दादाजी का नया साल

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

1/18/20241 मिनट पढ़ें

आज 31 दिसम्बर यानी साल का आखिरी दिन था। सबसे मजे की बात यह थी कि नए साल से पहले वाले दिन यानी 31 दिसम्बर को स्कूल में छुट्टी थी। श्वेता और बंटी दोनों भाई-बहन सवेरे से ही आने वाले कल के लिए योजनायें बना रहे थे। कल नए साल के पहले दिन मम्मी-पापा के साथ घूमने के लिए कहाॅं-कहाॅं जाना है, क्या-क्या खाना-पीना है और पापा से कौन-कौन सी चीजें खरीदवानी हैं इसी सोच विचार में उन दोनों का सारा दिन बीत गया। शाम के समय पापा के आफिस से आते ही भाई-बहन दोनों ने उनको घेर लिया।

‘‘पापा कल नए साल का पहला दिन है। इस बार नए साल पर हम मेट्रो माल घूमने चलेंगे।’’ बंटी ने पापा से कहा।

‘‘हाॅं पापा, न हो तो आप कल की छुट्टी ले लीजिए प्लीज। फिर तो हम सारे दिन मस्ती करेंगे। सवेरे चिड़िया-घर चलेंगे, दोपहर में हाथी-पार्क और शाम के समय मेट्रो माल।’’ श्वेता बोली।

‘‘देखो भई ! इस बार नए साल पर मैं अपने साथ कहीं नहीं ले जाने वाला तुम लोगों को। इस बार का नया साल तुम्हारे पापा की मर्जी से नहीं बल्कि मेरे पापा की मर्जी से मनाया जाएगा। वे जो कहेंगे वही मानना होगा, जैसा कहेंगे वैसा ही हम सभी को करना होगा । बोलो, क्या समझे तुम लोग ?’’ पापा ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया।

‘‘आप के पापा यानी हमारे दादाजी ?’’ श्वेता ने पूछा।

‘‘हाॅं बिल्कुल ठीक समझा तुमने। तुम लोग उन्ही के पास जाओ और उनसे ही अपनी बात कहो। इस बार नए साल का प्रोग्राम वही बनायेंगे।’’ पापा का इतना कहना था कि वे भाई-बहन दादाजी के पास दौड़ पडे।

श्वेता और बंटी के दादाजी अभी एक सप्ताह पहले ही वे गाॅंव से आए थे। वे सारे दिन बाहर वाले कमरे में बैठे अखबार और किताबें पढ़ते रहते थे और रात में उन दोनों को अपने पास लिटा कर तरह-तरह की मजेदार कहानियाॅं सुनाया करते थे। श्वेता और बंटी पॅंहुचे उस समय दादाजी टहलने के लिए पार्क की ओर जा रहे थे।

‘‘दादाजी, दादाजी हमें आप से कुछ बातें करनी हैं।’’ श्वेता ने कहा।

‘‘तो तुम दोनों भी हमारे साथ पार्क चलो। वहीं बैठ कर बातें करेंगे।’’ दादाजी ने कहा तो वे दोनों उनके साथ पार्क चले गए।

‘‘हाॅं, अब बताओ। क्या बात करनी है तुम लोगों को ?’’ पार्क में बेंच पर बैठने के बाद दादाजी बोले।

‘‘दादाजी, कल नए साल का पहला दिन है। कल हम लोगों को घुमाने के लिए कहाॅं ले चलेंगे आप ?’’ श्वेता ने पूछा।

‘‘क्या कहा.....कल से नया साल शुरू होने वाला है ? दादाजी थोड़ा चैंकते हुए बोले।

‘‘हाॅं दादाजी, आप को पता नहीं ? आज इकत्तीस दिसम्बर है। कल एक जनवरी से नया साल शुरू हो जाएगा।’’ बंटी ने कहा।

‘‘देखो, पहले तो तुम लोग यह जान लो कि कल से जो नया साल शुरू हो रहा है वह हमारा नहीं अंग्रेजांे का नया साल है। कल से ईसाई कैलेण्डर के अनुसार नया साल प्रारम्भ होगा। हमारा साल विक्रमी संवत के अनुसार चलता है, जो हिन्दी कैलेण्ड़र के अनुसार चैत्र के महीने से प्रारम्भ होता है और फाल्गुन के महीने में समाप्त होता है। यह बात और है कि आम प्रचलन में दुनिया में सभी जगह एक जनवरी से ही नया साल मनाया जाने लगा है। चलो, जब सभी लोग एक जनवरी से नया साल मनाते हैं तो हम भी कल नया साल मना लेंगे।’’ दादाजी बोले।

‘‘लेकिन प्रोग्राम तो बताइए कल का कि कहाॅं चलना है और क्या करना है ?’’ श्वेता बोली।

‘‘पहले तुम बताओ कि अभी तक हर साल पहली जनवरी को तुम लोग नया साल कैसे मनाया करते हो।’’ दादाजी ने पूछा।

‘‘हर साल एक जनवरी की शाम को हम लोग मम्मी और पापा के साथ घूमने के लिए बाजार या किसी माल में जाते है। वहाॅं पिज्जा, बर्गर, चाउमिन और चाट, पानी के बतासे वगैरह खाते हैं, पापा से गुब्बारे, खिलौने और चाकलेट खरीदवाते हैं, उसके बाद कोई मजेदार सी पिक्चर देखते हैं और फिर उसके बाद रात को किसी होटल में खाना खा कर घर लौट आते हैं।’’ श्वेता ने बताया।

‘‘अगर ऐसा है तब तो भई कल नया साल मनाने के लिए तुम लोगों को अपनी मम्मी और पापा के साथ ही जाना होगा। मैं तो तुम लोगों का साथ नहीं दे पाऊॅंगा।’’ दादाजी ने कहा।

‘‘दादाजी, हम पापा के पास गए थे लेकिन उन्होंने आप के पास भेज दिया। पापा कह रहे हैं कि इस साल नए साल का प्रोग्राम आप बनायेंगे। आप जैसे कहेंगे सभी लोग वैसे ही करेंगे।’’ बंटी ने कहा।

‘‘देखो भाई, मेरे साथ तुम लोगों को मजा नहीं आएगा। पहली बात तो यह कि मैं घुमाने के लिए तुम लोगों को किसी माल में नहीं ले जाऊॅंगा, दूसरी बात यह कि मैं पिज्जा, बर्गर, चाउमिन या चाट-पकौड़ा नहीं खिलाऊॅंगा, और तीसरी बात यह कि न तो मैं सिनेमा दिखलाऊॅंगा और न ही होटल का गंदा-संदा, बासी, खराब खाना खाने दूॅंगा। जानते हो यह इज्जा, पिज्जा, चाउमिन, बर्गर और कोल्ड ड्रिंक वगैरह यानी फास्ट-फूड़ वाली सारी चीजें स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक होती हैं। समझ लो कि ये सारी चीजें मीठा जहर हैं जो तरह-तरह की बीमारियाॅं पैदा करती हैं। भई ! मैं तो अपने बच्चों को ये गंदी चीजें नहीं खाने दूूॅंगा। मेरा तो नया साल मनाने का तरीका कुछ अलग ही है।’’ दादाजी बोले।

‘‘आपका कौन सा तरीका है दादाजी ? बताइए ना। पापा कह रहे हैं कि इस साल नए साल पर आप जैसा कहेंगे वैसा ही किया जाएगा।’’ श्वेता ठुनकती हुयी बोली।

‘‘देखो भाई, अपना तरीका मैं पहले से नहीं बताऊॅंगा। अगर पहले बता दिया तब तो फिर मजा ही खराब हो जाएगा। अगर मेरे तरीके से नया साल मनाना है तो कल सवेरे तुम लोग सो कर जल्दी उठ जाना और नहा-धो कर, साफ-सुथरे कपड़े पहन कर तैयार हो जाना। फिर देखना मैं कहाॅं ले चलता हूॅं, क्या खिलाता हूॅं और क्या करता हूॅ।’’ दादाजी ने हॅंसते हुए कहा और पार्क की बेंच से उठ गए। दादाजी की गोल-मोल बातें सुन कर श्वेता और बंटी मुॅंह लटकाए उनके साथ घर लौट आए।

‘‘भैया, पता नहीं दादाजी कल नए साल पर घुमाने के लिए कहाॅं ले जायेंगे....? पता नहीं क्या चीज खिलायेंगे....? कौन सी चीज दिलायेंगे.....? श्वेता ने बंटी से कहा।

‘‘वही तो मैं भी सोच रहा हूॅं। पूछने पर कुछ बताते भी नहीं। बस हॅंस कर रह जाते हैं।’’ बंटी बोला।

‘‘मम्मी ! आप को कुछ पता है कि दादाजी कल नए साल पर क्या करने वाले हैं ?’’ बंटी ने अपनी मम्मी से पूछा।

‘‘नहीं...मुझको नहीं पता....अपने पापा से पूछो।’’ मम्मी ने बात को पापा पर टाल दिया।

‘‘पापा ! क्या दादाजी ने आप को कुछ बताया है कि कल नए साल की उनकी क्या योजना है ?’’ दोनों ने पापा के पास जा कर पूछा।

‘‘तुम्हारे दादाजी के मन की बात मैं कैसे बता सकता हूॅं भला। न तो उन्होनें कुछ बताया है और न ही मैंनंे उनसे कुछ पूछा है। अब तो कल सवेरे ही पता चलेगा कि वे क्या करने वाले हैं।’’ पापा ने भी हाथ खड़े कर दिए।

श्वेता और बंटी देर रात तक इसी उत्सुकता में पड़े रहे कि देखें कल दादाजी क्या करते हैं। अगले दिन सवेरे सिर्फ श्वेता और बंटी ही नहीं बल्कि मम्मी और पापा भी सो कर जल्दी उठ गए और नहा-धो कर जल्दी से तैयार हो गए। दादाजी उन लोगों से पहले ही तैयार हो चुके थे। वे सभी को साथ ले कर मंदिर गए।

‘‘हम सवेरे-सवेरे मंदिर क्यों आए हैं दादाजी ?’’ श्वेता ने पूछा।

‘‘आज हम भगवान से यह प्रार्थना करेंगे कि वह पूरे साल हम सभी को सुखी और स्वस्थ रखे, हमें बुराइयों से दूर रखे और अच्छा काम करने की प्रेरणा दे। तुम लोग अच्छी तरह अपनी पढ़ाई करो और अच्छा इंसान बनो। समाज के सभी लोग आपस में मिलजुल कर शान्ति पूर्वक रहें। नया साल हमारे और हमारे देश के लिए अच्छा बीते।’’ दादाजी ने बताया।

प्रसाद की दुकान से दो ड़ब्बा बेसन के लड्डू खरीदने के बाद वे सभी को ले कर मंदिर के अंदर गए। ‘‘चलो सभी लोग हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना करो।’’ दादाजी ने कहा तो सभी लोगों ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की।

मंदिर के बाहर सड़क के दोनों किनारे ढ़ेर सारे अंधे, लूले, लंगड़े और बीमार स्त्री, पुरुष भिखारी बैठे थे। मंदिर से निकलने के बाद दादाजी सीढ़ियों के पास खड़े हो गए। लड्डू का एक ड़ब्बा श्वेता को थमाने के बाद उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से ढ़ेर सारे सिक्के निकाले और बंटी को देते हुए बोले-‘‘ऐसा करो तुम दोनों यहाॅं बैठे सभी भिखारियों को एक-एक लड्डू तथा एक-एक सिक्का बाॅंट दो।’’

आगे-आगे श्वेता और उसके पीछे बंटी भिखारियों के कटोरों में लड्डू और पैसा ड़ालने लगे। लड्डू और पैसा पा कर भिखारी लोग खुश हो गए और उन दोनों को आशीर्वाद देने लगे-‘‘बच्चों सदा सुखी रहो.....खूब तरक्की करो......भगवान तुम्हें बरकत दे।’’ भिखारी लोगों की खुशी देख कर श्वेता और बंटी दोनों को बहुत अच्छा लगा।

मंदिर के सामने हलवाई की दुकान थी। दुकान पर जलेबी छन रही थी। दादाजी ने वहाॅं से जलेबी और दही खरीदी तथा वापस घर आ गए। घर पॅंहुच कर सभी ने पहले प्रसाद खाया फिर गरमा-गरम जलेबी और दही का नाश्ता किया। उसके बाद मम्मी घर के कामों में लग गयीं, पापा आफिस जाने की तैयारी करने लगे और दादाजी अखबार ले कर बाहर धूप में बैठ गए।

‘‘क्यों दादाजी ! बस हो गया आपका नया साल ? श्वेता ने पूछा।

‘‘नहीं बिटिया। खाना खाने के बाद मैं तुम लोगों को ले कर बाजार चलूॅंगा फिर उसके बाद तुम्हें एक ऐसी जगह ले चलूॅंगा जहाॅं आज तक तुम लोग कभी नहीं गए होगे।’’ दादाजी मुस्कुराते हुए बोले।

दोपहर का खाना खाने के बाद दादाजी ने थोडी देर आराम किया उसके बाद श्वेता और बंटी को साथ ले कर बाजार गए। ऊनी कपड़ों की एक दुकान से उन्होंने उन दोनों के लिए एक-एक स्वेटर तथा एक-एक टोप खरीदा। उसके बाद उन्होंने दुकानदार से अपनी नाप का मंकी कैप निकलवाया। पहले एक कैप को अपने सिर पर पहन कर देखा फिर उसके बाद उन्होंने एक ही नाप के अठारह मंकी कैप खरीद लिए।

‘‘अरे ! आप इतने सारे कैप का क्या करेंगे दादाजी ?’’ बंटी ने पूछा लेकिन दादाजी ने कुछ नहीं बताया। बस मुस्कुरा कर रह गए। उसके बाद दादाजी ने हलवाई की दुकान से दो डब्बा लड्डू, अठारह समोसे और कागज की प्लेटें लीं। फिर फलवाले से तीन दर्जन केले और दो किलो अमरूद खरीदा। दादाजी की खरीददारी देख दोनों बच्चे हैरान थे। वे बार-बार पूछताछ रहे लेकिन दादाजी ने कुछ बताया नहीं।

सारा सामान खरीदने के बाद उन दोनों को ले कर दादाजी एक रिक्से में बैठे और चल पड़े। लगभग आधा घंटा के बाद वे लोग शहर से थोड़ा हट कर एक बड़े से घेरे के अंदर बने मकान पर गए। वहाॅं बाहर लोहे का बड़ा सा गेट लगा था। गेट के दोनों पल्लों में जंजीर फॅंसा कर ताला को इस प्रकार बंद किया गया था कि बीच की जगह में से एक बार में बस एक आदमी ही गेट के अंदर जा सकता था। आगे-आगे दादाजी और उनके पीछे श्वेता तथा बंटी गेट के अंदर गए। मकान के बरामदे में एक कमरा था जिसके दरवाजे पर टॅंगी लकड़ी की तख्ती पर पर ‘मैनेजर’ लिखा हुआ था। कमरे के अंदर कुर्सी-मेज लगाए बैठा एक बूढ़ा आदमी रजिस्टर में कुछ लिख रहा था। दादाजी उसके पास गए और उससे कुछ बातें कीं। दादाजी से बातें करने के बाद रजिस्टर बंद कर के वह आदमी कमरे से बाहर आया और सभी को साथ ले कर मकान के पीछे की तरफ बने आॅंगन में गया।

आॅंगन में ढ़ेर सारे बूढ़े आदमी और बूढ़ी औरतें थीं। कुछ लोग आॅंगन के पक्के फर्श पर बिछी दरी पर बैठे या लेटे धूप सेंक रहे थे तथा कुछ लोग किनारे की घास पर बैठे आपस में बातें कर रहे थे। मैनेजर, दादाजी और श्वेता तथा बंटी को देखते ही लेटे लोग उठ कर सीधे बैठ गए। इधर-उधर बैठे लोग भी पास आ गए। दादाजी ने उन सभी को एक-एक मंकी कैप दिया। श्वेता और बंटी ने गिना तो पाया कि वहाॅं बूढ़ों और बुढ़ियों को मिला कर कुल अठारह लोग ही थे। ‘‘यानी दादाजी को पहले से पता था कि इस घर में कुल अठारह लोग रहते हैं।’’ दोनों ने मन ही मन सोचा।

म्ंाकी कैप बाॅंटने के बाद दादाजी ने कागज की प्लेट में रख कर सभी को खाने के लिए लड्डू, समोसे, केले और अमरूद दिए। सारे बूढ़े, बुढ़िया उन चीजों को पा कर इतने खुश थे कि देखते ही बनता था। सभी ने कैप को अपने सिर पर पहना और खाने की चीजें जल्दी-जल्दी ऐसे खाने लगे जैसे कई दिनों के भूखे हों। दादाजी कुछ देर तक वहीं बैठे उन लोगों का हालचाल पूछते रहे, मैनेजर से बातें करते रहे फिर सभी को नमस्कार करके लौट आए।

जितनी देर तक उस घर में रहे श्वेता और बंटी चुप रहे लेकिन गेट से बाहर निकलते ही उन दोनों ने दादाजी पर प्रश्नों की बौछार शुरू कर दी।

‘‘अभी हम लोग कहाॅं गए थे दादाजी ? वे कौन लोग थे जिनको आप ने मंकी कैप और खाने-पीने की चीजें दीं ? इस घर में केवल बूढ़े, बुढ़िया ही क्यों रहते हैं दादाजी ? क्या आप को पहले से पता था कि यहाॅं अठारह लोग रहते हैं ?’’

‘‘बच्चों हम लोग वृद्धाश्रम गए थे।’’ दादाजी ने बताया।

‘‘वृद्धाश्रम ? ये क्या होता है दादाजी ?’’ बंटी ने पूछा।

‘‘वृद्धाश्रम वह जगह होती है जहाॅं बेसहारा बूढ़े लोगों को रखा जाता है।’’

‘‘बेसहारा का मतलब क्या होता है दादाजी ?’’श्वेता ने पूछ लिया।

‘‘बेसहारा का मतलब जिसका कोई सहारा न हो। देखो, समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका अपना कोई भी सगा-सम्बन्धी नहीं है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके बच्चों ने उन्हें घर से निकाल दिया है या खाना, कपड़ा देना, देखभाल करना बंद कर दिया है। ऐसे लोगों को बेसहारा कहा जाता है। इन बेसहारा लोगों को रखने के लिए जगह-जगह वृद्धाश्रम बनाए गए हैं। कुछ सरकारी सहयोग से तथा कुछ समाज के लोगों के सहयोग से वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों के रहने, खाने और दवा इलाज की व्यवस्था की जाती है। शहर में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो इन बेसहारा लोगों के वृद्धाश्रम को मदद देते रहते हैं। मैं भी हर साल इस वृद्धाश्रम को दो हजार रुपए सहायता के रूप में देता हूॅ। इन दुःखी लोगों का न तो कोई नया साल होता है और न ही कोई पर्व-त्यौहार। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इस बार नए साल की खुशियाॅं इन बेसहारा लोगों के साथ बाॅंटी जाय। तुम लोगों ने भी देखा होगा कि गरम टोप और खाने-पीने की चीजें पा कर कितने खुश थे वे सारे लोग। अब बताओ तुम दोनों, तुम्हें कैसा लगा मेरा नया साल मनाने का ढंग ?’’ दादाजी ने हॅंसते हुए पूछा।

‘‘बहुत बढ़िया दादाजी बहुत बढ़िया। सबसे अलग और मजेदार।’’ श्वेता और बंटी एक साथ ही बोल पड़े।

‘‘तो ऐसा करना मेरा नया साल मनाने का यह तरीका अपनी मम्मी और पापा को भी बताना। अगले साल से तुम लोग अपनी मम्मी, पापा के साथ नए साल पर यहीं आया करना। जो पैसे तुम लोग चाउमिन, पिज्जा, सिनेमा और होटल के खाने पर खर्च करते हो उसे इन बेसहारा वृद्ध लोगों की मदद के लिए खर्च करना। इन लोगों से बहुत सारा आशीर्वाद और शुभकामनायें मिलेंगी तुम्हें।’’ दादाजी ने कहा और उन्हें ले कर घर की ओर लौट पड़े।

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