आना जरूर

कविता

Akhilesh Srivastava Chaman

7/18/20211 मिनट पढ़ें

चहके हरसिंगार

या महके रातरानी

तब भले मत आना

लेकिन आना जरूर

चू रहे महुए की

नशीली गंध के साथ।

ललछौंहे सूरज या

पियराई चाॅंदनी के संग

भले मत आना

लेकिन आना जरूर

सन्नाटा बुनतीं

अॅंधियारी जागी रातों में।

झर रहे सावन

या पूस की ठिठुरन में

भले मत आना

लेकिन आना जरूर

पुरवा का झोंका बन

अलसाए जेठ में।

उत्सव में, मेले में

या भीड़-भाड़ के रेले में

भले मत आना

लेकिन आना जरूर

अकुलाए अकेले में।

हर्ष में, उल्लास में

या गहन संत्रास में

तुम भले मत आना

लेकिन आना जरूर

जब मीठी सी टीस उठे

सीने में बायीं अलंग।

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