गज़लें
ग़ज़ल
1
गारद, बत्ती लाल पा गए भैया जी।
मंत्री बन आकाश छा गए भैया जी।
कोई कर्म, कुकर्म न उनसे शेष बचा
राजनीति की राह आ गए भैया जी।
गली, खडंजा, नाला, नाली, बाॅंध, सड़क
बिना डकारे सकल खा गए भैया जी।
चाहे जिसकी सत्ता, जिसका शासन हो,
कुर्सी से पर दूर ना गए भैया जी।
ऐसे चिकने घड़े चमन हैं बने हुए,
हर पंथी को सहज भा गए भैया जी।
जिस कुनबे की थाली में तर माल दिखा,
पलटी झट उस ओर खा गए भैया जी।
2
दगा, फरेब, जाल करता है।
कितने ही कमाल करता है।
वो तो जादूगर सियासत का,
हर दफे इन्द्रजाल करता है।
करे वो चोट भी तो, हॅंस के करे,
बात से जी निहाल करता है।
मिरा कातिल बड़ा रहमदिल है,
प्यार से वो हलाल करता है।
स्ंाग मौसम के रुख बदल देता,
इस तरह कदमताल करता है।
झूठ कहता है इस अदा से ‘चमन’,
सच का जीना मुहाल करता है।