चंदी गुप्ता

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

12/18/20201 मिनट पढ़ें

अब चंदी गुप्ता के दिन फिर गए थे। कभी सौ-पचास के लिए मोहताज रहने वाले चंदी गुप्ता के यहाॅं अब रुपयों की बरसात होने लगी थी। कभी पुरानी सायकिल की चोरी में लात खाने, जेल जाने वाले चंदी गुप्ता अब महॅंगी कार में चलने लगे थेे। कभी दुत्कारे जाने और यहाॅं-वहाॅं मारे-मारे फिरने वाले लफंडूस चंदी गुप्ता अब आदर के साथ पुकारे जाने लगे थे। कभी हिकारत की नजर से देखे जाने वाले चंदी गुप्ता अब भैया-भैया कहते दर्जन भर चाटुकारों से घिरे रहने लगे थे। लब्बो-लुबाब यह कि साल बीतते-बीतते लतीफ अहमद के नाम और भौकाल की आड़ में चंदी गुप्ता बीस-पच्चीस लाख की हैसियत वाले बन चुके थे।

ऊॅंट की चोरी निहुरे-निहुरे तो हो नहीं सकती। अगर हवा चलेगी तो पत्ता भी ड़ोलेगा ही और अगर पत्ता ड़ोलेगा तो दुनिया को दिखायी भी जरूर देगा। अपने हिसाब से तो चंदी गुप्ता बहुत सयाने बन रहे थे, सोच रहे थे कि लतीफ अहमद की आॅंखों में धूल झोंक रहे हैं लेकिन वैसा था नहीं। कोई कितना भी खास क्यों न हो, उस पर आॅंख बंद कर के विश्वास न करना अपराध जगत की पहली शर्त होती है। बड़ा से बड़ा बदमाश भी वहीं गच्चा खाता है जहाॅं वह किसी पर आॅंख मूॅंद कर विश्वास कर लेता है। लतीफ अहमद ऐसे ही नहीं इतने बड़े माफिया बन गए थे। उनकी भी खासियत थी कि वे किसी पर भी पूरी तरह से यकीन नहीं किया करते थे। वे अपने हर एक गुर्गे के पीछे किसी दूसरे को लगाए रहते थे। उसकी गतिविधियों की टोह लेते रहते थे। फिर चंदी गुप्ता तो अभी उनके गिरोह में बिल्कुल नए भर्ती हुए थे। उनको तो अभी आजमाया भी नहीं था। अतः उन पर एकदम से विश्वास कर लेने का तो प्रश्न ही नहीं था। उनके पीछे भी लतीफ अहमद ने अपने जासूस लगा रखे थे। नैनी जेल में बैठे-बैठे ही उनको चंदी गुप्ता की एक-एक गतिविधि की जानकारी मिलती रहती थी। चंदी गुप्ता जो अमानत में खयानत करने लगे थे उसकी जानकारी लतीफ अहमद को मिल गई थी।

यद्यपि चंदी गुप्ता लतीफ अहमद के द्वारा निर्धारित पैसों में हेराफेरी नहीं करते थे। उसका पूरा हिसाब दे दिया करते थे। अतिरिक्त कमाई वे अपनी अक्ल और तीन-तिकड़म से कर रहे थे इसलिए उस पर अपना अधिकार मानते थे। लेकिन फिर भी उनका यह कार्य विश्वासघात की श्रेणी में आता था जो कि लतीफ अहमद को कत्तई मंजूर नहीं था। विश्वासघातियों के लिए उनके यहाॅं बहुत कड़ी सजा निर्धरित थी और वह सजा थी सजा-ए-मौत। आखिर जब पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा तो एक दिन लतीफ अहमद ने खबर भेज कर चंदी गुप्ता को जेल में बुलवाया।

‘‘कस में, तोरा दिमाग बहुते जियादा खराब हो गवा है का बे ?’’ लतीफ अहमद अंगारे की तरह लाल आॅंखों से घूरते हुए कहा।

‘‘का भवा भाईजान...? आप अइस काहें बोलत हैन।’’ चंदी गुप्ता तो जब जेल से लतीफ अहमद का बुलावा आया था तभी समझ गए थे कि मामला क्या है, फिर भी अनजान बनने का नाटक करते हुए बहुत भोलेपन से पूछा।

‘‘बुजरो के अपनी अउकात मां रहो नइ तो एत्ता बम पड़ीगा की चिथड़ा होइ जाबो।’’ लतीफ अहमद गुस्से में दाॅंत पीसते हुए बोले।

‘‘लेकिन भाईजान हमसे गलती का भवा है पहिले इ तो बतावा जाय।’’

‘‘अच्छा ! तो तुमका मालुम नइना की इहां काहे बरे बोलावा गवा है ? अबे हरामी की अउलाद हम तुमका चुतिया देखात हैं का बे....? तू का सोचत हय की तू हिसाब मां जौन तीन-तेरह करि रहा हय ऊ का जानकारी हमका नइना....?’’

‘‘भाईजान ! आप के हिसाब त हम पूरी ईमानदारी से देइत हन....ओमें कौनो गड़बड़ी नाहीं करित। हाॅं ओकरे अलावे अपने बरे चार पइसा जरूर कमा लेइत हन।’’

‘‘अच्छा ! तो एतनी चरबी चढ़ि गवा है की तू हमरी बराबरी करिहो.....? हमरी तरह अपनी नाम से रंगदारी वसूलिहो....?’’

‘‘नाहीं भाईजान ! हम एतनी बड़ी गुस्ताखी भला कइस करि सकित हन ?’’

‘‘तो कान खोलि के सुन लेव....हेराफेरी कइके जेतना पइसा मारे हो, सब चुप्पे ले आ के देइ देव। नाहीं त सोचि लिहो...हमसे बुरा कोइ न होइगा।’’

‘‘पइसा तो भाईजान हमसे खरच होइ गवा हय। कुछ मोहलत दे दीन जाय....महीना-खाॅंड़ मां बेवस्था कइ के हम पाइ-पाइ देइ देबइ।’’

‘‘ठीक हय। तोका एक महीना का मोहलत देइत ही। महीना भरे मां हमार पइसा वापस मिल जाए का चाही।’’

चंदी गुप्ता को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उनकी छोटी से छोटी हरकत की भी जानकारी लतीफ अहमद को हो गयी होगी। उनके पास अब सफाई देने की कोई गंुजाइश ही नहीं बची थी। मौके की नजाकत को देखते हुए चंदी गुप्ता लतीफ अहमद के पैरों में लेट गए। अपने कान पकड़ कर उठक-बैठक की, अपनी गलती स्वीकार की, माफी माॅंगी और यथाशीघ्र पूरा पैसा वापस करने का आश्वासन दे कर जेल से सकुशल लौट आए। चंदी गुप्ता को समझ में आ गया था कि अब उनका खेल खतम है। अब वे लतीफ अहमद का विश्वास खो चुके हैं। हो सकता है उनसे पैसा ले चुकने के बाद लतीफ अहमद उनकी हत्या भी करा दें। या किसी हत्या, ड़कैती आदि के गंभीर मामले में फॅंसवा कर पूरी उम्र के लिए जेल भिजवा दें। लेकिन चंदी गुप्ता भी ठहरे बज्र हरामी सो इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। स्थितियाॅं विपरीत देख उन्होंने लतीफ अहमद के सामने भले ही गिरगिट सा रंग बदल दिया था लेकिन उनके शातिर दिमाग में अब दूसरी खिचड़ी पकने लगी थी।

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