अंग्रेजी का ट्यूशन

बाल कहानी

Akhilesh Srivastava Chaman

4/11/20211 मिनट पढ़ें

सेठ करोड़ीमल अपने बेटे राजू की पढ़ाई को ले कर बहुत चिन्तित रहा करते थे। उनका सपना था कि उनका बेटा उनकी तरह दुकान पर बैठ कर नमक, तेल, मिर्च-मसाला न बेचे बल्कि बहुत बड़ा अफसर बने। उन्होंने सुन रखा था कि आज के जमाने में अंग्रेजी की जानकारी के बगैर कोई भी बड़ा आदमी बन ही नहीं सकता। इसीलिए अपने बेटे का नाम उन्होंने शहर के प्रसिद्ध अंग्रेजी स्कूल में लिखा रखा था। राजू की अर्द्धवार्षिक परीक्षा का रिपोर्ट कार्ड देख कर सेठ जी परेशान हो उठे कारण कि अंग्रेजी के प्रश्नपत्र में उसके बहुत ही खराब अंक आए थे। अब हर हाल में उन्हें राजू की अंग्रेजी ठीक करानी थी क्यों कि उनकी सोच के अनुसार अंग्रेजी के ज्ञान बगैर वह बड़ा अधिकारी बन ही नहीं सकता था। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने अपने बेटे के लिए अंग्रेजी का ट्यूटर रखने का निर्णय किया। सेठ जी अब एक ऐसे अध्यापक की तलाश में लग गए जो रोज शाम उनके घर आ कर उनके बेटे को अंग्रेजी पढ़ा दिया करे। अपने सारे मिलने-जुलने वालों से उन्होंने अंग्रेजी के ट्यूटर के लिए कह रखा था। जब लोगों को पता चला कि सेठ जी को अंग्रेजी के अध्यापक की जरूरत है तो ट्यूशन करने वाले अध्यापक भी आने लगे।

जो भी ट्यूटर आता, सेठ जी उससे फीस को ले कर मोल-तोल करने लगते थे।

‘‘सेठ जी, मैं बी0ए0 पास बेरोजगार हूॅं और आपके बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए बात करने आया हूॅं।’’ एक दिन एक युवक सेठ जी की दुकान पर आया और बोला।

‘‘हाॅं तो रोज एक घंटा अंग्रेजी पढ़ाने का कितना पैसा लोगे तुम...?’’ सेठ जी ने उस युवक को ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा।

‘‘जी...चार सौ रुपया महीना लूॅंगा मैं।’’ युवक ने उत्तर दिया।

‘‘चार सौ....? बाप रे....! लूट मची है क्या....? रुपए कहीं पेड़ पर उगते हैं क्या कि जरा सा पढ़ाने का मैं तुम्हें चार सौ दे दूॅं। पचास रुपए महीना में पढ़ाना हो तो पढ़ाओ वरना अपना रास्ता देखो।’’ चार सौ की बात सुनते ही सेठ जी हत्थे से उखड़ गए। वह युवक लौट गया।

अगले दिन एक दूसरे सज्जन आए। ‘‘सेठ जी मैने सुना है आपको एक अंग्रेजी टीचर की तलाश है।’’ उन्होंने सेठ जी से कहा।

‘‘हाॅं अपने बेटे को पढ़ाने के लिए मुझे एक अंग्रेजी टीचर की जरूरत तो है लेकिन अपनी फीस की बात पहले ही कर लो। बाद की चिकचिक मुझे कत्तई पसन्द नहीं है।‘‘ सेठ जी बोले।

‘‘जी, आप महीने के तीन सौ रुपए दे दीजिएगा।’’

‘‘क्या कहा....तीन सौ....? तीन सौ रुपए तो छः महीने में दूॅंगा मैं। पचास रुपए महीना में पढ़ाना हो तो आज ही से शुरू का दो वरना तुम्हारी मर्जी। टीचरों की कमी नहीं है कोई। गली-गली जाने कितने पढ़े-लिखे बेकार घूम रहे हैं।’’ सेठ जी ने कहा और ग्राहकों के सौदे का हिसाब करने लगे।

वैसे तो सेठ जी करोड़ों के मालिक थे, शहर के चैक बाजार में बड़ा सा जनरल स्टोर था उनका लेकिन पैसा खर्च करने के मामले में वे नम्बर एक के कंजूस थे। सारी उम्र दुकान पर मोल-तोल करते रहने के कारण उनकी हर चीज में मोल-तोल करने की आदत सी पड़ गयी थी। जो भी अध्यापक ट्यूशन के लिए बात करने आता उससे पैसों को ले कर वे इतना मोल-तोल करते इतना मोल-तोल करते कि आगन्तुक हाथ जोड़ देता और वापस लौट जाता था। इस प्रकार कई लोग ट्यूशन पढ़ाने के लिए आए लेकिन सेठ जी पचास रुपए महीना से अधिक देने को तैयार नहीं हुए। धीरे-धीरे यह बात पूरे शहर में फैल गयी कि सेठ जी को अपने बेटे के लिए अंग्रेजी के एक ट्यूटर की जरूरत है और यह भी कि वे ट्यूशन फीस पचास रुपए महीना से अधिक देने को तैयार नहीं हैं। इतने कम पैसों में भला कौन पढ़ाता सो उनके यहाॅं लोगों का आना-जाना बंद हो गया।

कुछ दिनों के बाद एक दिन शाम को सेठ जी अपनी दुकानदारी में व्यस्त थे कि तभी एक सज्जन दुकान पर आए और सेठ जी को नमस्कार करने के बाद बोले-‘‘मेरा नाम ड़ा0 एन0के0 सक्सेना है। मैं अंग्रेजी में एम0ए0 पीएचड़ी0 हूूॅं और यहाॅं राजकीय इण्टर कालेज में अंग्रेजी का अध्यापक हूॅं। मुझे पता चला है कि आपको अपने बेटे को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए किसी अध्यापक की जरूरत हैं। मैं आप के बेटे को ट्यूशन पढ़ाने को तैयार हूॅं।’’

‘‘श्रीमान जी आप पैसे कितने लेंगे....?’’ सेठ जी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखने के बाद प्रश्न किया।

‘‘अजी पैसे की क्या बात है सेठ जी। आप जो दे देंगे वही ले लूॅंगा....। मुझे तो बस पढ़ाने से मतलब है।’’ सक्सेना जी ने कहा।

सेठ जी बहुत चकित हुए कि यह कैसा आदमी है जो पैसे की बात ही नहीं कर रहा है। ‘‘देखिए महाशय, वैसे तो मैं पचास रूपया महीना देने को था लेकिन चलिए आपको दो रूपया रोज के हिसाब से साठ रूपया दे दूॅंगा महीने के।’’ सेठ जी बोले।

‘‘ठीक है, मुझे स्वीकार है। मैं कल शाम से पढ़ाने आ जाऊॅंगा।’’ सक्सेना जी ने कहा और लौट गए। सेठ ही मन जी मन बेहद खुश थे कि इतने सस्ते में अन्हें अंग्रेजी पढ़ाने वाला अध्यापक मिल गया। वह भी एम0ए0, पी0एच0डी0, इण्टर कालेज का लेक्चरर। अब तो निश्चित ही उनका बेटा अंग्रेजी में काफी तेज हो जाएगा।

ट्यूशन पढ़ाने पहले दिन आए तो सक्सेना जी ने सेठ जी के बेटे को अंग्रेजी के कुछ शब्दों के अर्थ लिखवाए और अगले दिन उसे रट कर तैयार रखने को कह कर लौट गए। सेठ जी रात को दुकान बंद कर के घर आए तो देखा उनका बेटा जोर-जोर से बोल कर अंग्रेजी की वर्डमीनिंग याद कर रहा था।

‘ब्रेकफास्ट माने तेजी से तोड़ना। लेड़ीजफिंगर माने औरत की अंगुली। बटरफ्लाई माने मक्खन का उड़ना। मैनगो माने आदमी का जाना। रेनबो माने बरसात का झुकना। कारपेण्टर माने कार को पेण्ट करने वाला। अंड़रस्टैण्ड़ माने नीचे खड़ा होना। ग्रैण्डफादर माने शानदार बाप।़ ग्रैण्ड़मदर माने शानदार माॅं।’

बेटे का रटना सुना तो सेठ जी चैंक पड़े। थोड़ी-बहुत अंग्रेजी तो आती ही थी उनको। वे बेटे पर बिगड़ पड़े-‘‘अरे ! यह क्या उल्टा-पुल्टा याद कर रहा है तू। ब्रेकफास्ट माने होता है सुबह का नाश्ता, लेड़िजफिंगर भिण्ड़ी को कहते हैं, बटरफ्लाई माने तितली होती है, मैनगो माने आम होता है, रेनबो माने इन्द्रधनुष होता है, कारपेण्टर माने बढ़ई होता है और अंड़रस्टैण्ड़ का मतलब होता है समझना। इसी प्रकार ग्रैण्ड़फादर दादा को तथा ग्रैण्ड़मदर दादी को कहते हैं। यह सब गलत मीनिंग किसने लिखाया तुम्हें।’’

‘‘ट्यूशन पढ़ाने वाले मास्टर जी ने लिखाया है और कह गए हैं कि कल आते ही पहले इसे ही सुनेंगे। इसीलिए याद कर रहा हूॅं।’’ सेठ जी के बेटे ने बताया।

‘‘अच्छा रहने दे। तू मत याद कर यह गलत-सलत बात। कल तुम्हारे मास्टर की खबर लूॅंगा मै।’’ सेठ जी ने अपने बेटे से कहा।

अगले दिन सेठ जीे गुस्से में भरे बैठे थे। सक्सेना जी के आते ही उन पर बरस पड़े-‘‘ऐ मास्टर ! तुमने तो बताया था कि तुम अंग्रेजी में एम0ए0, पीएच0ड़ी0 हो, इण्टर कालेज में पढ़ाते हो। लेकिन तुम्हें इतना भी नहीं पता कि मैनगो माने आम होता है, बटरफ्लाई माने तितली होती है कारपेण्टर बढ़ई को कहते हैं और ब्रेकफास्ट माने सुबह का नाश्ता होता है।’’

‘‘अपने बारे में मैंने कुछ भी गलत नहीं बताया था सेठ जी। मैं सचमुच अंग्रेजी में एम0ए0 पीएच0ड़ी0 हूॅं और इण्टर कालेज में अध्यापक हूॅं। मुझे इन सभी शब्दों के सही मीनिंग भी मालुम है।’’

‘‘तो फिर मेरे बेटे को उल्टा-पुल्टा मीनिंग क्यों लिखाया है तुमने ?’’

‘‘बहुत सामान्य सी बात है सेठ जी। जैसी मजदूरी होगी काम भी वैसा ही तो होगा न। आप की दुकान में तो हर प्रकार का सामान रखा है लेकिन आप भी अपने ग्राहकों को वैसा ही सामान तो देते हैं जितना वे पैसा देते हैं। साधारण चावल के पैसे देने वाले को आप बासमती चावल तो नहीं तौल देंगे न। ड़ालड़ा का दाम देने वाले को आप देशी घी तो नहीं देंगे न। यही बात मेरे साथ भी है। साठ रुपए महीना ट्यूशन फीस में तो ब्रेकफास्ट माने तेजी से तोड़ना, बटरफ्लाई माने मक्खन का उड़ना और ग्रैण्ड़फादर माने शानदार बाप ही होगा। बटरफ्लाई माने तितली और ब्रेकफास्ट माने सुबह का नाश्ता तो तभी हो पाएगा जब आप ट्यूशन फीस तीन सौ रुपए महीना देंगे। अब कहिए तो आप के बेटे को पढ़ाऊॅं या कहिए तो मैं वापस चला जाऊॅं।’’ सक्सेना जी ने कहा।

‘‘नहीं...नहीं मास्टर जी आप वापस मत जाइए। मेरे बेटे को खूब अच्छी तरह से पढ़ाइए। मैं तीन सौ रुपए महीना देने को तैयार हूॅं।’’ सेठ जी बोले। सक्सेना जी की बात उनकी समझ में आ गई थी।

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