अयोग्यता

लघु कथा

Akhilesh Srivastava Chaman

1/5/20241 मिनट पढ़ें

सम्पूर्ण राज्य में हड़कम्प सा मचा था। जो भी सुनता दाॅंतों तले अॅंगुली दबा लेता था। सामान्य जन को तो छोड़िए, ज्ञानी जन भी नहीं समझ पा रहे थे कि राजा ने आखिर अचानक ऐसा अप्रत्याशित कदम क्यों उठा लिया।

खबर जिसने राज्य के हर खासो-आम को कौतूहल और परेशानी में ड़ाल दिया था वह यह थी कि राजा ने देश के गृहमंत्री को उसके पद से मुक्त कर के उन्हें सुदूर प्रांत का राज्यपाल बना कर भेज दिया था। लोगों की परेशानी की वजह दरअसल यह थी कि देश के गृहमंत्री के कार्यों से आम जनता बहुत प्रसन्न और संतुष्ट थी। एक लम्बे अंतराल के बाद देश को ऐसा योग्य, कर्मठ, ईमानदार और दृढ़ निश्चयी गृहमंत्री मिला था। पद भार सॅंभालने के साथ ही गृहमंत्री ने मिलावटखोरों, मुनाफाखोरों, अपराधियों, भ्रष्टाचारियों आदि की ऐसी नकेल कसी थी कि वर्षों से बिगड़ी व्यवस्था एकदम से पटरी पर आ गयी थी। राज्य में सुख, शांति और सम्पन्नता कायम हो गयी थी। ऐसे योग्य गृहमंत्री को अचानक हटा कर किनारे कर देने के पीछे राजा की वास्तविक मंशा किसी के भी समझ में नहीं आ रही थी।

पत्रकारों तथा गणमान्य लोगों के पूछने पर तो राजाजी लगातार यही कह रहे थे कि गृहमंत्री की योग्यता तथा वरिष्ठता को देखते हुए उनको राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, लेकिन यह बात लोगों के गले के नीचे नहीं उतर रही थी।

‘‘तुमने ऐसा अनुचित और अवांछित कार्य क्यों किया राजन ?’’ एक दिन निपट अकेले में राजा के धार्मिक गुरू, राजा जिनके पाॅंव पखारता था ने पूछा।

‘‘गुरुदेव ! आप तो स्वयं पूरे राज्य में भ्रमणशील रहते हैं। लगातार आम जन से मिलते रहते हैं। अगर ध्यान से विचार करें तो आप स्वंय मेरे इस अप्रत्याशित कदम का कारण समझ सकते हैं।’’

‘‘वही तो मैं नहीं समझ पा रहा हूॅं। सवर्ण-अवर्ण, धनी-गरीब, स्त्री-पुरुष हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के लोग जिसके कार्यों से संतुष्ट हों, गाॅंव, नगर हर जगह जिसकी प्रशंसा हो रही हो, विरोधी भी जिसकी कर्मठता के आगे नत हों, ऐसे सुयोग्य गृहमंत्री को अकस्मात हटा देने के पीछे तुम्हारी मंशा को मैं समझ नहीं पा रहा हूॅं।’’

‘‘गुरुदेव ! आपसे मैं झूठ नहीं बोल सकता। सच कहूॅं तो गृहमंत्री की यही योग्यता मेरी दृष्टि में उसकी सबसे बड़ी अयोग्यता है। आप स्वयं अनुभव कर रहे होंगे कि देशवासियों में उसकी लोकप्रियता मुझसे भी अधिक बढ़ने लगी थी। लोग मुझसे अधिक उसकी जय-जयकार करने लगे थे। अब आप स्वयं बताइए, क्या ऐसी स्थिति में उसको गृहमंत्री बनाए रखना उचित था ?’’ राजा ने कहा।

सुन कर गुरुदेव खामोश रह गए। उनको कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था।

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