आउॅंगा मैं
लौट कर आउॅंगा।
पहली बारिश से जन्मे
मिट्टी के सोंधेपन,
टपकते महुए की
नशीली गंध,
आम के झरते मोजर,
या डहडह पलाश की
चटक लाली बन कर
आउॅंगा मैं।
आउॅंगा
भिनसार की
अलस भरी हवा बन कर
और तुमको सहलाते हुए
गुजर जाउॅंगा,
या सूरज की
पहली किरन बन कर
तुमसे
नख-शिख लिपट जाउॅंगा,
निकलते सुबह की उम्मीद
या ढ़लते शाम की
उदासी बन कर
किसी भी रूप में आ सकता हूॅं
लेकिन आउॅंगा मैं
यकीनन लौट कर आउॅंगा।