चिन्नी, मिन्नी और नई चिड़िया।
बाल कहानी
‘‘चिन्नी....अरी वो चिन्नी, जरा उधर देख....वो सामने।’’ मिन्नी ने चैंकते हुए कहा तो धूप में लेटी चिन्नी उठी और सामने बबूल के पेड़ की ओर देखने लगी।
‘‘अरे ! ये तो कोई चिड़िया है। बड़े काले पंखों वाली चिड़िया जो अपने पंख खोले उड़ रही है।’’ चिन्नी बोली।
‘‘हाॅं, वो तो मैं भी देख रही हूॅं। लेकिन ये तो सोच कि वह चिड़िया उड़ कर आगे क्यों नहीं जा रही है। इतनी देर से एक ही जगह पर क्यूॅं चक्कर काट रही है।’’ मिन्नी ने कहा।
चिन्नी का ध्यान अब इस बात की ओर गया। उसने देखा वास्तव में वह चिड़िया काफी देर से एक ही जगह पर हवा में फड़फड़ा रही थी। न ऊपर जा रही थी न नीचे। बस एक ही घेरे में नाच रही थी।
‘‘हाॅं मिन्नी....बात तो तुम्हारी सही है। यह चिड़िया उड़ क्यों नहीं रही है ?’’ चिन्नी बोली।
चिन्नी और मिन्नी दो नन्ही गौरैया। चुनमुन गौरैया की बेटियाॅं। दोनों जुड़वा बहनें। बस अभी सात दिनों पहले ही दोनों अंड़ों से निकल कर बाहर आयी थीं। भोजन की तलाश में मम्मी के चले जाने के बाद दोनों घोंसले से बाहर निकल कर गुनगुनी धूप का आनन्द ले रही थीं। तभी सहसा मिन्नी की निगाह उस चिड़िया पर पड़ी। दूर से देखने में लगा कि एक बड़ी सी चिड़िया जिसका मुॅंह और चोंच सफेद तथा बाकी सारा शरीर काला था अपने पंख खोले उड़ रही है। लेकिन यह क्या...? मिन्नी ने देखा कि काफी देर के बाद भी वह चिड़िया वहीं की वहीं थी। न तो उड़ कर कहीं गयी और न ही पेड़ की ड़ाल पर बैठी। बस हवा में एक घेरे के अंदर थोड़ा आगे, थोड़ा पीछे, थोड़ा दायें, थोड़ा बायें घूम रही थी।
‘‘मिन्नी, वह चिड़िया शायद मुसीबत में है। वो देख उसकी लम्बी सी पूॅंछ पेड़ की ड़ाल में फॅंस गयी है। शायद इसीलिए वह आगे नहीं जा पा रही है।’’ चिन्नी ने कहा तो मिन्नी का ध्यान इस ओर गया। उसने देखा तो पाया कि सचमुच उस चिड़िया की काले रंग की बहुत पतली और लम्बी सी पूॅंछ बबूल की ड़ाल में फॅंसी हुयी थी। चिड़िया पंख फड़फड़ा कर बार-बार अपनी पूॅंछ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन सफल नहीं हो पा रही थी। इसी कारण वह उड़ नहीं पा रही थी।
‘‘चिन्नी, हमें उस चिड़िया की मदद करनी चाहिए। अगर हम उसकी फॅसी पूॅंछ को ड़ाल से छुड़ा दें तो वह उड़ कर अपने घर चली जाए।’’ मिन्नी ने कहा।
‘‘लेकिन मम्मी ने तो हमें कहीं जाने से मना किया है। उनको पता चलेगा तो गुस्सा नहीं होंगी ?’’ चिन्नी बोली।
‘‘हाॅं, मम्मी ने इस पेड़ से बाहर जाने से मना तो किया है, लेकिन मम्मी ने ही यह भी तो सिखाया है कि अगर कोई मुसीबत में हो तो उसकी मदद जरूर करनी चाहिए।’’
‘‘लेकिन मिन्नी बहन, यह क्यों भूल रही हो कि मम्मी ने ही बताया था कि वह सामने वाला पेड़ बबूल का है। उसमें नुकीले काॅंटे होते हैं। अगर हमें काॅंटे चुभ गए तो ?’’
‘‘देख चिन्नी, पहली बात तो यह कि अगर हम सावधानी बरतेंगे तो काॅंटे नहीं चुभेंगे। और मान लो हमें जरा सा काॅंटा चुभ भी जाय तो कोई बात नहीं। उस चिड़िया बेचारी की जान तो बच जाएगी।’’ मिन्नी ने कहा तो चिन्नी भी मान गयी। दोनों अभी तक अपने घोंसले वाले पेड़ से बाहर नहीं गयी थीं। लेकिन मुसीबत में फॅसी उस चिड़िया की मदद करने के लिए दोनों बहनों ने हिम्मत की और उड़ कर बबूल पर गयीं। देखा तो उस चिड़िया की बहुत पतली और लम्बी सी पूॅंछ बबूल की एक टहनी में लिपट गयी थी।
‘‘क्या बात है ताईजी.....आप की पूॅंछ फॅस गयी है क्या ?’’ मिन्नी ने पूछा लेकिन उस चिड़िया ने कोई जबाब नहीं दिया।
‘‘हम दोनों बहनें आपकी मदद करने के लिए आई हैं। बताइए...हम क्या करें....कैसे मदद करें ?’’ इस बार चिन्नी ने पूछा लेकिन काली चिड़िया ने फिर कोई जबाब नहीं दिया।
‘‘अरी मिन्नी, यह तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं ?’’
‘‘कोई बात नहीं। हो सकता है यह दूसरे देश की रहने वाली हों और हमारी भाषा नहीं समझ पा रही हों। चलो, कोशिश कर के इनकी लिपटी पूॅछ छुड़ा दी जाय।’’ मिन्नी ने कहा और दोनों मिल कर उस चिड़िया की लम्बी सी पूॅंछ को बबूल की टहनी से छुड़ाने में जुट गयीं। लेकिन पूॅंछ इतनी बुरी तरह लिपटी थी कि टहनी से अलग ही नहीं हो पा रही थी।
‘‘मिन्नी, ऐसा करते हैं टहनी के पास से पूॅंछ को काट देते हैं। इनको थोड़ा दर्द तो जरूर होगा लेकिन जान बच जाएगी इनकी।’’ चिन्नी ने सुझाव दिया तो मिन्नी को भी लगा कि यही ठीक रहेगा।
दोनों बहनों ने अपने नन्हें-नन्हें दाॅंतों से पॅंछ का वह सिरा जो टहनी से लिपटा था, काट दिया। देर से फड़फड़ा रही वह चिड़िया अपनी पूॅंछ के टहनी से अलग होते ही झटके के साथ ऊपर को उड़ी। लेकिन ऊपर जाते ही वह बबूल की एक पतली शाख में फॅंस गयी। काॅंटों से उसके पंख फट गए और वह मारे दर्द के वहीं फॅंसी-फॅंसी फड़फड़ाने लगी। उस चिड़िया की यह हालत देख चिन्नी, मिन्नी घबड़ा गयीं और अपने घोंसले में भाग आयीं। ड़र के मारे काॅंपती दोनों बहनें घोंसले में छुपी बैठी रहीं।
थोड़ी देर के बाद उनकी माॅं चुनमुन गौरैया दाना लेकर लौटी तो देखा कि चिन्नी, मिन्नी मुॅंह लटकाए ड़री, घबड़ायी सी बैठी थीं।
‘‘क्या बात है, मेरी बच्चियों....तुम लोग उदास क्यों हो ? बहुत जोर की भूख लग आयी है क्या ?’’ चुनमुन ने प्यार से पुचकारते हुए पूछा लेकिन न तो चिन्नी कुछ बोली और न ही मिन्नी।
‘‘अरी ! बात क्या है कुछ बताओ तो सही। तुम दोनों मुॅंह लटकाए क्यों बैठी हो ?’’ चुनमुन ने परेशान हो कर फिर पूछा।
‘‘नहीं मम्मी....बात सुन कर आप गुस्सा होंगी।’’ मिन्नी ड़रते-ड़रते बोली।
‘‘अच्छा चलो बताओ। मैं जरा भी गुस्सा नहीं होऊॅंगी।’’ चुनमुन अपने मुलायम पंख से दोनों को सहलाते हुए बोली।
‘‘मम्मी, हमसे एक गलती हो गयी है। हमारी वजह से एक चिड़िया आंटी की जान चली गई।’’ चिन्नी ने धीरे से कहा।
‘‘ऐं....ऐसा कैसे हुआ ? पूरी बात बताओ जरा।’’ चुनमुन चैंक पड़ी।
चिन्नी और मिन्नी ने पूरी बात बता दी। सुनने के बाद चुनमुन खुद आश्वर्य में पड़ गयी। वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसी कौन सी चिड़िया हो सकती है जिसकी इतनी लम्बी पूॅंछ हो कि वह पेड़ की टहनी में लिपट जाय। और उसके पंख इतने कमजोर हों कि काॅंटों में फॅंस कर फट जायें।
‘‘अच्छा चलो, जरा मुझको दिखाओ तो कि कहाॅं मरी पड़ी है वह चिड़िया।’’ चुनमुन ने कहा और उन दोनों को ले कर बबूल के पेड़ पर जा पहॅंुची। वहाॅं का दृश्य देखा तो हॅंसते-हॅंसते चुनमुन के पेट में बल पड़ गए। वह हॅंसे जा रही थी, हॅंसे जा रही थी और चिन्नी तथा मिन्नी बेवकूफों की तरह उसका मुॅंह देख रही थीं।
‘‘अरी पागल, यह कोई चिड़िया नहीं है। यह तो आदमी लोगों का खिलौना है। इसको पतंग कहते हैं। और जिसे तुम लोग पूॅंछ समझ रही हो वह धागा है। इसी धागे से बाॅंध कर आदमी लोग आसमान में उड़ाते हैं पतंग को। इसमें कोई जान थोड़े न होती है जो मर जाएगी। यह तो कागज की बनी होती है।’’ चुनमुन ने बड़ी मुश्किल से अपनी हॅंसी रोक कर बताया। उसके बाद वह पतंग के पास गयी और उसे अपनी चोंच से पकड़ कर खींच लिया। काला कागज जिसे चिन्नी और मिन्नी चिड़िया का पंख समझ रहे थे, उसका एक टुकड़ा नुच कर चुनमुन की चोंच में आ गया।
‘‘यह देखो, यह है तुम्हारी चिड़िया आंटी का पंख।’’ चुनमुच ने पतले कागज का वह टुकड़ा सामने रखा तो अभी तक ड़रीं, सहमीं चिन्नी और मिन्नी भी खिलखिला कर हॅंस पड़ीं।