चंदी गुप्ता
कहानी
राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी। मंत्री जी चंदी गुप्ता के लिए सोने में सुहागा वाली बात यह हुयी कि अपनेे अधीनस्थ विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में उनको हेमंत कुमार जैसा दब्बू, बेईमान और चरित्रहीन अधिकारी मिल गया।
कौन...? क्या...? अच्छा तो आपको मेरी बात पर आपत्ति है। आपका कहना है कि हेमंत कुमार के बारे में मेरी टिप्पड़ी गलत है। आप मेरी बात से सहमत नहीं हैं। अच्छा एक मिनट ठहरिए, अभी बात करते हैं आपसे।
सहृदय पाठकगण ! माफ कीजिएगा...रुकावट के लिए खेद है। दरअसल आइएएस हेमंत कुमार के एक प्रशंसक बीच में टपक पड़े हैं। उनका कहना है कि हेमंत कुमार एक अच्छे अधिकारी हैं। तो ऐसा करते हैं पहले इन महाशय की बातें सुन लेते हैं और इनको जबाब दे लेते हैं फिर कहानी को आगे बढ़ाते हैं। तब तक आप भी मेरे साथ बने रहिए।
हाॅं महोदय ! अब बोलिए। क्या कह रहे थे आप ?
अच्छा आप का कहना है कि हेमंत कुमार बहुत प्रतिष्ठित पिता के पुत्र हैं और निहायत शरीफ और ईमानदार व्यक्ति हैं। जी आपकी बात आंशिक तो सही है लेकिन पूरी नहीं। ये हेमंत कुमार ड़ा0 पी0एन0 श्रीवास्तव के सुपुत्र हैं। वही ड़ा0 पी0एन0 श्रीवास्तव जिनकी गिनती देश के प्रतिष्ठित विद्वानों में होती है। जो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे और बाद में कई विश्वविद्यालयों के वाइसचांसलर भी रहे। लेकिन कोई जरूरी नहीं कि योग्य पिता की औलाद भी योग्य ही हो। कभी-कभी भले आदमी के नुत्फ़े से कुपुत्र भी पैदा हो जाते हैं। उदाहरण के लिए चंदी गुप्ता को ही लीजिए। उनके पिता हरीराम गुप्ता जितने ही अधिक सज्जन और शरीफ थे चंदी गुप्ता उतने ही दुर्जन और धूर्त हैं। ठीक यही बात हेमंत कुमार के साथ भी है। ड़ा0 पी0एन0 श्रीवास्तव जिमने ही उच्च कोटि के व्यक्ति हैं हेमंत कुमार उतने ही नीच। योग्यता उनकी बस इतनी भर है कि वे आइएएस हैं। बाकी शरीफ आदमी के कोई भी गुण नहीं हैं उनके अंदर।
जी...क्या कह रहे हैं आप...? कि हेमंत कुमार बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। दोनों वक्त पूजा करते हैं। जी, आपकी यह बात भी सही है। दरअसल हेमंत कुमार बहुत बड़े हिप्पोक्रेट हैं। सीधी सरल भाषा में कहें तो दोगले चरित्र के व्यक्ति हैं। बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और। असल में कुछ और, दिखाने के लिए कुछ और। सवेरे-शाम चार घंटा ध्यान लगाया करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, पूरे ललाट पर चंदन का लेप लगाए फिरते हैं, कंठी, माला धारण किए रहते हैं लेकिन चरित्र के मामले में अत्यंत बेईमान और घटिया हैं।
जी, क्या कह रहे हैं आप कि आप को मेरी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है। प्रमाण चाहिए आप को। तो चलिए, जब आप सुनना ही चाहते हैं तो मैं हेमंत कुमार के चरित्र के आवरण उतार देता हूॅं। धार्मिक तो वे इतने हैं कि अपनी मर्जी से अंतर्जातीय प्रेम विवाह करने के बाद माॅं-बाप से रिश्ता ही खतम कर लिया। अपने गृह नगर इलाहाबाद जाते हैं तो सर्किट हाउस में ठहरते हैं और वहीं से लौट आते हैं। सर्किट हाउस से बमुश्किल तीन किमी0 दूर स्थित अपने घर नहीं जाते। इकलौती संतान होने के बावजूद अपने माता-पिता की खोज-खबर तक नहीं लेते।
रही चाल-चरित्र की बात तो इस मामले में इतने घटिया हैं कि जाति और कुल की मर्यादा तोड़ कर मसूरी में प्रशिक्षण के दौरान अपने ही संवर्ग की जिस महिला अधिकारी के साथ प्रेम विवाह किया उसके प्रति भी ईमानदार नहीं हैं। इनकी छिनरई से परेशान इनकी पत्नी ने अपना ट्रांसफर दिल्ली करा लिया। क्या यह भी जानना चाहेंगें कि पत्नी से इनके विवाद की जड़ क्या है ? तो सुनिए, वह जड़ है इनकी सगी साली, इनके चक्कर में जिसने आजीवन शादी नहीं की। इनके चरित्र के विषय में इनके विभाग के इलाहाबाद में तैनात रहे अधिकारी भी काफी कुछ बताते हैं। ये हजरत सरकारी काम के बहाने हर सप्ताह तीन-चार दिन इलाहाबाद के सर्किट हाउस में पड़े रहते थे। सवेरे दस बजे घंटा भर की मीटिंग करने या किसी कार्य का मौका मुआइना करने के बाद सर्किट हाउस में आ जाते थे। उसके बाद बारह-सवा बारह बजे के आसपास खुद ही कार चलाती एक सुंदर सी महिला आती थी और इनके कमरे में चली जाती थी। सारे दिन इनके साथ रहने के बाद वह महिला सायं छः बजे कमरे से निकलती और वापस लौट जाती थी। यह किसी एक दिन नहीं, नित्य का नियम था। अब यह तो समझने की बात है कि श्रीमान हेमंत कुमार जी बारह बजे से छः बजे तक बंद कमरे के अंदर उस जवान महिला के साथ अकेले में हरिकीर्तन तो गाते नहीं होंगे। वैसे और भी कई किस्से हैं इन श्रीमान जी के जो मुझ जैसे बहुतों के संज्ञान में हैं।
रही ईमानदारी की बात तो हेमंत कुमार जी ड़ूब कर पानी पीने वालों में से हैं। इनको सेवा भी चाहिए, माल भी चाहिए और ईमानदारी का तमगा भी। उनकी कार्य शैली यह है कि बंदूक अपने अधीनस्थों के कंधे पर रख कर चलाते हैं। कोई भी गलत या नियम विरूद्ध कार्य खुद अपनी कलम से नहीं करते हैं बल्कि अपने मातहतों पर दबाव बना कर उनसे कराते हैं और उसका प्रतिफल लाभान्वित पक्ष से सीधे ले लेते हैं। इनकी ईमानदारी के बारे में जानना हो तो दो वरिष्ठ अधिकारियों नोएड़ा में तैनात रहे रवीन्द्र सिंह चैहान तथा इलाहाबाद में तैनात रहे अभिषेक श्रीवास्तव से मीलिए। इनके दबाव में आ कर नियम विरूद्ध काम से मना करने पर इन दोनों अधिकारियों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था।
हाॅं महोदय, आपको यदि अपनी आशंकाओं का उत्तर मिल गया हो, तो मैं कहानी को आगे बढ़ाऊॅं। मेरे प्रिय पाठक लोग आगे की कहानी की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सुधी पाठकों ! कहानी में विषयांतर के लिए मुझे वाकई खेद है। मेरी कहानी का उद्देश्य हेमंत कुमार का चरित्र चित्रण करना कत्तई नहीं था। वो तो एक सज्जन ने बीच में टोक दिया तो उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिए मुझे मूल कहानी से थोड़ा भटकना पड़ा। हाॅं तो मैं बता रहा था कि चंदी गुप्ता के विभाग के विभागाध्यक्ष हेमंत कुमार बहुत ही निकम्मे, कामचोर, चरित्रहीन और दिखावे के ईमानदार व्यक्ति थे। सामान्य सी बात है कि जो व्यक्ति गलत होता है वह अंदर से बहुत कमजोर होता है। अतः अपने दुर्गुणों के कारण वे बहुत दब्बू और रीढ़विहीन अधिकारी थे। मंत्री जी की हाॅं में हाॅं मिलाने में उनको महारत हासिल थी। स्थिति यह थी कि यदि मंत्री जी आम को इमली कहें तो वे भी इमली कहने लगें, मंत्री जी भरी दोपहरी को रात कहें तो वे भी रात कहें, यदि मंत्री जी जरा सा झुकने को कहें तो वे उनके सामने पूरी तरह से लेट जायें। तात्पर्य यह कि हेमंत कुमार आइएस. के नाम पर कलंक सरीखे थे। खुद आइएस संवर्ग में भी उनको बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता था। यदि किसी अन्य संवर्ग के अधिकारी होते तो जाने कब के निलम्बित और बर्खास्त कर दिए गए होते। चूॅंकि आइएएस थे जिसका फुल फार्म ही होता है ‘आई एम सेफ’ इसलिए सरकार उन जैसे निकम्मे को ढ़ो रही थी।