आना जरूर
कविता
चहके हरसिंगार
या महके रातरानी
तब भले मत आना
लेकिन आना जरूर
चू रहे महुए की
नशीली गंध के साथ।
ललछौंहे सूरज या
पियराई चाॅंदनी के संग
भले मत आना
लेकिन आना जरूर
सन्नाटा बुनतीं
अॅंधियारी जागी रातों में।
झर रहे सावन
या पूस की ठिठुरन में
भले मत आना
लेकिन आना जरूर
पुरवा का झोंका बन
अलसाए जेठ में।
उत्सव में, मेले में
या भीड़-भाड़ के रेले में
भले मत आना
लेकिन आना जरूर
अकुलाए अकेले में।
हर्ष में, उल्लास में
या गहन संत्रास में
तुम भले मत आना
लेकिन आना जरूर
जब मीठी सी टीस उठे
सीने में बायीं अलंग।