अकेली औरत

कविता

Akhilesh Srivastava Chaman

7/18/20211 मिनट पढ़ें

अकेली औरत

कभी अकेली नहीं होती

अपने नितांत

अकेलेपन में भी नहीं।

उसके संग होती हैं

किसिम-किसिम की चिंताएॅं

मसलन-

खेत की, खलिहान की,

छीज रहे मकान की,

काम पर गए पति की,

स्कूल गए बच्चों की,

सयानी हो रही बेटी की,

सुबह के कलेवा या

शाम की रसोई की

और इन सब के बीच

यदि गंुजरइश बची तो

दूर नैहर में

जर्जर हो चुके पिता और

बीमार पड़ी माॅं की भी।

यूॅं सोते-जागते,

उठते-बैठते,

खाते-पीते, नहाते-धोते

या कोल्हू के बैल सा जुते रहते

हर वक्त घेरे रहती हैं

उसे तरह-तरह की चिंतायें

अकेली औरत

कभी अकेली नहीं होती

अपने नितांत

अकेलेपन में भी नहीं।

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