’
‘‘प्रायवेट सेक्टर की नौकरी में यही तो खास बात है डि़यर कि अगर आदमी के अंदर टेलेन्ट हो, केलिवर हो, स्मार्टनेस हो तो सिनियारिटी, जूनियारिटी कोई मायने नहीं रखती।’’
‘‘हूॅं......। अगर वाकई ऐसा ही है, तुम्हारा प्रमोशन वाकई तुम्हारी योग्यता और केलिवर के आधार पर ही हुआ है तब तो सचमुच बहुत खुशी की बात है लेकिन अगर इस प्रमोशन के पीछे कोई और कारण है तब तो भई ठीक नहीं।’’ अरूणा कुछ गंभीर सी हो गयी।
‘‘क्या मतलब.....? तुम कहना क्या चाहती हो....?’’
‘‘वही जो तुम समझ रही हो......। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे बाॅस की निगाह तुम्हारी योग्यता के बजाय तुम्हारे रूप, रंग और तुम्हारी जवान जिस्म पर हो।’’
नीता एकदम से सकते में आ गयी मानो चोरी करते रंगे हाथों पकड़ ली गयी हो, मानो अकस्मात उसे सर्वांग नंगी देख लिया हो किसी ने। पहले तो मारे घबराहट के उसकी बोलती ही बंद हो गयी, फिर सॅंभलते हुए बोली-‘‘देख, अव्वल तो ऐसी कोई बात नहीं है....और अगर थोड़ी देर के लिए मान ले कि ऐसा है भी तो इसमें बुराई क्या है.? ईश्वर ने यदि हमें गोरी चमड़ी दी है, अच्छी शक्ल, सूरत दी है तो उसे इनकैश कराने और उसका फायदा उठाने में हर्ज ही क्या है...?’’
‘‘ठीक कहती हो तुम.....। देने को तो ईश्वर ने हम लड़कियों को और भी बहुत कुछ दे रखा है जिसे इनकैश करा के हम बहुत कुछ हासिल कर सकती हैं। तो तुम्हारे हिसाब से तो उसे इनकैश कराने में भी कोई हर्ज नहीं होनी चाहिए....। क्यों ?’’
‘‘छोड़ो यार....! तुम भी कैसी आलतू-फालतू बातें ले कर बैठ गयी। दो साल के करीब हो गए तुम्हंे दिल्ली में रहते और अभी तक कुॅंवे की मेढ़क बनी, वही अपने बलिया, बिहार की मानसिकता से चिपकी बैठी हो। कम आन बेबी....रन विद टाइम एण्ड ट्रेण्ड। दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है अन्नू....बहुत आगे। दादी, नानी के जमाने की दकियानूस रूढि़यों के साथ अगर ऐसे ही चिपकी रही....यूॅं ही लकीर की फकीर बनी रही तो फिर रेस से बाहर हो जाओगी....पीछे छूट जाओगी। अगर रेस में बने रहना है तो समय के साथ चलो। समझी....?’’
नीता का जबाब सुन कर अरूणा अवाक् रह गयी। अब उसके पास कहने को कुछ भी नहीं रह गया था। गहरी खामोशी छा गयी कमरे के अंदर। कुछ देर बाद नीता ने ही चुप्पी तोड़ी-‘‘देख अन्नू....मुझे पता है कि मेरा बाॅस लड़कियों के लिए साफ्ट कार्नर रखता है.....हो सकता है तुम जो शक जाहिर कर रही हो वह बात भी हो उसके मन में। लेकिन यू शुड़ नाट वरी....। मैं कोई प्लेट में सजा कर रखी गुलाब जामुन नहीं हूॅं कि बाॅस उठा कर गप्प से मुॅंह में रख ले या मिश्री की ढली नहीं हूॅं कि जरा सा पानी पड़ते ही गल जाऊॅंगी।’’
‘‘अच्छा छोड़ ये बातें। चल ! जल्दी से फ्रेश हो ले तो खाना खाने चलें। तेरे इन्तजार में इतनी देर हो गयी। चूहे कूद रहे हैं मेरे पेट में।’’ अरूणा ने बात बदलते हुए कहा तो नीता तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गयी।
रात को अपने लिहाफ में दुबकी अरूणा घंटों नीता के बारे में ही सोचती रही। देखते ही देखते चार-पाॅंच महीनों के अंदर ही कितनी बदल गयी है नीता ? कहीं किसी गलत रास्ते पर तो नहीं जा रही वह ? यह ख्याल आते ही अरूणा की आॅंखों के सामने टी0वी0 और अखबार में देखी, सुनी, पढ़ीं लड़कियों के यौन-शोषण और ब्लैकमेलिंग की ढ़ेर सारी घटनायें चलचित्र की भाॅंति घूम गयीं। किसी अनहोनी की आशंका से अंदर ही अंदर सिहर उठी वह।
लगभग ड़ेढ़ साल पहले एम0बी0ए0 के पाठ्यक्रम में एड़मिशन लेने के बाद अरूणा जब दिल्ली में सर छुपाने के लिए एक अदद ठिकाने की तलाश कर रही थी उन्हीं दिनों उसकी भेंट नीता से हुयी थी। नीता उससे एक साल सीनियर थी और लाजपत नगर के इस वोमेन्स हास्टल के रूम न0-7 में रह रही थी। नीता की रूम पार्टनर कमरा खाली कर के जा चुकी थी और उसे एक अदद रूम पार्टनर की तलाश थी। उन दोनों ने एक दूसरे की आवश्यकता पूरी की और अरूणा नीता के साथ बतौर रूम-पार्टनर रहने लगी। मूलतः अल्मोड़ा के पास के किसी गाॅंव की रहने वाली नीता जोशी देहरादून से ग्रेजुएशन करने के बाद एम0बी0ए0 करने दिल्ली आयी थी। पहाड़ी लड़कियाॅं तो वैसे भी सुन्दर होती हैं लेकिन नीता कुछ विशेष ही थी। ऐसा लगता था कि विधाता ने उसे फुरसत के समय में काफी इत्मिनान से गढ़ा था। अपनी सामान्य शक्ल, सूरत तथा दबा रंग देख खुद अरूणा को भी कभी-कभी नीता की गोराई, उसके तीखे नैन-नक्श और सुन्दरता से ईष्र्या सी होने लगती थी।
अरूणा को अच्छी तरह से याद है आज से लगभग छः,सात महीने पूर्व उस दिन भी नीता ऐसे ही खुशियों से लबरेज चहकती हुयी कमरे में आयी थी। लेकिन उस दिन उसने अरूणा को अपनी बाहों में भर कर चूमा नहीं था बल्कि अपने साथ हनुमान मंदिर चलने के लिए कहा था। एम0बी0ए0 का कोर्स पूरा करने के बाद नीता उन दिनों नौकरी के लिए हाथ-पाॅंव मार रही थी। वह रोज सवेरे उठ कर अखबारों को खॅंगालती, वेकेन्सी देखती, एप्लीकेशन भेजती और यहाॅं, वहाॅं भाग-भाग कर इन्टरव्यू देती फिरती थी। वैसे तो अमूमन रोज शाम को वह बाहर से थकी, हारी उदास लौटती थी लेकिन उस दिन लौटी तो उसका चेहरा किसी ताजे फूल सा खिला हुआ था। उसकी आॅंखें हॅंस रही थीं। मन की खुशी उसके छुपाए नहीं छुप रही थी। वह कमरे में घुसते ही बोली-‘‘अन्नू ! जल्दी से कपड़े बदल ले। चल हनुमान मंदिर चलते हैं।’’
‘‘क्यों....कोई खास बात.....?’’
‘‘हाॅं....आज मंगल के दिन हनुमान जी की कृपा से मुझे नौकरी मिल गयी।’’
‘‘हनुमान जी की कृपा से नौकरी मिली है कि तुम्हारी योग्यता से कारण ?’’
‘‘अरे इसी योग्यता को लिए-लिए तो मैं पिछले चार महीनों से इण्टरव्यू देती फिर रही हूॅं....और सात जगहों से रिजेक्ट की जा चुकी हूॅं। यह आठवाॅं इन्टरव्यू था मेरा। आज मंगलवार का दिन था इसलिए सुबह निकलते समय हनुमान जी से मनौती मना कर गयी थी कि अगर इस इंटरव्यू में सेलेक्शन हो गया तो सवा किलो लड्डू चढ़ाऊॅंगी....।’’
‘‘इसका मतलब कि सवा किलो लड्डू की लालच में हनुमान जी ने तुम्हारी नौकरी के लिए पैरवी कर दी....तुम्हारा सिलेक्शन करा दिया। क्यों....यही बात हुयी न.....?’’
‘‘अरे बाबा ! अपनी फिलासफी तू अपने पास रख। यह अपनी-अपनी आस्था और विश्वास की बात है। मैंने मन्नत मानी थी इसलिए मैं तो मंदिर जाऊॅंगी और प्रसाद चढ़ाऊंॅंगी ही। अगर तुझे भी चलना है तो साथ चल वरना मैं अकेली ही जा रही हूॅं।’’
हाथ, मुॅंह धो, साफ कपड़े पहन कर नीता उस दिन अरूणा के साथ हनुमान मंदिर गयी। वहाॅं सिर पर चुन्नी ड़ाल कर, देहरी पर माथा रगड़ कर उसने पूरी श्रद्धा के साथ पूजा, अर्चना की फिर लौट कर उसने पूरे हास्टल में प्रसाद बाॅंटा था।
वह दक्षिण भारत की कोई फायनेन्स कम्पनी थी जिसने उत्तर भारत में अपना पैर जमाने की गरज से दिल्ली में नया-नया कार्यालय खोला था। प्रथम बार में नीता सहित कुल चार लड़कियों और तीन लड़कों की भर्ती की थी उस कम्पनी ने। विद्यालय के परिवेश से निकली नीता के लिए वह नई दुनिया, नए माहौल और नित नए अनुभवों से साक्षात्कार के दिन थे। आफिस से लौटने के बाद जब तक वह सुबह से ले कर शाम तक के बीच आफिस में घटी समस्त घटनाओं का विस्तृत विवरण अरूणा को बता नहीं लेती उसे चैन नहीं मिलता था। आफिस की एक-एक बात वह पूरे विस्तार के साथ बताती कि कैसे उसका बाॅस कृष्णन अय्यर किसी न किसी बहाने लड़कियों को अपने चैम्बर में बिठाए रहता है, कि कैसे वह लड़कों की जरा-जरा सी गलतियों पर उन्हें ड़ाॅंटता रहता है लेकिन लड़कियों की बड़ी गलतियाॅं भी मुस्करा कर टाल जाता है, कि कैसे बाॅस की पर्सनल सेक्रेटरी नीलिमा कालरा और असिसटेन्ट पर्सनल सेक्रेटरी जया महाजन में एक दूसरे को पछाड़ कर बाॅस के अधिकाधिक करीब पॅंहुचने के लिए होड़ मची रहती है, वगैरह, वगैरह।
नौकरी के कुछ दिनों बाद से ही नीता के व्यक्तित्व, रहन-सहन एवं पहनावे-ओढ़ावे में तेजी से परिवर्तन आने लगा था। अब उसकी बातों में ज्यादा बेतकल्लुफी तथा खुलापन होता था। साथ ही अपने बनाव, श्रृंगार तथा परिधानों के प्रति भी अब वह कुछ ज्यादा ही सतर्क रहने लगी थी। नीता में आए इस बदलाव को अरूणा ने बखूबी नोट किया लेकिन उसे कार्यालयी माहौल की आवश्यकता तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता के बाद का स्वाभाविक परिवर्तन मान कर उसने नजर अंदाज कर दिया था।
‘‘अरी यार ! आज पता चला नीलिमा कालरा की ब्यूटी और स्लिमनेस का राज। जानती हो ? अपनी सेलरी का वन फोर्थ तो वह चुड़ैल अपने मेन्टीनेन्स पर ही खर्च कर देती है। पता चला है कि वह रोज सुबह वह जिम जाती है और हर हफ्ते ब्यूटी पार्लर।’’ एक शाम आफिस से लौटने के बाद नीता ने अरूणा से ऐसे कहा जैसे वह कोई बहुत रहस्य की बात बता रही हो।
‘‘तो इसमें तुझे क्या परेशानी है.....?’’
‘‘परेशानी क्यों नही है......? अपनी इसी स्लिम फिगर और ब्यूटी के बल पर ही तो वह बाॅस की पर्सनल सेक्रेटरी बनी बैठी है। सच कहें तो जया महाजन इस कालरा की बच्ची से तेज है.......काम में भी और जानकारी में भी। फिर भी बाॅस जया के मुकाबले कालरा को ही ज्यादा तवज्जो देता है क्यों कि वह अधिक टिप-टाप रहती है और लटके-झटके भी जरा ज्यादे ही दिखाती है।’’
‘‘अरे बाबा ! तुम लोग वहाॅं नौकरी करने जाती हो कि अपने लटके-झटके दिखा कर बाॅस को रिझाने....? फिर तुझे इन सब बातों से क्या लेना-देना....? वो दोनों जो करती हैं उन्हें करने दे.। तू क्यों नहीं चुपचाप अपना काम करती.....?’’
‘‘तू नहीं समझती अन्नू....प्रायवेट सेक्टर की नौकरी में सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है बाॅस की खुशी। बाॅस खुश तो नौकरी पक्की वरना कान्ट्रेक्ट पीरियड़ खत्म होते ही छुट्टी। बाॅस खुश तो हर साल प्रमोशन, हर छः महीने पर इन्क्रीमेंट वरना सारी उम्र एक ही पोस्ट और एक ही सेलरी लिए बैठी रहो। बाॅस खुश तो बगैर काम किए ही अच्छी रैंकिंग वरना काम करते-करते जान दे दो, आॅंखें फोड़ लो फिर भी हर काम में कोई न कोई नुक्स और लानत, मलानत।’’ नीता दार्शनिक अंदाज में समझाने लगी।
‘‘तो तुम्हारा मतलब यह है कि प्रायवेट सेक्टर की नौकरी में सिर्फ सुन्दरता और चापलूसी ही देखी जाती है......काम-धाम नहीं देखा जाता।’’
‘‘नहीं यार ! काम तो देखा ही जाता है लेकिन अगर काम के साथ-साथ सुन्दरता भी हो, थोड़ी स्मार्टनेस भी हो तो फिर वही बात हो जाती है.....सोने में सुहागा वाली बात।’’
उसके तीसरे ही दिन अरूणा ने जो कुछ देखा वह उसके लिए संसार के आठवें आश्चर्य से कम नहीं था। आठ बजे सुबह तक चादर ताने सोती रहने वाली नीता साढ़े पाॅंच बजे सवेरे ही उठ कर जिम जाने लगी। अगले रविवार को ब्यूटी पार्लर जा कर वह फेशियल तथा बाल और आइब्रो की सेंिटग भी करा आयी। अब खाने पीने में भी बहुत नाज, नखरे करने लगी थी वह। तली, भुनी चीजों और मिठाई से तो समझो तौबा ही कर लिया उसने। अब हर समय उसे अपने फीगर की चिन्ता सताती रहती। कोई भी चीज खाने से पहले उसकी कैलोरी की मात्रा और उसके आफ्टर इफेक्ट की तहकीकात जरूर कर लेती थी वह।
‘‘क्यों नीतू....किस विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की तैयारी हो रही है ये...?’’ नीता के बदले नाक, नक्श, मेकप तथा अपने फिगर के प्रति उसकी चिन्ता को देख एक दिन अरूणा ने छेड़ा।
‘‘क्यों.....? अपने आप को मेन्टेन कर के रखना भी कोई गुनाह है क्या....?’’ नीता ने कृत्रिम गुस्सा दिखाते हुए उत्तर दिया।
‘‘अरे नहीं भाई। मेरा मतलब यह है कि मेकप करें वो, मेन्टेन करें वो जो मेरे जैसी बदसूरत और बेड़ौल हों। तुम्हें तो वैसे ही ईश्वर ने इतना खूबसूरत और चार्मिंग बनाया है कि तुम्हें कुछ करने की जरूरत ही नहीं है।’’
‘‘थैंक्यू डियर.....थैंक्यू......थैंक्यू।’’ नीता अपनी प्रशंसा सुन कर खुश हो गयी और आॅंखें मटका कर मुस्करा दी।
‘‘अन्नू ! कल जयपुर जा रही हूॅं मैं बाॅस के साथ।’’ असिसटेंट पर्सनल सेक्रेटरी के रूप में प्रमोशन पाने के लगभग बीस दिनों के बाद एक शाम आफिस से लौटने पर नीता ने बताया।
‘‘जयपुर.....? क्यों.......?’’
‘‘जयपुर में कम्पनी की नई ब्रांच खुलनी है....उसी सिलसिले में जा रहे हैं हम लोग।
‘‘और कितने लोग जा रहे हैं साथ में...?’’
‘‘कोई नहीं.....बस मैं और बाॅस जायेंगे कल....। वैसे बाकी तीन लड़के एक हफ्ते पहले ही जा चुके हैं जरूरी तैयारी के लिए.....।’’
‘‘वो तुम्हारे बास की पी0एस0 नीलिमा नहीं है क्या आजकल....?’’
‘‘है क्यों नहीं......वह चुड़ैल तो मुॅंह बाए खड़ी है साथ जाने के लिए.....। सारे दिन बाॅस के साथ-साथ ऐसे चिपकी रही जैसे गुड़ के साथ चींटा....। लेकिन बाॅस ने जब साफ कह दिया कि इस विजिट में नीता जाएगी तो अपना सा मुॅंह ले कर रह गयी वह।’’
‘‘तेरा जाना बहुत जरूरी है क्या.....? तू मना क्यों नहीं कर देती....?’’
‘‘अरे ! क्या कह रही है तू ? मना करने का मतलब जानती है ? सेम केस था जिसके कारण जया को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका था बाॅस ने। उसने बाॅस के साथ लखनऊ के टूर पर जाने से मना कर दिया था। अगले ही दिन बाॅस ने उसे एकाउन्ट सेक्शन में शिफ्ट कर मुझे ए0पी0एस0 रख लिया था। यह तो क्रेडि़ट की बात है मेरे लिए कि बाॅस मुझे चांस दे रहा है....वरना वह तो जिसे चाहे उसे साथ ले जा सकता है। मना करना तो बहुत बड़ी बेवकूफी....बल्कि अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। जानती हो ऐसे टूर बगैरह पर जाने से आदमी के अंदर कान्फिडेन्स आता है और एक्सपोजर भी मिलता है।’’ नीता ने अरूणा की अज्ञानता पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा।
सोये हुए को तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागते हुए आॅंखें भींचे हो, जागना चाहता ही न हो उसे कौन जगा सकता है भला। कुछ ऐसा ही था नीता के साथ। इसलिए उसका उत्तर सुन अरूणा खामोश हो गयी।
‘‘कहो कैसा रहा तुम्हारा जयपुर का टूर.....?’’ दो दिनों के बाद ढ़ेर सारे सामानों से लदी-फॅंदी नीता के लौटने पर अरूणा ने पूछा।
‘‘बहुत अच्छा....वण्ड़रफुल। दो दिनों तक खूब इन्ज्वाय किया हम लोगों ने। जानती हो थ्री स्टार होटल में ठहरे थे हम लोग। बाप रे ! क्या होटल था, क्या कमरे थे....क्या आलीशान फर्नीचर थे। फर्श पर बिछा गलीचा तो इतना मोटा और मुलायम था कि पूरा का पूरा जूता ही धॅंस जाता था उसमें। गद्दा ऐसा गुदगुदा कि उस पर बैठते ड़र लगता था....और बाथरूम बिल्कुल पिक्चरों में जैसा दिखाते हैं वैसा ही झक्क चमाचम। पूरी दीवार जितनी लम्बाई, चैड़ाई के तो शीशे लगे थे उसमें।’’ नीता इतनी चकित, विभोर और अभिभूत थी मानों सीधे स्वप्नलोक की सैर कर के लौटी हो।
‘‘तो तुम लोग वहाॅं इन्ज्वाय करने गयी थी कि कम्पनी का काम करने....?’’
‘‘अरे बाबा ! चैबीसों घंटे काम ही थोड़े न करना था। बस घंटे, दो घंटे बाॅस ने मिटिंग ले ली, लोगों को समझा दिया कि क्या करना है, कैसे करना है फिर करने वाले करते रहते थे अपना काम। और हम बाॅस के साथ घूमने निकल जाते थे।’’
‘‘और इतनी सारी खरीदारी कैसी कर ली तूने.....?’’
‘‘अरी मत पूछ अन्नू....। बाॅस ने ले जा कर रेड़ीमेड़ गारमेंट्स की दूकान में खड़ी कर दी और बोले- नीता ! तू पहली बार मेरे साथ टूर पर आयी है तो जो जी चाहे खरीद ले पेमेंट मैं करूगा। मेरे ना ना करते भी चार तो सूट खरीदवा दिया उन्होंने। फिर काॅस्मेटिक्स की दुकान पर ले गये तो वहाॅं न जाने कितने आइटम खरीद ड़ाले....। फिर दो जोड़ी जयपुरी जूतियाॅं, घाघरा, चोली और भी न जाने क्या क्या। मैं लाख मना करूॅं लेकिन वो मानें तब तो। ये देख इनमें से तूझे जो भी पसंद आए एक सूट तू ले ले अपने लिए।’’ नीता ने चहकते हुए कहा और पैकेट्स खोल कर दिखलाने लगी।
उसके बाद तो नीता प्रायः ही बाॅस के साथ टूर पर जाने लगी। कभी लखनऊ तो कभी जयपुर, कभी भोपाल तो कभी चंड़ीगढ़, कभी देहरादून तो कभी शिमला। हर हफ्ते, दस दिन पर कहीं न कहीं का प्रोग्राम बना ही रहता था उसका। वह हर टूर से ढ़ेर सारे सामानों से लदी-फॅंदी लौटती और अपने बाॅस की तारीफों के पुल बाॅंधते नहीं थकती थी।
अरूणा भली-भाॅंति समझ रही थी कि पानी अब ढ़लान की ओर बह चला है। बातों-बातों में, ईशारों के माध्यम से वह नीता को समझाने और सचेत करने की भरपूर कोशिशें करती रही लेकिन नीता के सिर पर सवार मौज-मस्ती और सुख-सुविधा के नशे ने उसके सोचने, समझने और देखने, सुनने के सारे दरवाजे बंद कर दिए थे।
‘‘लगता है इन दिनों तुम्हारा बाॅस तुम पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है....क्यों नीता ?’’ देहरादून के टूर से लौटने के बाद नीता जब मसूरी में खिंची तस्वीरें दिखा कर अपने बाॅस की तारीफ में कसीदें काढ़े चली जा रही थी तो अरूणा ने बीच में ही टोक दिया।
‘‘हाॅं....ऐसा ही समझो। वैसे मेरा बाॅस है बहुत जिन्दादिल आदमी....और शाहखर्च भी खूब है। दूसरों के सेंटीमेंट्स का भी बहुत ख्याल रखता है वह। मुझको तो बहुत मानता है वह.....समझ लो जान छिड़कता है मेरे पर।’’
‘‘मुझे तो ड़र लगता है कि कहीं नीलिमा बेचारी की भी छुट्ी न हो जाय। वैसे भी अब तो वह बस नाम मात्र की ही पर्सनल सेक्रेटरी रह गयी है.....बाॅस के सारे काम तो तुम्ही ने सॅंभाल लिया है। क्यों.....?’’ अरूणा ने चुटकी ली।
‘‘अन्नू तुम्हारे मुॅंह में घी-शक्कर। अगर वाकई ऐसा हो जाय तो फिर कहना ही क्या। बास मेरी मुट्ठी में और सारा आफिस मेरे ईशारों पर। फिर तुम्हे तो मैं बिना इन्टरव्यू के ही नौकरी दिलवा दूॅंगी। इधर कोर्स पूरा करो, उधर नौकरी ज्वाइन करो।’’ खुशियों में सराबोर नीता ने चहकते हुए कहा।
वे नीता के सपनों के उड़ान के दिन थे। परिणाम से बेखबर वह महत्वाकांक्षाओं के अनन्त विस्तार में ठीक वैसे ही उड़ी जा रही थी जैसे बादलों से ढ़ॅंके आसमान में बारिश के खतरे से बेखबर इठलाती, बलखाती पतंग। लेकिन सपने तो आखिर सपने ही होते हैं। सपनों की एक निश्चित अवधि होती है। वे देर, सवेर टूटते जरूर हैं। और जब टूटते हैं तो बुरी तरह से तोड़ कर रख देते हैं, जड़ों तक हिला देते हैं, ध्वस्त कर देते हैं आदमी को। साल बीतते-बीतते ऐसा ही कुछ हुआ नीता के साथ। उसकी आॅंखों से झरती खुशी, चेहरे की रौनक और चमक पर एकाएक ग्रहण सा लग गया। हर समय बकबक करती रहने वाली वाचाल चहकती, फुदकती नीता अब खामोश और खोई-खोई सी रहने लगी थी। अरूणा पिछले कई दिनों से यह देख और महसूस कर रही थी कि नीता कुछ परेशान सी है, लेकिन अपने फाइनल सेमेस्टर की परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त होने के कारण उसने नीता की ओर विशेष घ्यान नहीं दिया। उधर नीता ने भी अपनी तरफ से कुछ बोलने, बताने की पहल नहीं की। अब वह सिर्फ जरूरत भर को बोलती, बातों का हाॅं, हूॅं में जबाब देती और चुपचाप बिस्तर में पड़ी रहती थी।
नीता उस दिन आफिस से कुछ जल्दी लौट आयी थी। लौटने के बाद उसने कपड़े बदले, बाथरूम गयी और चादर तान कर चुपचाप सो गयी। अरूणा उस समय पढ़ाई कर रही थी इसलिए उसने भी कुछ नहीं पूछा।
‘‘नीतू ! चल खाना खाने नहीं चलेगी ?’’ रात को मेस जाते समय अरूणा ने चादर खींच कर उसे जगाया।
‘‘नहीं.....जा तू खा आ....। मुझे भूख नहीं है......।’’
अरूणा भाॅंप गई कि हो न हो दाल में कुछ काला अवश्य है। ‘‘क्या बात है.....बाॅस ने आज कुछ ज्यादा खिला-पिला दिया क्या....?’’ उसने चुटकी ली लेकिन नीता ने कोई जबाब नहीं दिया और सिर तक चादर खींच कर दूसरी तरफ करवट ले ली।
अरूणा अकेले ही खाना खा आयी और लौट कर अपनी पढ़ाई करने लगी। अगले दिन पेपर होने के कारण उस रात अरूणा देर तक पढ़ाई करती रही। उधर नीता अपने बिस्तर में लगातार करवटें बदल रही थी। वह कभी उठ कर बैठ जाती, कभी सिरहाने रखी बोतल से गटागट पानी पीती, कभी बिस्तर से निकल कर बाथरूम तक जाती फिर लौट कर सिर से पैर तक चादर तान लेती थी। लगभग सारी रात वह ऐसे ही करती रही। अरूणा साफ देख रही थी कि नीता किसी बात को ले कर परेशान है। कोई और दिन होता तो वह नीता से बातचीत करती, उसकी परेशानी का कारण पूछती लेकिन उस समय सिर पर परीक्षा का भूत सवार होने के कारण उसने नीता की तरफ ध्यान नहीं दिया। अरूणा अगले दिन सवेरे सो कर उठी तो नीता का बिस्तर खाली था। उसने सोचा कि वह शायद जिम गयी होगी। अरूणा जल्दी से तैयार हो कर परीक्षा देने चली गयी।
दोपहर बाद जब परीक्षा दे कर अरूणा हाॅस्टल लौटी तो कमरे के दरवाजे में रोज की तरह बाहर से ताला बंद रहने के बजाय अंदर से कुंड़ी लगी थी। ‘‘इसका मतलब नीता आज आफिस नहीं गयी।’’ अरूणा ने मन ही मन सोचा और दरवाजा खटखटाने लगी। लेकिन काफी देर तक खटखटाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला। अब वह जोर-जोर से दरवाजा पीटने तथा नीतू, नीतू आवाज लगाने लगी लेकिन दरवाजा फिर भी नहीं खुला। अरूणा किसी अनहोनी की आशंका से घबड़ा उठी और भाग कर आसपास के कमरों की लड़कियों को बुला लायी। घीरे-घीरे हास्टल और मेस के ढ़ेर सारे लोग जुट आए। बारी-बारी सभी ने दरवाजा भड़भड़ाया लेकिन दरवाजा नहीं खुला। कोई और चारा न देख चैकीदार कहीं से एक बड़ी सी सीढ़ी ले आया। सीढ़ी के द्वारा वह रोशनदान तक पॅंहुचा और रोशनदान का शीशा तोड़ कर रस्से के सहारे कमरे के अंदर उतरा।
दरवाजा खुला तो नीता अपने बिस्तर में बेसुध पड़ी थी। उसके मुॅंह से ढ़ेर सारा लार बह कर बिस्तर में फैला था तथा फर्श पर किसी दवाई का खाली रैपर पड़ा था।
‘‘अरे ! यह तो नींद की गोली का रैपर है...।’’ किसी लड़की ने रैपर देख कर कहा।
अरूणा घबड़ाहट के मारे पसीना-पसीना हो गयी। उसने लपक कर नीता का सीना टटोला। उसकी साॅंस चल रही थी और सारा शरीर पसीने से तर था। चैकीदार उल्टे पैर ड़ाक्टर बुलाने भागा।
‘‘चलिए अभी हालत कंट्रोल में है......अगर दो-ढ़ाई घंटे और देर हो जाती तो इन्हें बचा पाना मुश्किल हो जाता....।’’ ड़ाक्टर ने कहा और दवा, इंजेक्शन दे कर चला गया। अरूणा तथा दूसरी लड़कियाॅं नीता को घेरे बैठी रहीं। लगभग पौन घंटे के बाद जब उसने आॅंखें खोलीं तब सब की जान में जान आयी।
‘‘तूने ऐसा काम क्यों किया नीतू.....मुझे भी कुछ नहीं बताया....अगर तूझे कुछ हो जाता तो ?’’ जब अन्य सारी लड़कियाॅं कमरे से चली गयीं और नीता कुछ सामान्य हुयी तो अरूणा ने अकेले में पूछा।
नीता ने कोई जबाब नहीं दिया। बस दाॅंत भींचे, नथूने फुलाए, अंगार बनी आॅंखों से एकटक शून्य में ताकती रही।
‘‘आखिर बात क्या है......? तू कुछ बताती क्यों नहीं.....?’’ अरूणा ने पुनः प्रश्न किया लेकिन नीता एक चुप तो हजार चुप।
‘‘देेख नीतू.....ऐसे नहीं चलेगा। तुम्हें बताना तो पड़ेगा ही...। मैं ऐसे नहीं छोड़ने वाली तुझे।’’ अरूणा ने अंदर से दरवाजे की चिटकनी लगाई और नीता को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बोली।
इतनी देर से खामोश नीता एकदम से फूट पड़ी-‘‘मैं लुट गई अन्नू....मैं कहीं की नहीं रही। वह अय्यर का बच्चा बहुत बड़ा कमीना निकला। मुझे ले कर यहाॅं-वहाॅं घूमता रहा, होटलों में साथ ले कर ठहरता रहा, अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फॅंसा कर मेरा सब कुछ ले लिया उसने। तब तो मेरी तारीफ करते नहीं थकता था.......कहता था नीलिमा की जगह मुझे अपना पी0एस0 बनाएगा, एक्स्ट्रा इंक्रीमेंट दिलवाएगा, कम्पनी की तरफ से फ्लैट दिलवाएगा.....। लेकिन जब मन भर गया मुझसे तो पी0एस0 बनाना तो दूर मुझे ए0पी0एस0 से भी हटा दिया। मेरी जगह अभी पिछले महीने आयी उस नई छोकरी सोनू मेहरा को ए0पी0एस0 बना लिया और मुझे लोन सेक्शन में भेज दिया उसने। मैं बात करने गयी तो मुझसे मिला तक नहीं....। केबिन के बाहर से ही लौटा दिया।’’
‘‘तो इसमें जहर खा कर जान देने की क्या बात है....?’’
‘‘तू समझ नहीं सकती अन्नू.... सिर से पाॅंव तक मेरा पूरा शरीर ग्लानि और अपमान की आग में सुलग रहा है। कहाॅं तो मैं नाक की बाल थी उसकी.....कहाॅं एकदम से दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका उसने.....। नई छोकरी देखते ही मेरी ओर से आॅंख्ेंा फेर लीं उस कमीने ने....।’’
‘‘देख नीतू, तेरे साथ जो हुआ है उसकी आशंका तो मुझको काफी पहले से थी। मैंने ईशारों-ईशारों में कई बार सावधान भी किया था तुझे। लेकिन तब तो तेरी अक्ल पर उसकी चिकनी, चुपड़ी बातों का पर्दा पड़ा था....तेरे सर पर पद, पैसा, सुख-सुविधा और झूठी तारीफ का नशा सवार था। खैर जो हुआ सो हुआ....अब ये बता कि तेरे जान दे देने से उस अय्यर का क्या बिगड़ेगा.....? बल्कि उल्टे उसके तो और मजे हो जायेंगे कि रास्ते का काॅंटा निकल जाएगा। आज तू जान देगी, चार छः महीने के बाद वो नई लड़की सोनू मेहरा जान देगी...। फिर कोई नई नीता जोशी आ जाएगी...कोई नई सोनू मेहरा आ जाएगी....। यह सिलसिला यूॅं ही चलता रहेगा। वह नीच आए दिन नई-नई लड़कियों को ऐसे ही मोहक सपने दिखा कर फुसलाता और ‘यूज एण्ड थ्रो’ करता रहेगा। तू मेरी मान....उस अय्यर के बच्चे को ऐसा सबक सिखा कि उसके सर से इश्क का भूत हमेशा-हमेशा के लिए उतर जाए। कुछ ऐसा कर कि उसकी जिन्दगी तबाह हो जाए। जीना मुश्किल कर दे उस हरामी के पिल्ले का...।’’
‘‘मैं क्या करूॅं अन्नू....बता.....? उसको सबक सिाखाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूॅं.....। जी तो करता है कि उसका गला घोंट दूूं....। खून पी जाऊॅं उस हरामजादे का।’’
‘‘ऐसा कर....तू पुलिस स्टेशन चल। उसके खिलाफ बहला, फुसला कर और नौकरी से निकाल देने का भय दिखा कर यौन शोषण करने की रपट लिखा....। और सबूत के तौर पर वो सारी फोटुयें पेश कर दे जो उसने टूर के समय तेरे साथ खिचाए हैं। वो मसूरी के गन हिल प्वाइंट पर उसने तुझे गोद में उठा रखा है वो फोटू, ताजमहल के लाॅन में तुझे अपनी बाॅंहों में लिए चूम रहा है वो फोटू, जयपुर के होटल में तुझसे चिपका हाथ में हाथ लिए बैठा है वो फोटू.....। तेरे पास तो इतने सारे सबूत हैं कि उसके बचने की कोई गुॅंजाइश ही नहीे है।’’
‘‘तू ठीक कह रही है अन्नू मैं ऐसे नहीं छोड़ूॅंगी उसे....। सरेआम नंगा कर के छोेड़ूॅंगी उसे....। जिन्दगी नरक कर दूॅंगी उस कमीने की। अगर पानी न पिला दी बच्चू को तो मेरा नाम नीता नहीं। मैं जया महाजन नहीं जो चुप हो कर बैठ जाऊॅं....। मैं तो उसकी वो हालत बना दूॅंगी कि आगे से किसी लड़की की तरफ ताकने तक की हिमाकत ना कर सके वो। मेरे पास बहुत सारे सेक्रेट्स हैं उसके। बहुत सारी बातें जानती हूूॅं मैं। ऐसी की तैसी कर के रख दूॅंगी उसकी।’’ बिस्तर में लेटी नीता यह कहते हुए झटके से उठी और अपनी आलमारी से फाइलों का बैग निकालने लगी।