बाल साहित्य का वर्तमान
लेख
बाल साहित्य का तात्पर्य, बच्चों के स्वस्थ मनोरंजन, शिक्षा, संस्कार, एवं उनकी बाल-सुलभ जिज्ञासाओं के शमन हेतु रचे गए साहित्य से है। आॅंखें खोलते ही बच्चे का प्रथम साक्षात्कार आकाश, बादल, चाॅंद, तारों, पेड़, पौधों, पशु, प़क्षी, आदि से होता है। फिर जैसे-जैसे वह बड़ा और समझदार होता जाता है, उसके अंदर अपने परिवेश की इन चीजों के प्रति आकर्षण और कौतूहल बढ़ता जाता है। बच्चे के इस कौतूहल को शांत करने एवं उसके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए जो सामग्री उसके समक्ष परोसी जाती है वह सब बाल साहित्य का अंग है। वह चाहे माॅं की लोरियों के रूप में हो, पिता की नसीहतों के रूप में हो या दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियों के रूप में। वह चाहे आख्यान और उपदेश के रूप में हो या पहेली और चुटकुला के रूप में। वह चाहे वाचिक हो या मुद्रित। वह चाहे द्रश्य हो या श्रव्य।
आज हिन्दी बाल साहित्य का प्रमाणित इतिहास कम से कम सौ वर्ष पुराना हो चुका है। साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में बाल-साहित्य का प्रचुर लेखन भी हुआ है। नेशनल बुक ट्रस्ट और प्रकाशन विभाग जैसी संस्थायें उत्तम बाल साहित्य का प्रकाशन कर रही हैं। अन्य प्रकाशनों से भी बड़े पैमाने पर बाल साहित्य प्रकाशित हो रहा है। तात्पर्य यह कि हिन्दी का बाल साहित्य आज पर्याप्त समृद्ध है।
बाल-साहित्य के महत्व एवं उपयोगिता को हिन्दी के पुरोधा साहित्यकारों ने बहुत गहराई से महसूस किया था यही कारण है कि उन लोगों ने प्रचुर मात्रा में बाल-साहित्य का सृजन किया है। मैथिली शरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, सुभद्रा कुमारी चैहान, रामधारी सिंह दिनकर, माखनलाल चतुर्वेदी, डा0 रामकुमार वर्मा, सोहनलाल द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सुमित्रानन्दन पंत, अमृतलाल नागर, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, भीष्म साहनी, प्रयाग शुक्ल, डा0 लक्ष्मीनारायण लाल, नासिरा शर्मा, चित्रा मुद्गल, मालती जोशी, और यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र आदि हिन्दी के अनेक ऐसे बड़े लेखक हैं जिन्होंने बालसाहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। इनके अतिरिक्त ठाकुर श्रीनाथ सिंह, सोहनलाल द्विवेदी, निरंकारदेव सेवक, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, विष्णुकांत पाण्ड़ेय, शंकुतला सिरोठिया, स्वर्ण सहोदर, दामोदर अग्रवाल, नारायणलाल परमार, चन्द्रपाल सिंह यादव ‘मयंक, शंकर सुल्तानपुरी, डा0 श्रीप्रसाद, डा0 हरिकृष्ण देवसरे, डा0 शेरजंग गर्ग, प्रकाश मनु, दिविक रमेश, डा0 राष्ट्रबन्धु, रमेश तैलंग, शम्भुनाथ श्रीवास्तव, डा0 भैंरूलाल गर्ग, सरोजिनी कुलश्रेष्ठ, डा0 बालशौरि रेड्डी, सीताराम गुप्त, डा0 रोहिताश्व अस्थाना, अनंत कुशवाहा, डा0 उषा यादव, शकुंतला कालरा, राजनारायण चैधरी, डा0 सुरेन्द्र विक्रम, सूर्यकुमार पाण्ड़ेय,, अमर गोस्वामी, सूर्यभानु गुप्त, भगवती प्रसाद द्विवेदी, परशुराम शुक्ल, गाविन्द शर्मा, और भगवती प्रसाद गौतम आदि लेखकों ने हिन्दी बाल साहित्य की विविध विधाओं को समृद्धि और ऊचाई प्रदान की है।
संचार क्रांति के कारण हमारे परिवेश में बहुत तीव्र परिवर्तन आया है। आज का बच्चा अत्यधिक सजग, जिज्ञासु तथा तर्कशील हो चुका है। टी0वी0, इंटरनेट, गूगल और मोबाइल आदि ने आज के बच्चों को उनकी उम्र के मुकाबले अधिक जागरूक और जानकार बना दिया है। इसलिए आज के दौर में बाल-साहित्य का लेखन पहले के अपेक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण हो चुका है। अच्छी बात यह है कि आज बाल साहित्य के लेखक भी इन बातों से अनभिज्ञ या निरपेक्ष नहीं हैं। वे चुनौती को समझ रहे हैं और उसे स्वीकार भी कर रहे हैं। शुकदेव प्रसाद, देवेन्द्र मेवाड़ी, अरविन्द मिश्र, गुणाकर मुले, जयंत विष्णु नार्लीकर,, ड़ा0 परशुराम शुक्ल, रमाशंकर, संजीव जायसवाल संजय और राजीव सक्सेना आदि लेखकों ने प्रभूत मात्रा में वैज्ञानिक बाल साहित्य रचा है।
देवेन्द्र मेवाड़ी की विज्ञान कथाओं और बालोपयोगी वैज्ञानिक लेखों की अठारह पुस्तकें प्रकाशित हंै। इनमें प्रकाशन विभाग से प्रकाशित ‘सौर मण्ड़ल की सैर’ नामक पुस्तक के कई संस्करण हो चुके हैं। स्वंय इन पंक्तियों के लेखक अखिलेश श्रीवास्तव चमन की ‘बीनू का सपना’, ‘बंटी का कम्प्यूटर’, ‘आपरेशन अखनूर’, ‘नीला आसमान’, ‘विज्ञान की बातें’, ‘एक पते की बात’, आदि वैज्ञानिक बाल उपन्यास, वैज्ञानिक लेखों, विज्ञान कथाओं तथा विज्ञान विषयक कविताओं आदि की आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। राजीव सक्सेना के चार विज्ञान बाल उपन्यास तथा छः विज्ञान बाल कहानी संकलन सहित दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। रमाशंकर के विज्ञान बाल उपन्यास ‘मिशन ब्ल्ूा प्लैनेट’ के अलावे उनके सम्पादन में तीस विज्ञान बाल कथाओं का एक संकलन ‘विज्ञान का आसमान’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। इसमें देवेन्द्र मेवाड़ी, मनोहर वर्मा, प्रकाश मनु, अरविन्द मिश्र, पंकज चतुर्वेदी, राजीव सक्सेना, रमाशंकर, मनोहर मनु, उषा यादव और अमिताभ शंकर राय चैधरी आदि लेखकों की विज्ञान बाल कहानियाॅं संकलित हैं। ये बहुरंगी कहानियाॅं विज्ञान सम्मत बाल-साहित्य की समृद्धि के साथ-साथ उसके उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त भी करती हंै। संजीव जायसवाल संजय का भी एक उपन्यास ‘रेड सन के एलियन’ आया है।
कहानी के ़क्षेत्र में इस समय सक्रिय रचनाकारों में डा0 प्रकाश मनु, दिविक रमेश, रमेश तैलंग, उषा यादव, ओम प्रकाश कश्यप,, भगवती प्रसाद द्विवेदी, अमिताभ शंकर राय चैधरी, समीर गांगुली, मो0 अरशद खान, मो0 साजिद खान, रमाशंकर, दर्शन सिंह आशट, नयन कुमार राठी, नागेश पाण्ड़ेय संजय, राजकुमार जैन राजन, शशि भूषण बड़ोनी, बद्री प्रसाद वर्मा अनजान, रावेन्द्र कुमार रवि, राजीव सक्सेना और पंकज चतुर्वेदी आदि से ले कर नीलम राकेश, अलका प्रमोद, पवन कुमार वर्मा, मंजरी शुक्ला, ई0 आशा शर्मा, शीला पाण्ड़ेय, राम करन आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है। यहाॅं डा0 प्रकाश मनु के संपादन में प्रकाशित तीन पुस्तकों ‘दूध फैक्स रबड़ी फैक्स’, ‘पिद्दी न पिद्दी का शोरबा’, तथा ‘चीं चीं और चूं चूं’ का उल्लेख करना समीचीन होगा। प्रकाशन विभाग से प्रकाशित इन तीनों पुस्तकों में कुल 125 बाल कहानियाॅं संकलित हैं जो वर्तमान हिन्दी बाल कहानियों के विविधता भरे परिदृश्य की सुन्दर बानगी प्रस्तुत करती हैं। बाल कहानी में लीक से हट कर कुछ नएपन की बात करें तो मो0 साजिद खान की ‘रहमत चचा का घोड़ा’, अलका प्रमोद की ‘कहानी में कहावतें’, पवन कुमार वर्मा की ‘सपनों की दुनिया’ तथा मंजरी शुक्ल की ‘जुगलबंदी’ आदि संकलनों की चर्चा की जा सकती है।
यदि बाल कविताओं की बात करें तो जहूर बख्स, सुर्यभानु गुप्त, नारायण लाल परमार, शंकर सुल्तानपुरी, बालस्वरूप राही, डा0 श्रीप्रसाद, डा0 शेरजंग गर्ग, रमेश तैलंग, प्रकाश मनु, कृष्ण शलभ, दिविक रमेश, हरीश निगम, राजनारायण चैधरी, घमंडी लाल अग्रवाल, सूर्यकुमार पाण्ड़ेय,, भगवती प्रसाद द्विवेदी, डा0 सुरेन्द्र विक्रम, प्रभुदयाल श्रीवास्तव, श्याम सुशील, अहद प्रकाश, भगवती प्रसाद गौतम, जगदीश चन्द्र शर्मा, डा0 अजय जनमेजय, शादाब आलम, फहीम अहमद, प्रीति प्रवीण खरे, श्यामसुंदर श्रीवास्तव ‘कोमल’, डा0 प्रदीप शुक्ल और रमेशचन्द्र पंत, आदि रचनाकारों ने बाल कविता को नए रूप, विम्ब, छन्द, लय और प्रतीकों आदि से समृ़द्ध किया है। आज की बाल कविता परम्परागत नहीं रह गयी है बल्कि परिवेश के यथार्थ को चुटीले अंदाज में प्रस्तुत करती है। नई भाव-भंगिमा की बेहतर बाल कविताओं की दृष्टि से ‘हरा समंदर गोपी चंदर’ (डा0 अजय जनमेजय), ‘गुल्लू का गाॅंव’ (डा0 प्रदीप शुक्ल), ‘रेल के डिब्बे में’ (मो0 अरशद खान), ‘अगड़म बगड़म’ (राजनारायण चैधरी) तथा ‘बचपन छलके छल-छल-छल’ (प्रभु दयाल श्रीवास्तव), आदि संकलनों का उल्लेख किया जा सकता है।
डा0 श्रीप्रसाद के सम्पादन में ‘प्रतिनिधि बाल गीत’, कृष्ण शलभ के सम्पादन में ‘बचपन एक समंदर’ और ‘शिशुगीत सलिला’ तथा घमंडीलाल अग्रवाल के संपादन में अलग-अलग विषयों की बाल कविताओं के दस सामूहिक संकलन प्रकाशित हुए हैं। इनके अतिरिक्त ‘साहित्य अकादमी’ दिल्ली से दिविक रमेश के संपादन में ‘प्रतिनिधि बाल कविता संचयन’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुयी है जिसमें हिन्दी के 195 कवियों की बाल कविताएं संकलित हैं। इन संकलनों में विगत चार दशकों में सक्रिय रहे लगभग सभी बाल कवियों की रचनायें सम्मिलित हैं।
नाटक/एकांकी साहित्य की वह विधा है जो दृश्य होने के कारण हमारे मन, मस्तिष्क तक सीधी पॅंहुचती है। सरस्वती कुमार दीपक, मस्तराम कपूर, चिरंजीत, विष्णु प्रभाकर, केशव चन्द्र वर्मा, रेखा जैन, शंकर सुल्तानपुरी, के0पी0 सक्सेना, कमलेश्वर, डा0 लक्ष्मीनारायण लाल, डा0 बालशौरि रेड्डी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, चन्द्रपाल सिंह यादव ‘मयंक’, प्रकाश मनु, और डा0 श्रीप्रसाद आदि ने प्रभूत मात्रा में बाल नाटकों और बाल एकांकियों की रचना की है। वर्तमान समय में उषा यादव, गिरिराजशरण अग्रवाल, बानो सरताज, गोविन्द शर्मा, देवेन्द्र कुमार देवेश, गोपालदास नागर, घमंडीलाल अग्रवाल, और प्रीति प्रवीण खरे आदि अनेकों रचनाकार इस दिशा में सक्रिय हैं। योगेन्द्र कुमार लल्ला के संपादन में प्रकाशित ‘राष्ट्रीय एकांकी’ (1964), ‘हास्य एकांकी’ (1965) तथा ‘प्रतिनिधि बाल एकांकी’ (1992), डा0 हरिकृष्ण देवसरे के संपादन में प्रकाशित ‘बच्चों के सौ नाटक’ (1979) तथा ‘प्रतिनिधि बाल नाटक’ (1996), डा0 रोहिताश्व अस्थाना के सम्पादन में प्रकाशित ‘चुने हुए बाल एकांकी’ (1999) दो खंडों मे तथा ‘100 श्रेष्ठ बाल एकांकी नाटक’ (2014) आदि पुस्तकों में संकलित एकांकियों से स्पष्ट है कि हिन्दी में बाल एकांकी की समृद्ध परम्परा विद्यमान है।
बाल उपन्यासों की दृष्टि से भी बाल साहित्य काफी समृद्ध है। बाल उपन्यासकारों के रूप में शंकर सुल्तानपुरी, हरिकृष्ण देवसरे, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, हसन जमाल छीपा, मनहर चैहान, यादराम रसेन्द्र, मस्तराम कपूर, मनोहर वर्मा, सूर्यबाला, मालती जोशी, और राधेश्याम प्रगल्भ से ले कर के0पी0 सक्सेना, डा0 श्रीप्रसाद, डा0 प्रकाश मनु, देवेन्द्र कुमार, विनायक, डा0 उषा यादव, देवेन्द्र मेवाड़ी, संजीव जायसवाल संजय, रमाश्ंाकर, नागेश पाण्डेय संजय और राजीव सक्सेना आदि तक लेखकों की एक लम्बी सूची है जिन्होंने काफी संख्या में रोचक और उपयोगी बाल उपन्यासों की रचना की है। कुछ वर्षों पूर्व इलाहाबाद के एक प्रकाशन से दो खण्ड़ों में सात बाल उपन्यास प्रकाशित हुए थे जिनमें इस समय सक्रिय सात लेखकों बाल उपन्यास संकलित हैं। अभी दिल्ली के एक प्रकाशन से देवेन्द्र कुमार के सात बाल उपन्यास एक ही जिल्द में प्रकाशित हुए हैं।
बाल पाठकों हेतु जीवनी, संस्मरण तथा यात्रा वृतांत लेखन के क्षेत्र में डा0 हरिकृष्ण देवसरे, विभा देवसरे, योगेन्द्र कुमार लल्ला, शंकर सुल्तानपुरी, डा0 प्रकाश मनु, डा0 राष्ट्रबन्धु, डा0 परशुराम शुक्ल, डा0 शोभनाथ लाल, शुकदेव प्रसाद,, डा0 शकुन्तला कालरा, डा0 विनोद बब्बर तथा डा0 सुरेश्वर त्रिपाठी आदि लेखकों ने उल्लेखनीय काम किया है। आज बच्चों के लिए देश के लगभग सभी महापुरुषों तथा वैज्ञानिकों की जीवनियाॅं उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त दूसरी भाषाओं के बाल साहित्य को अनुदित कर हिन्दी में प्रस्तुत करने का कार्य डा0 श्रीप्रसाद, रमेश तैलंग, देवेन्द्र कुमार, दिविक रमेश तथा दर्शन सिंह आशट आदि ने किया है।
प्रारम्भिक हिन्दी बाल साहित्य में आलोचना का अभाव जरूर रहा है। लेकिन अब यह कमी भी दूर हो चुकी है। विगत कुछ दशकों में डा0 हरिकृष्ण देवसरे, डा0 श्रीप्रसाद, डा0 प्रकाश मनु, रमेश तैलंग, शकुन्तला कालरा, डा0 सुरेन्द्र विक्रम, उषा यादव,और नागेश पाण्ड़ेय संजय आदि लेखकों ने इस विधा को काफी समृद्ध किया है। अब तक बाल साहित्य में आलोचना की पचास से अधिक पुस्तकें आ चुकी हैं जिनमें से ‘बाल साहित्य के सरोकार’-डा0 हरिकृष्ण देवसरे, ‘बाल साहित्य की अवधारणा’-डा0 श्रीप्रसाद, ‘हिन्दी बाल साहित्य: नई चुनौतियाॅं और संभावनायें’-डा0 प्रकाश मनु, ‘समकालीन बाल साहित्य: परख और पहचान’-डा0 सुरेन्द्र विक्रम, ‘बच्चे, बचपन और बाल साहित्य’-अखिलेश श्रीवास्तव चमन, ‘हिन्दी बाल साहित्य का सैद्धांतिक विवेचन’-डा0 परशुराम शुक्ल, ‘बाल साहित्यः सृजन और समीक्षा’-डा0 नागेश पाण्ड़ेय ‘संजय’ आदि पुस्तकों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। जहाॅं तक शोध की बात है, बाल साहित्य पर पहला शोध डा0 हरिकृष्ण देवसरे ने सन् 1968 में किया था। तब से अब तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिन्दी बाल साहित्य पर अब तक दो सौ से भी अधिक शोध कार्य हो चुके हैं।
यह बाल साहित्य की समकालीनता और समृद्धि का ही द्योतक है कि अब इसकी नोटिस ली जाने लगी है। प्रभात प्रकाशन की साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ तथा मध्यप्रदेश की साहित्यिक पत्रिका ‘साक्षात्कार’ का नवम्बर अंक विगत कई वर्षों से बाल साहित्य विशेषांक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। सूचना विभाग की पत्रिका ‘आजकल’ का नवम्बर अंक लगभग दो दशक तक ‘बाल साहित्य पर केन्द्रित होता रहा है। विगत वर्षाें में भारतीय ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’, साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ तथा भारतीय भाषा परिषद की पत्रिका ‘वागर्थ’ आदि में भी बाल साहित्य के महत्व को रेखांकित करते हुए महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए है। वर्ष 2015 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा हिन्दी बाल-साहित्य पर एक दो दिवसीय विचार गोष्ठी आयोजित की गई थी। देश के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में बाल साहित्य की कार्यशालायें तथा विचार गोष्ठियों का आयोजन हो रहा है। केन्द्र सरकार का उपक्रम ‘राष्ट्रीय पुस्तक न्यास’ इस दिशा में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हिन्दी संस्थान’, भाषा संस्थान, हिन्दुस्तानी एकेडमी और ‘साहित्य अकादमी’ जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के अतिरिक्त देश की तमाम गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा बाल साहित्य का संज्ञान लिया जाना तथा उसके रचनाकारों को पुरस्कृत और सम्मानित किया जाना बाल-साहित्य की स्वीकार्यता की दिशा में एक अच्छा संकेत हंै।