अर्थ का शास्त्र

कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

11/2/20201 मिनट पढ़ें

‘‘मम्मी, मैं जरा शीलू के घर तक जा रही हूॅं।’’ रेनू ने अपनी मम्मी से कहा और उनको कुछ भी कहने या पूछने का मौका दिए बगैर झटके से घर से बाहर निकल गयी। वह डर रही थी कि मम्मी कहीं उसकी पीठ पर टॅंगे बैग को न देख लें और उसके बारे में पूछताछ न करने लगें। बाहर आ कर आटो में बैठने के बाद उसने अनिल के मोबाइल पर मिस काॅल कर दिया। यह मिस काॅल इस बात का संकेत था कि वह घर से निकल चुकी है और अनिल अब उसकी मम्मी से बात करने के लिए जा सकता है।

दरअसल पूरे घटनाक्रम की पटकथा एक दिन पहले विश्वविद्यालय के कैण्टीन में हुयी मित्र-मंड़ली की बैठक में लिखी जा चुकी थी। बैठक में अनिल के अतिरिक्त रेनू, पियूष और उन दोनों के सारे खास दोस्त और सहेलियाॅं मौजूद थीं। बैठक में तय हुआ था कि दोपहर के बाद रेनू अपने सारे मार्कशीट्स, सर्टिफिकेट्स, दो-चार कपड़े तथा कुछ अन्य रोजमर्रा के जरूरी सामान ले कर घर से निकल जायेगी। उसके बाद अनिल, जो रेनू के सहपाठी के साथ-साथ उसका पड़ोसी भी है, उसकी मम्मी से बात करने के लिए उसके घर जाएगा। बात करने के बाद वह फोन पर रेनू की मम्मी के रुख की जानकारी देगा। यदि रेनू की मम्मी का रुख सकारात्मक रहा तो रेनू अपने घर वापस लौटेगी अन्यथा वह रेलवे स्टेशन चली जाएगी जहाॅं पियूष पहले से उपस्थित रहेगा। वहाॅं से वे दोनों मेरठ के लिए रवाना हो जायेंगे।

रेनू ने ही बताया था कि उसके घर में पापा की नहीं सिर्फ मम्मी की चलती है। अगर मम्मी ने हाॅं कह दिया तो हाॅं और ना कह दिया तो ना। रेनू ने यह भी बताया था कि उसकी मम्मी पैसे को दाॅंतों से पकड़ती हैं। अगर उनको आर्थिक लाभ-हानि की बात ठीक से समझा दी जाय तो बात बन सकती है। हाॅं यह जरूर है कि मम्मी को समझा पाना जरा टेढ़ी खीर होगी। बातचीत के लिए दोपहर बाद का समय जानबूझ कर इसलिए चुना गया था कि उस समय उसकी मम्मी घर में अकेली और फुरसत में रहती हैं। यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अनिल को सौंपे जाने का कारण यह था कि वह रेनू का पड़ोसी था। अनिल और रेनू बचपन से ही साथ-साथ पढ़े थे और उन दोनों के परिवारों के बीच भी काफी घनिष्ठता थी।

रेनू के घर से निकलने के आधा घंटे बाद अनिल ने उसके घर की घण्टी बजायी। उस समय रेनू की मम्मी अपने ड्राइंगरूम में बैठीं टी0वी0 पर कोई सीरियल देख रही थीं।

‘‘चाचीजी नमस्ते।’’ रेनू की मम्मी के दरवाजा खोलते ही अनिल दोनों हाथ जोड़ कर बोला। वह हिम्मत बाॅंध कर संवादिया बन के चला तो आया था लेकिन रेनू की मम्मी के सामने पड़ते ही मारे घबड़ाहट के पसीने-पसीने होने लगा था।

‘‘अनिल ! आ जाओ बेटा। लेकिन रेनू तो घर में है नहीं। अभी थोड़ी देर पहले ही किसी सहेली के घर जाने को कह कर निकली है।’’ रेनू की मम्मी दरवाजा खोल कर एक ओर हटती हुयीं बोलीं।

‘‘चाचीजी.....दरअसल मैं रेनू से नहीं आप....आपसे मिलने के लिए आया हूॅं। वो...वो क्या है कि....कि मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।’’ अनिल लगभग हकलाता हुआ सा बोला और अंदर आ कर रेनू की मम्मी के सामने वाले सोफे पर बैठ गया।

‘‘मुझसे बात करनी है....? बोलो....क्या बात है...?’’ रेनू की मम्मी ने प्रश्नवाचक नजरों से देखते हुए पूछा।

‘‘चाचीजी....वो बात ऐसी है कि कहने की मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही है।’’

‘‘क्यों...? हिम्मत क्यों नहीं हो रही है...?’’

‘‘इसलिए कि सुनकर आप कहीं गुस्सा न हो जायें। और बात ऐसी है कि आपको बताना भी बहुत जरूरी है। नहीं तो बाद में आप कहेंगी कि अनिल ! तुमको पता था फिर भी तुमने बताया क्यों नही ?’’

‘‘अरे बाबा, भला कौन सी ऐसी बात है जिसे कहने की तेरी हिम्मत नहीं हो रही है। बोल तो सही....। तू तो घर का लड़का है....हमारे बेटे जैसा है। तू कहीें रेनू के बारे में तो कुछ नहीं कह रहा है।’’ रेनू की मम्मी की उत्सुकता बढ़ गयी थी।

‘‘हाॅं चाचीजी, मैं रेनू के बारे में ही कुछ कहना चाहता हूॅं। वो क्या है कि हमारा एक दोस्त है पियूष.....यूनिवर्सिटी में हम लोगों के साथ ही पढ़ता है। वह रेनू से शादी करना चाहता है। चूॅंकि सभी जानते हैं कि मेरा आपके घर बचपन से ही आना-जाना है इसलिए मुझको आपसे बात करने के लिए कहा है उसने। यदि आप अपनी सहमति दे दें तो हॅंसी-खुशी हो जाय दोनों की शादी।’’

‘‘क्या नाम बताया उस लड़के का....?’’

‘‘जी पियूष।’’

‘‘जरा पूरा नाम बताओ।’’

‘‘जी पियूष चन्द्र खरे। हमारी यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग में एक प्रोफेसर हैं डा0 हरीश चन्द्र खरे....उन्ही का बेटा है वह।’’

‘‘क्या बताया....खरे ? यानी कायस्थ है वह ?’’

‘‘जी...।’’

‘‘अनिल, तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है...? हम ठहरे बीस बिस्वा के सरयूपारीय ब्राह्मण। ब्राह्मणों में भी सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं हम। अपने से नीचे के ब्राह्मणों में भी रिश्ता नहीं करते हैं हम। तो गैर बिरादरी में....कायस्थ के घर बेटी देंगे अपनी ? ब्राह्मणों में लड़कों का अकाल पड़ा है क्या जो अपनी जाति भ्रष्ट करेंगे ? कायस्थ तो वैसे भी आधा मुसलमान होते हैं। मांस-मछली खाते हैं और शराब पीते हैं सब। अपने दोस्त से कह दो कि वह अपनी औकात में रहे। हमारी रेनू पर डोरे ड़ालने की कोशिश करेगा तो हाथ-पैर तुड़वा कर रख दूॅंगी उसकी। ड़िप्टी एसपी है मेरा चचेरा भाई.....इन दिनों यहीं पोस्टेड है।’’ रेनू की मम्मी एकदम से भड़क उठीं।

‘‘चाचीजी बात ऐसी नहीं है जैसा आप सोच रही हैं। दरअसल मामला दो-तरफा है। पियूष और रेनू दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हंै।’’

‘‘अरे जा...जा, बड़े आए प्यार करने वाले। उनके प्यार की ऐसी की तैसी। अभी ठीक से पजामे का नाड़ा बाॅंधने तक का तो सउर नहीं है और चले हैं प्यार करने। हम इज्जतदार लोग हैं। हमारे खानदान में ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। समझे ? आने दो रेनू को.....आज उसकी वो खबर लूॅंगी कि पूरी जिन्दगी याद रखेगी। वह बेशरम यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए जाती है कि आवारा लड़कों से चोंच लड़ाने ?’’ रेनू की मम्मी का पारा एकदम से गरम हो गया।

‘‘सही बात तो यह है चाचीजी कि अगर आप राजी नहीं होंगी तो रेनू अब घर नहीं लौटेगी। पियूष के साथ कोर्ट मैरिज करने के लिए वह घर से निकल चुकी है। वो तो मुझको पता चल गया तो मैंने उसको समझा-बुझा कर रोक दिया। रेलवे स्टेशन से लौटा लाया उसे ताकि बात बिगड़ने न पाए। वरना अब तक तो वे दोनों जाने कितनी दूर निकल चुके होते।’’

‘‘क्या कहा....? रेनू घर से जा चुकी है ?’’

‘‘हाॅं चाचीजी, रेनू अपने सारे सर्टिफिकेट्स और कुछ कपड़े बगैरह ले कर शीलू के घर जाने के बहाने घर से जा चुकी है।’’

‘‘चलो, अच्छा किया जो बता दिया तुमने। मेरा चचेरा भाई डिप्टी एसपी है। अभी फोन करती हूॅं उसको। देखें कैसे निकल जाती है वह शहर से बाहर। बस अड्डे, टैक्सी स्टैण्ड़ या रेलवे स्टेशन जहाॅं भी होगी पकड़वा लूॅंगी उस बदजात को। हाथ-पैर तुड़वा कर घर में बिठा दूॅंगी तो प्यार का सारा नशा उतर जाएगा उसका। और उस लौंडे की तो वो गत बनवाऊॅंगी कि ता-जिंदगी याद करेगा।’’

‘‘चाचीजी, वैसे तो आप की मर्जी.....आप जो चाहें सो करें। मेरा फर्ज़ था बताना सो बता दिया। लेकिन जाते-जाते मैं एक बात और बताना चाहता हूॅं चाचीजी। दस-पन्द्रह लाख दान-दहेज खर्च कर के भी शायद पियूष जैसा कमाऊ लड़का रेनू के लिए नहीं खोज सकेंगी आप लोग। अभी पिछले ही महीने मेरठ में कस्टम एण्ड सेंट्रल एक्साइज विभाग में इंस्पेक्टर की नौकरी ज्वाइन की है उसने। वहाॅं ज्वाइन करने के बाद फाइनल इयर की परीक्षा देने के लिए छुट्टी ले कर यहाॅं आया था। आज लौटना था उसको। रेनू को पता था कि आप दूसरी जाति में शादी के लिए तैयार नहीं होंगी इसलिए वह पियूष के संग चुपके से मेरठ जा कर वहाॅं कोर्ट मैरिज करने वाली थी। मैंने समझा-बुझा कर उसको रोक रखा है।’’ अनिल ने अपनी तरकश का आखिरी तीर छोड़ा।

‘‘क्या कहा....? लड़का नौकरी करता है ? अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम्हारे साथ पढ़ता है वह।‘‘ रेनू की मम्मी के बातचीत का टोन अचानक बदल गया।

‘‘बताया तो था अभी कि वह हम लोगों के साथ ही पढ़ता था लेकिन अब उसकी नौकरी लग गयी है। कस्टम एण्ड सेंट्रल एक्साइज विभाग में इंस्पेक्टर हो गया है। पिछले ही महीने मेरठ में नौकरी ज्वाइन करने के बाद एग्जाम के लिए छुट्टी ले कर आया था’’

‘‘तो क्या रेनू भी चाहती है उसे...?

‘‘चाचीजी, अगर रेनू नहीं चाहती होती तो बात यहाॅं तक पॅंहुचती ही क्यों ? वह पियूष के साथ कोर्ट मैरिज के लिए जाने को क्यों तैयार हो जाती ? दोनों ही चाहते हैं एक-दूसरे को।’’

‘‘तो क्या लड़के के माॅं-बाप राजी हैं इस शादी के लिए...?’’

‘‘चाचीजी, अगर आप राजी हो जायेंगी तो वे लोग भी राजी हो जायेंगे। वैसे भी पियूष अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है। कमाने लगा है। इसलिए थोड़ी ना-नुकुर के बाद उसके माॅं-बाप उसकी बात मान ही जायेंगे। आप बताइए क्या आप राजी हैं ?’’

‘‘भई, इतनी जल्दबाजी में क्या कह दूॅं मैं। आराम से सोचना होगा....रेनू के पापा से भी बात करनी होगी। वैसे सुना है कि कस्टम, एक्साइज विभाग की नौकरी में ऊपरी कमाई भी अच्छी-खासी हो जाती है। क्यों....?’’

‘‘हाॅं चाचीजी, बिल्कुल सही कह रही हैं आप। बहुत कमाई वाली नौकरी है यह। दरअसल पियूष भी इसी बात को ले कर ड़र रहा है कि दान-दहेज के लालच में उसके पिताजी कहीं दूसरी जगह उसकी शादी की बात न चला दें। तमाम लड़की वालों ने उसके घर आना-जाना भी शुरू कर दिया है।’’

‘‘अच्छा भाई, जब तुम सब लोगों की यही मर्जी है तो हम भी समझा लेंगे अपने मन को। तुम्हारे चाचा से बात करूॅंगी आज। देखें वह क्या कहते हैं।’’

‘‘चाचाजी से क्या पूछना.....असली फैसला तो आप को करना है चाची जी। अगर आप हाॅं कह देंगी तो चाचाजी तो हाॅं कह ही देंगे। रेनू की खुशी के लिए जरूर मान जायेंगे वे।’’

‘‘ठीक कह रहे हो तुम। अब हम लोगों का टाइम तो रहा नहीं कि माॅं-बाप ने ले जा कर जिस खूॅंटे से बाॅंध दिया, लड़की उस खूॅंटे से बॅंध गई।’’

‘‘तो फिर क्या मैं रेनू को बता दूॅं कि वह घर लौट आए ? आप उसकी पियूष से शादी के लिए राजी हैं। क्यों...?’’

‘‘हाॅं....बिल्कुल। घर तो उसको लौटना ही होगा। कोई भी फैसला लेने से पहले उसकी भी तो राय पूछनी होगी।’’

‘‘लेकिन आप से एक प्रार्थना है चाचीजी, कि घर आने पर आप रेनू को कुछ कहिएगा मत। मेरा मतलब ड़ाॅंट-ड़पट नहीं करिएगा प्लीज। वरना पता नहीं वह क्या कर बैठे। बहुत मुश्किल से अपनी जिम्मेदारी पर उसको पियूष के संग मेरठ जाने से रोक रखा है मैंने।’’ अनिल ने कहा और रेनू की मम्मी को नमस्ते कर के उनके घर से निकल आया।

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