अकेली औरत
कविता
अकेली औरत
कभी अकेली नहीं होती
अपने नितांत
अकेलेपन में भी नहीं।
उसके संग होती हैं
किसिम-किसिम की चिंताएॅं
मसलन-
खेत की, खलिहान की,
छीज रहे मकान की,
काम पर गए पति की,
स्कूल गए बच्चों की,
सयानी हो रही बेटी की,
सुबह के कलेवा या
शाम की रसोई की
और इन सब के बीच
यदि गंुजरइश बची तो
दूर नैहर में
जर्जर हो चुके पिता और
बीमार पड़ी माॅं की भी।
यूॅं सोते-जागते,
उठते-बैठते,
खाते-पीते, नहाते-धोते
या कोल्हू के बैल सा जुते रहते
हर वक्त घेरे रहती हैं
उसे तरह-तरह की चिंतायें
अकेली औरत
कभी अकेली नहीं होती
अपने नितांत
अकेलेपन में भी नहीं।