आदमी और नेता

व्यंग्य

Akhilesh Srivastava Chaman

1/9/20241 मिनट पढ़ें

आदमी और नेता सामान्यतया देखने में एक जैसे ही दिखते हैं लेकिन वास्तव में एक जैसे होते नहीं हैं। हर नेता आदमी होता है लेकिन हर आदमी नेता नहीं होता। इस बात को यूूं भी समझा जा सकता है कि हर नेता पहले आदमी ही होता है जो कालांतर में आदमीयत के धनात्मक गुणों के ह्रास तथा कुछ विशिष्ट ऋणात्मक गुणों के अर्जन के बाद नेता के रूप में परिवर्तित हो जाता है। खास बात यह है कि आदमी से नेता के रूप में होने वाला परिवर्तन अप्रतिवर्ती परिवर्तन होता है। यानी आदमी तो नेता बन सकता है लेकिन नेता पुनः आदमी नहीं बन सकता।

आदमी और नेता के बीच ठीक वही भेद होता है जो गुड़ और चीनी में। यद्यपि दोनों की उत्पत्ति एक ही स्रोत गन्ने के रस से होती है लेकिन उनकी शक्ल-सूरत, प्रकृति और सरोकार में जमीन-आसमान का अंतर होता है। गुड़ देखने में बेडौल और कुरूप होता है किन्तु उसी का परिवर्तित रूप चीनी झक्क सफेद और आकर्षक। गुड़ स्वाद में प्राकृतिक सोंधी मिठास लिए होता है जब कि चीनी कृत्रिम फीकी मिठास वाला। गुड़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है किन्तु चीनी अनेक बीमारियों की जड़। कहा जा सकता है कि ठीक इसी किस्म का अंतर होता है आदमी और नेता में।

न सिर्फ इतना, गन्ने का रस जब तक रस, राब या गुड़ रहता है, सामान्य रहता है। आम आदमी की पहॅंुच में रहता है। आम आदमी के साथ जुड़ा रहता है। किन्तु वही रस जब विकसित हो जाता है, सज-सॅंवर कर चीनी बन जाता है तो अपने को श्रेष्ठ और विशिष्ट समझने लगता है। ऐंठ, अहंकार और कुलीनता की भावना से भर जाता है। आम आदमी से दूर हो जाता है। नेता की गति भी बिल्कुल ऐसी ही होती है।

वैसे तो नेता बनने के लिए आदमी को बहुतेरे गुण अर्जित करने होते हैं लेकिन कुछ अनिवार्य किस्म के गुणों का उल्लेख यहाॅं किया जा सकता है। नेता बनने के लिए पहला अनिवार्य कदम है अंतरात्मा की हत्या करना। दरअसल आदमी नामक प्राणी के अंदर अंतरात्मा नामकी एक चीज होती है जो वक्त-वेवक्त टोका-टाकी करती रहती है। आदमी को सही, गलत का भान कराती रहती है। कोई भी काम करते समय उसके मन में नीति-अनीति, न्याय-अन्याय, उचित-अनुचित जैसी भावनायें जगाती रहती है। इसलिए इस डिस्टर्विंग एलीमेंट को अपने से दूर कर देना नेता के लिए नितांत आवश्यक होता है। जिस किसी ने भी अपनी अंतरात्मा की आवाज पर कान दिया, उसके नेता बन सकने की सारी संभावनायें समाप्त हो जाती हैं।

नेता के लिए दूसरा आवश्यक गुण है पूरे आत्मविश्वास के साथ झूठ बोलने की कला। जो आदमी जितने ही अधिक आत्मविश्वास के साथ जितना ही बड़ा झूठ बोल लेगा वह उतने ही शीघ्र उतना ही बड़ा नेता बन सकेगा। यहाॅं ध्यान देने की बात है कि झूठ बोलने के लिए नेता को प्रयास न करना पड़े। उसका झूठ बोलना स्वतःस्फूर्त होना चाहिए न कि सायास। उसके मष्तिस्क में बगैर सिर-पैर के नाना प्रकार के झूठ गढ़ने की स्वचालित फैक्ट्री होनी चाहिए। ऐसी फैक्ट्री जो झूठे आॅंकड़ों, झूठे इतिहास, झूठी घटनाओं और झूठे वादों का अहर्निश उत्पादन करती रहे।

इसके अतिरिक्त एक और खास बात यह कि नेता के लिए सिर्फ झूठ बोलना ही काफी नहीं होता है बल्कि अपने बोले झूठ पर पूरी दृढ़ता के साथ अड़े रहना भी जरूरी होता है। जो व्यक्ति झूठ बोलने के बाद अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है या उसे सुधारने की कोशिश करता है वह एक सफल नेता नहीं बन सकता है। सफल नेता वह होता है जो अपने बोले एक झूठ को सच साबित करने के लिए सौ और झूठ बोलने की क्षमता रखता हो। वैसे भी कहा जाता है कि अगर किसी झूठ को सौ बार दुहराओ तो वह सच मान लिया जाता है। बड़े-बुजुर्गों का यह अनुभवजन्य कथन नेता के लिए आदर्श वाक्य होना चाहिए।

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